SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 469
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ठाणं (स्थान) ४२८ स्थान ४ : सूत्र ४७०-४७१ जाति-पदं जाति-पदम् जाति-पद ४७०. चत्तारि पकंथगा पण्णत्ता, तं चत्वारः प्रकन्थकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- ४७०. घोड़े चार प्रकार के होते हैं-- जहा १. कुछ घोड़े जाति-सम्पन्न होते हैं, कुल जातिसंपण्णे णाममेगे, जातिसम्पन्नः नामकः, नो कुलसम्पन्नः, सम्पन्न नहीं होते, २. कुछ घोड़े कुलणो कुलसंपण्णे, कूलसम्पन्नः नामैकः, नो जातिसम्पन्नः, सम्पन्न होते हैं, जाति-सम्पन्न नहीं होते, कुलसंपण्णे णाममेगे, एकः जातिसम्पन्नोऽपि, कुलसम्पन्नोऽपि, कुछ घोड़े जाति-सम्पन्न भी होते हैं और णो जातिसंपण्णे, एक: नो जातिसम्पन्नः, नो कूलसम्पन्नः । कुल-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ घोड़े न एगे जातिसंपण्णेवि, जाति-सम्पन्न होते हैं और न कुल-सम्पन्न कुलसंपण्णेवि, ही होते हैं। एगे णो जातिसंपण्णे, णो कुलसंपण्णे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया एवमेव चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के होते पण्णत्ता, तं जहा तद्यथाजातिसंपण्णे णाममेगे, जातिसम्पन्नः नामकः, नो कुलसम्पन्नः, १. कुछ पुरुष जाति-सम्पन्न होते हैं, कुलणो कुलसंपण्णे, कुलसम्पन्नः नामैकः, नो जातिसम्पन्नः, सम्पन्न नहीं होते, २. कुछ पुरुष कुलकुलसंपण्णे णाममेगे, एकः जातिसम्पन्नोऽपि, कुलसम्पन्नोऽपि, सम्पन्न होते हैं, जाति-सम्पन्न नहीं होते, णो जातिसंपण्णे, एक: नो जातिसम्पन्नः, नो कूलसम्पन्नः। ३. कुछ पुरुष जाति-सम्पन्न भी होते हैं एगे जातिसंपण्णेवि, और कुल-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ कुलसंपण्णेवि, पुरुष न जाति-सम्पन्न होते हैं और न एगे णो जातिसंपण्णे, कुल-सम्पन्न ही होते हैं। णो कुलसंपण्णे । ४७१. चत्तारि पकथगा पण्णत्ता, तं जहा- चत्वारः प्रकन्थकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- ४७१. घोड़े चार प्रकार के होते हैं--- जातिसंपण्णे णाममेगे जातिसम्पन्नः नामकः, नो बलसम्पन्नः, १. कुछ घोड़े जाति-सम्पन्न होते हैं, बलणो बलसंपण्णे, बलसम्पन्नः नामैकः, नो जातिसम्पन्नः, सम्पन्न नहीं होते, २. कुछ घोड़े बलबलसंपण्णे णाममेगे, एक:जातिसम्पन्नोऽपि, बलसम्पन्नोऽपि, सम्पन्न होते हैं, जाति-सम्पन्न नहीं होते, णो जातिसंपण्णे, एक: नो जातिसम्पन्नः, नो बलसम्पन्नः। ३. कुछ घोड़े जाति-सम्पन्न भी होते हैं एगे जातिसंपण्णेवि, और बल-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ बलसंपण्णेवि, घोड़े न जाति-सम्पन्न होते हैं और न बलएगे णो जातिसंपण्णे, सम्पन्न ही होते है। णो बलसंपण्णे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया एवमेव चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के होते पण्णत्ता, तं जहा तद्यथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy