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गणं (स्थान)
स्थान ४: सूत्र ५०३-५०५ ५०३. उवण्णासोवणए चउविहे पण्णत्ते, उपन्यासोपनयः चतुर्विधः प्रज्ञप्तः, ५०३. उपन्यासोपनय चार प्रकार का होता है-- तं जहातद्यथा
१. तदवस्तुक-बादी के द्वारा उपन्यस्त तव्वत्थुते, तदण्णवत्थुते, तद्वस्तुकः, तदन्यवस्तुकः, प्रतिनिभः, हेतु से उसका ही निरसन करना पडिणिभे, हेतू। हेतुः।
२. तदन्यवस्तुक---उपन्यस्तवस्तु से अन्य में भी प्रतिवादी की बात को पकड़कर उसे हरा देना ३. प्रतिनिभ-बादी के सदृश हेतु बनाकर उसके हेतु को असिद्ध कर देना। ४. हेतु हेतु बताकर अन्य के प्रश्न का समाधान कर देना।
हेउ-पदं हेतु-पदम्
हेतु-पद ५०४. हेऊ चउन्विहे पण्णत्ते, तं जहा- हेतुः चतुर्विधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- ५०४. हेतु चार प्रकार के होते हैं
१. यापक-समययापक विशेषण बहुल जावए, थावए, वंसए, लूसए। यापकः, स्थापकः, व्यंसकः, लूषकः ।
हेतु-जिसे प्रतिवादी शीघ्र न समझ सके २. स्थापक-प्रसिद्ध व्याप्ति वालासाध्य को शीघ्र स्थापित करने वाला हेतु ३. व्यंसक-प्रतिवादी को छल में डालने वाला हेतु ४. लूषक-व्यंसक के द्वारा प्राप्त आपत्ति
को दूर करने वाला हेतु"। अहवा– हेऊ चउन्विहे पण्णत्ते, अथवा-हेतुः चतुर्विधः प्रज्ञप्तः,
अथवा-हेतु चार प्रकार के होते हैंतं जहा—पच्चक्खे अणुमाणे तद्यथा—प्रत्यक्षं, अनुमानं, औपम्यं,
१. प्रत्यक्ष, २. अनुमान, ३. उपमान, ओवम्मे आगमे। आगमः।
४. आगम। अहवा-हेऊ चउविहे पण्णत्ते, तं अथवा हेतु: चतुर्विधः प्रज्ञप्तः,
अथवा–हेतु चार प्रकार के होते हैंजहा
तद्यथाअत्थित्तं अत्थि सो हेऊ, अस्तित्वं अस्ति स हेतुः,
१. विधि-साधक विधि-हेतु, अत्थित्तं पत्थि सो हेऊ, अस्तित्वं नास्ति स हेतुः,
२. विधि-साधक
निषेध-हेतु, पत्थित्तं अस्थि सो हेऊ, नास्तित्वं अस्ति स हेतुः,
३. निषेध-साधक विधि-हेतु, णत्थित्तं णस्थि सो हेऊ। नास्तित्वं नास्ति स हेतुः ।
४. निषेध-साधक निषेध-हेतु १२
संखाण-पदं संख्यान-पदम्
संख्यान-पद ५०५. चउन्विहे संखाणे पण्णत्ते, तं चतुर्विधं संख्यानं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा- ५०५. संख्यान-गणित चार प्रकार का है
१. परिकर्म, २. व्यवहार, ३. रज्जु, परिकम्मं, ववहारे, रज्जू, रासी। परिकर्म, व्यवहारः, रज्जुः, राशिः। ४. राशि।
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