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________________ ठाणं (स्थान) ४२६ स्थान ४ : सूत्र ४७२-४७३ जातिसंपण्णे णाममेगे, जातिसम्पन्नः नामैकः, नो वलसम्पन्नः, १. कुछ पुरुष जाति-सम्पन्न होते हैं, बलणो बलसंपण्णे, बलसम्पन्नः नामैकः, नो जातिसम्पन्नः, सम्पन्न नहीं होते, २. कुछ पुरुष बलबलसंपण्णे णाममेगे, एक: जातिसम्पन्नोऽपि,बलसम्पन्नोऽपि, सम्पन्न होते हैं, जाति-सम्पन्न नहीं होते, णो जातिसंपण्णे, एकः नो जातिसम्पन्नः, नो बलसम्पन्नः । ३. कुछ पुरुष जाति-सम्पन्न भी होते हैं एगे जातिसंपण्णेवि, बलसंपण्णेवि, और बल-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ एगे णो जातिसंपणे, पुरुष न जाति-सम्पन्न होते हैं और न बलणो बलसंपण्णे। सम्पन्न ही होते हैं। ४७२. चत्तारि [प? कथगा पण्णता, चत्वारः (प्र? )कन्थकाः प्रज्ञप्ताः, ४७२. घोड़े चार प्रकार के होते हैंतं जहातद्यथा १. कुछ घोड़े जाति-सम्पन्न होते हैं, रूपजातिसंपण्णे णाममेगे, जातिसम्पन्न: नामकः नो रूपसम्पन्नः, सम्पन्न नहीं होते, २. कुछ घोड़े रूपणो रूवसंपणे, रूपसम्पन्नः नामकः, नो जातिसम्पन्नः, सम्पन्न होते हैं, जाति-सम्पन्न नहीं होते, रूवसंपण्णे णाममेगे, एकः जातिसम्पन्नोऽपि, रूपसम्पन्नोऽपि, ३. कुछ घोड़े जाति-सम्पन्न भी होते हैं णो जातिसंपण्णे, एक: नो जातिसम्पन्नः, नो रूपसम्पन्नः । और रूप-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ एगे जातिसंपण्णेवि, रूवसंपण्णेवि, घोड़े न जाति-सम्पन्न होते हैं और न एगे णो जातिसंपण्णे, रुप सम्पन्न ही होते हैं। णो रूवसंपण्णे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया एवमेव चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के होते पण्णत्ता, तं जहा तद्यथाजातिसंपण्णे णाममेगे, जातिसम्पन्नः नामैकः, नो रूपसम्पन्न:, १. कुछ पुरुष जाति-सम्पन्न होते हैं, रूपणो रूवसंपण्णे, रूपसम्पन्नः नामकः, नो जातिसम्पन्नः, सम्पन्न नहीं होते, २. कुछ पुरुष रूपरूबसंपण्णे णाममेगे, एक: जातिसम्पन्नोऽपि, रूपसम्पन्नोऽपि, सम्पन्न होते हैं, जाति-सम्पन्न नहीं होते, णो जातिसंपण्णे, एक: नो जातिसम्पन्न:, नोरूपसम्पन्नः । ३. कुछ पुरुष जाति-सम्पन्न भी होते हैं एगे जातिसंपण्णेवि, रूवसंपण्णेवि, और रूप-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ एगे णो जातिसंपण्णे, पुरुष न जाति-सम्पन्न होते हैं और न णो रूवसंपण्णे। रूप-सम्पन्न ही होते हैं। ४७३. चत्तारि [प?] कंथगा पण्णत्ता, चत्वारः (प्र? )कन्थकाः प्रज्ञप्ताः, ४७३. घोड़े चार प्रकार के होते हैं-- तं जहातद्यथा १. कुछ घोड़े जाति-सम्पन्न होते हैं, जयजातिसंपण्णे णाममेगे, जातिसम्पन्नः नामकः, नो जयसम्पन्नः, सम्पन्न नहीं होते, २. कुछ घोड़े जयणो जयसंपण्णे, जयसम्पन्नः नामकः, नो जातिसम्पन्न:, सम्पन्न होते हैं, जाति-सम्पन्न नहीं होते, जयसंपण्णे णाममेगे, एकः जातिसम्पन्नोऽपि, जयसम्पन्नोऽपि, ३. कुछ घोड़े जाति-सम्पन्न भी होते हैं णो जातिसंपण्णे, एकः नो जातिसम्पन्नः नो जयसम्पन्नः । और जय-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ एगे जातिसंपण्णेवि, जयसंपण्णेवि, घोड़े न जाति-सम्पन्न होते हैं और न जयएगे णो जातिसंपण्णे, सम्पन्न ही होते हैं। णो जयसंपण्णे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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