SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 475
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ठाणं (स्थान) ४३४ स्थान ४ : सूत्र ४८१-४८५ सम-पदं सम-पदम् सम-पद ४८१. चत्तारि लोगे समा पण्णत्ता, तं चत्वारः लोके समाः प्रज्ञप्ताः तद्यथा-- ४८१. लोक में चार समान हैं (एक लाख योजन जहाअपइट्ठाणे णरए, जंबुद्दीवे दीवे, अप्रतिष्ठानो नरकः, जम्बूद्वीपं द्वीपं, १. अप्रतिष्ठान नरक-सातवें नरक का पालए जाणविमाणे, सम्वट्ठसिद्धे पालक यानविमानं, सर्वार्थसिद्धं महा- एक नरकावास, २. जम्बुद्वीप नामक द्वीप, - महाविमाणे। विमानम्। ३. पालक यान विमान-सौधर्मेन्द्र का यात्राविमान ४. स्वार्थसिद्ध महाविमान। ४८२. चत्तारि लोगे समा सपक्खिं चत्वारः लोके समाः सपक्षं सप्रतिदिशं ४८२. लोक में चार समान (पैंतालीस लाख सपडिदिसि पण्णत्ता, तं जहा- प्रज्ञप्ताः, तद्यथा योजन) समक्ष तथा सप्रतिदिश हैं--- सीमंतए णरए, समयक्खेत्ते, सीमान्तकः नरकः, समयक्षेत्रं, १. सीमन्तक नरक-पहले नरक का उड्डुविमाणे, इसीपन्भारा पुढवी। उडुविमानं, ईषत्प्राग्भारा पृथिवी। एक नरकावास, २. समयक्षेत्र, ३. उडुविमान-सौधर्म कल्प के प्रथम प्रस्तर का एक विमान, ४. ईषद्-प्रागभारा पृथ्वी। बिसरीर-पदं द्विशरीर-पदम् द्विशरीर-पद ४८३. उद्दलोगे णं चत्तारि बिसरीरा ऊर्ध्वलाके चत्वारः द्विशरीराः प्रज्ञप्ताः, ४८३. ऊर्ध्व लोक में चार द्विशरीरी-दूसरे पण्णत्ता, तं जहातद्यथा जन्म में सिद्ध गतिगामी हो सकते हैंपुढविकाइया, आउकाइया, पृथ्वीकायिकाः, अप्कायिकाः, १. पृथ्वीकायिक जीव, २. अप्कायिक वणस्सइकाइया, वनस्पतिकायिकाः, जीव, ३. वनस्पतिकायिक जीव, ४. उदार उराला तसा पाणा। उदाराः त्रसाः प्राणाः । बस प्राण---पञ्चेन्दिय जीव। ४८४. अहोलोगे णं चत्तारि बिसरीरा अधोलोके चत्वारः द्विशरीराः प्रज्ञप्ताः, ४८४. अधोलोक में चार द्विशरीरी हो सकते पण्णता, तं जहा तद्यथा'पुढविकाइया आउकाइया, पृथ्वीकायिकाः, अप्कायिकाः, १. पृथ्वीकायिक जीव, २. अप्कायिक वणस्सइकाइया, वनस्पतिकायिकाः, जीव, ३. वनस्पतिकायिक जीव, ४. उदार उराला तसा पाणा। उदाराः त्रसाः प्राणाः । वस प्राण । ४८५.तिरियलोगे णं चत्तारि बिसरीरा तिर्यगलोके चत्वारः द्विशरीराः प्रज्ञप्ताः, ४८५. तिर्यक्लोक में चार द्विशरीरी हो सकते पण्णता, तं जहा. तद्यथापुढविकाइया, आउकाइया, पृथ्वीकायिकाः, अप्कायिकाः, १. पृथ्वीकायिक जीव २. अप्कायिक वणस्सइकाइया, वनस्पतिकायिकाः, जीव ३. वनस्पतिकायिक जीव ४. उदार उराला तसा पाणा। उदाराः त्रसाः प्राणाः। वस प्राण। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy