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ठाणं (स्थान)
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स्थान ४: सूत्र ४७६-४८०
रूव-पदं रूप-पदम्
रूप-पद ४७९. चत्तारि पकंथगा पण्णत्ता, तं चत्वारः प्रकन्थकाः प्रज्ञप्ताः, तदयथा- ४७६. घोड़े चार प्रकार के होते हैंजहा
१. कुछ घोड़े रूप-सम्पन्न होते हैं, जयरूवसंपण्णे णाममेगे, रूपसम्पन्न: नामकः, नो जयसम्पन्नः, सम्पन्न नहीं होते, २. कुछ घोड़े जयणो जयसपण्णे,
जयसम्पन्नः नामैकः, नो रूपसम्पन्नः, सम्पन्न होते हैं, रूप सम्पन्न नहीं होते, जयसंपण्णे णाममेगे, एकः रूपसम्पन्नोऽपि, जयसम्पन्नोऽपि, ३. कुछ घोड़े रूप-सम्पन्न भी होते हैं और णो रूवसपण्ण,
एकः नो रूपसम्पन्नः, नो जयसम्पन्नः । जय-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ घोड़े न एगे रूवसंपण्णव, जयसंपण्णेवि,
रूप-सम्पन्न होते हैं और न जय-सम्पन्न एगे णो रूवसपण्णे,
ही होते हैं। णो जयसंपण्ण। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया एवमेव चत्वारि पुरुपजातानि प्रज्ञप्तानि, इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के होते पण्णत्ता, तं जहा
तद्यथारूवसंपण्णे णाममेगे, रूपसम्पन्न: नामकः, नो जयसम्पन्नः, १. कुछ पुरुष रूप-सम्पन्न होते है, जयणो जयसंपण्ण, जयसम्पन्नः नामकः, नो रूपसम्पन्नः, सम्पन्न नहीं होते, २. कुछ पुरुष जयजयसंपण्णे णाममेगे,
एकः रूपसम्पन्नोऽपि, जयसम्पन्नोऽपि, सम्पन्न होते हैं, रूप-सम्पन्न नहीं होते, णो रूवसंपण्णे,
एक: नो रूपसम्पन्नः, नो जयसम्पन्नः । ३. कुछ पुरुष रूप-सम्पन्न भी होते हैं और एगे रूवसंपण्णेवि, जयसंपण्णेवि,
जय-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ पुरुष न एगे णो रूवसंपण्णे,
रूप-सम्पन्न होते हैं और न जय-सम्पन्न णो जयसंपण्णे।
ही होते हैं।
सीह-सियाल-पदं सिंह-शृगाल-पदम्
सिंह-शगाल-पद ४८०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, ४८०. पुरुष चार प्रकार के होते हैं - जहातद्यथा
१. कुछ पुरुष सिंहवृत्ति से निष्क्रांतसीहत्ताए णाममेगे णिक्खंते सिंहतया नामैक: निष्क्रान्तः सिंहतया प्रवजित होते हैं और सिंहवृत्ति से ही सोहत्ताए विहरइ, विहरति,
उसका पालन करते हैं, २. कुछ पुरुष सिंहसीहत्ताए णाममेगे णिक्खते सीया- सिहतया नामकः निष्कान्तः शृगालतया वृत्ति से निष्क्रान्त होत हैं और सियारवृत्ति लत्ताए विहरइ, विहरति,
से उसका पालन करते हैं, ३. कुछ पुरुष सीयालत्ताए णाममेगे णिक्खते शृगालतया नामकः निष्क्रान्तः सिंहतया सियारवृत्ति से निष्क्रान्त होते हैं और सीहत्ताए विहरइ, विहरति,
सिंहवृत्ति से उसका पालन करते हैं, सीयालत्ताए णाममेगे णिक्खंते शृगालतया नामकः निष्क्रान्तः ४. कुछ पुरुष सियारवृत्ति से निष्क्रान्त सीयालत्ताए विहर। शृगालतया विहरति,
होते हैं और सियारवृत्ति से ही उसका पालन करते हैं।
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