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________________ ठाणं (स्थान) स्थान ४: सूत्र ४७६-४७७ एगे कुलसंपण्णेवि, रूवसंपण्णेवि, एकः कुलसम्पन्नोऽपि, रूपसम्पन्नोऽपि, होते हैं, ४. कुछ घोड़े न कुल-सम्पन्न होते एगे णो कुल सपण्णे, एक: नो कुलसम्पन्नः, नो रूपसम्पन्नः। हैं और न रूप-सम्पन्न ही होते हैं। णो रूवसंपण्णे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया एवमेव चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के होते पण्णता, तं जहा तद्यथाकुलसंपण्णे णाममेगे, कुलसम्पन्नः नामैकः, नो रूपसम्पन्नः, १. कुछ पुरुष कुल-सम्पन्न होते हैं, रूपणो रूवसंपण्णे, रूपसम्पन्न: नामैकः, नो कुलसम्पन्नः, सम्पन्न नहीं होते, २. कुछ पुरुष रूपरूवसंपण्णे णाममेगे, एकः कुलसम्पन्नोऽपि, रूपसम्पन्नोऽपि, सम्पन्न होते हैं, कुल-सम्पन्न नहीं होते, णो कुलसंपण्णे, एकः नो कुलसम्पन्नः, नो रूपसम्पन्नः । ३. कुछ पुरुष कुल-सम्पन्न भी होते हैं और एगे कुलसंपण्णेवि, रूवसंपण्णेवि, रूप-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ पुरुष न एगे णो कुलसंपण्णे, कुल-सम्पन्न होते हैं और न रूप-सम्पन्न णो रूवसंपण्णे। ही होते हैं। ४७६. चत्तारि पकंथगा पण्णत्ता, तं चत्वारः प्रकन्थकाः, प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-४७६. घोड़े चार प्रकार के होते है १. कुछ घोड़े कुल-सम्पन्न होते हैं, जयकुलसंपण्णे णाममेगे, कुलसम्पन्न: नामैकः, नो जयसम्पन्नः, सम्पन्न नहीं होते, २. कुछ घोड़े जयणो जयसंपण्णे, जयसम्पन्नः नामैकः, नो कुलसम्पन्नः, सम्पन्न होते हैं, कुल-सम्पन्न नहीं होते, जयसंपण्णे णाममेगे, एकः कुलसम्पन्नोऽपि, जयसम्पन्नोऽपि, ३. कुछ घोड़े कुल-सम्पन्न भी होते हैं णो कुलसंपण्णे, एक: नो कूलसम्पन्नः, नो जयसम्पन्नः । और जय-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ एगे कुलसंपण्णेवि, जयसंपण्णेवि, घोड़े न कुल-सम्पन्न होते हैं और न जयएगे णो कुलसंपण्णे, सम्पन्न ही होते हैं। णो जयसंपण्णे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया एवमेव चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के होते पण्णता, तं जहा तद्यथाकुलसंपण्णे णाममेगे, कुलसम्पन्नः नामैकः, नो जयसम्पन्नः, १. कुछ पुरुष कुल-सम्पन्न होते हैं, जयणो जयसंपण्णे, जयसम्पन्न: नामैकः, नो कुलसम्पन्नः, सम्पन्न नहीं होते, २. कुछ पुरुष जयजयसंपण्णे णाममेगे, एकः कुलसम्पन्नोऽपि, जयसम्पन्नोऽपि, सम्पन्न होते हैं, कुल-सम्पन्न नहीं होते, णो कुलसंपण्णे, एकः नो कुलसम्पन्नः, नो जयसम्पन्नः। ३. कुछ पुरुष कुल-सम्पन्न भी होते हैं एगे कुलसंपण्णेवि, जयसंपण्णेवि, और जय-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ एगे णो कुलसंपण्णे, पुरुष न कुल-सम्पन्न होते हैं और न णो जयसंपण्णे। जय-सम्पन्न ही होते हैं। बल-पदं ४७७. 'चत्तारि पकंथगा पण्णत्ता, तं जहा बल-पदम् बल-पद चत्वारः प्रकन्थका: प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- ४७७. घोड़े चार प्रकार होते हैं For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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