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ठाणं (स्थान)
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स्थान ४ : सूत्र ४६६-५०२
णात-पदं ज्ञात-पदम्
ज्ञात-पद ४६६. चउविहे णाते पण्णत्ते, तं जहा- चतुर्विधः ज्ञातः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- ४६६. ज्ञात चार प्रकार के होते हैंआहरणे, आहरणतद्देसे, आहरणं, आहरणतद्देशः, आहरणतद्दोषः, ।
१. आहरण-सामान्य उदाहरण
२. आहरण तद्देश-एकदेशीय उदाहरण आहरणतद्दोसे, उवण्णासोवणए। उपन्यासोपनयः ।
३. आहरण तद्दोष–साध्यविकल आदि उदाहरण ४. उपन्यासोपनय-वादी के द्वारा कृत उपन्यास के विघटन के लिए प्रतिवादी द्वारा किया जाने वाला
विरुद्धार्थक उपनय। ५००. आहरणे चउविहे पण्णत्ते, तं आहारणं चतुर्विध प्रज्ञप्तम्, तद्यथा-- ५००. आहरण चार प्रकार का होता हैजहा.
१. अपाय-हेयधर्म का ज्ञापक दृष्टान्त अवाए, उवाए, ठवणाकम्मे, अपायः, उपायः, स्थापनाकर्म,
२. उपाय--ग्राह्य वस्तु के उपाय बताने
वाला दृष्टान्त ३. स्थापनाकर्मपडुप्पण्णविणासी। प्रत्युत्पन्नविनाशी।
स्वाभिमत की स्थापना के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला दृष्टान्त ४. प्रत्युत्पन्नविनाशी-उत्पन्न दूषण का परिहार करने के लिए प्रयुक्त किया जाने
वाला दृष्टान्त। ५०१. आहरणतद्देसे चउन्विहे पण्णत्ते, तं आहरणतद्देश: चतुर्विधः प्रज्ञप्तः, ५०१. आहरण तद्देश चार प्रकार का होता हैजहातद्यथा
१. अनुशिष्टि-प्रतिवादी के मंतव्य के
उचित अंश को स्वीकार कर अनुचित अणुसिट्ठी, उवालंभे, अनुशिष्टिः, उपालम्भः, पृच्छा,
का निरसन करना पुच्छा, णिस्सावयणे। निःथावचनम् ।
२. उपालंभ-दूसरे के मत को उसकी ही मान्यता से दूषित करना ३. पृच्छा---प्रश्न-प्रतिप्रश्नों में ही पर मत को असिद्ध कर देना ४. निःश्रावचन--अन्य के बहाने अन्य
को शिक्षा देना। ५०२. आहरणतद्दोसे चउन्विहे पण्णत्ते,तं आहरणतद्दोषः चतुर्विधः प्रज्ञप्तः, ५०२. आहरणतद्दोष चार प्रकार का होता हैजहातद्यथा
१. अधर्मयुक्त-अधर्मबुद्धि उत्पन्न करने
वाला दृष्टांत अधम्मजुत्ते, पडिलोमे, अधर्मयुक्तः, प्रतिलोमः, आत्मोपनीतः,
२. प्रतिलोम-अपसिद्धान्त का प्रतिपादक अत्तोवणीते, दुरुवणीते। दुरुपनीतः।
दृष्टान्त अथवा 'शठे शाठ्यं समाचरेत्' ऐसी प्रतिकूलता की शिक्षा देने वाला दृष्टान्त ३. आत्मोपनीत–परमत में दोष दिखाने के लिए दृष्टान्त प्रस्तुत किया जाए और उससे स्वमत दूषित हो जाए ४. दुरुपनीत-दोषपूर्णनिग मन वाला
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