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________________ ठाणं (स्थान) २२. एगा उप्पा। २३. एगा वियती। २४. एगा वियच्चा। २५. एगा गती। २६. एगा आगती। २७. एगे चयणे। २८. एगे उववाए। २६. एगा तक्का। ३०. एगा सण्णा। ३१. एगा मण्णा। ३२. एगा विण्णू। ३३. एगा वेयणा। ३४. एगे छेयणे। ३५. एगे भेयणे। ३६. एगे मरणे अंतिमसारीरियाणं। ३७. एगे संसुद्धे अहाभूए पत्ते। एक उत्पादः। एका वितिः। एका विगताएं। एका गतिः। एका आगतिः । एक च्यवनम् । एक उपपातः । एकः तर्कः। एका संज्ञा। एका मतिः। एको विज्ञः। एका वेदना। एक छेदनम्। एकं भेदनम्। एक मरणं अन्तिमशारीरिकाणाम् ।। एकः संशुद्धः यथाभूतः पात्रम् । स्थान १ : सूत्र २२-४४ २२. उत्पत्ति एक है। २३. विगति" (विनाश) एक है। २४. विशिष्ट चित्तवृत्ति एक है। २५. गति" एक है। २६. आगति एक है। २७. च्यवन" एक है। २८. उपपात एक है। २६. तर्क" एक है। ३०. संज्ञा एक है। ३१. मनन" एक है। ३२. विद्वत्ता एक है। ३३. वेदना" एक है। ३४. छेदन एक है। ३५. भेदन एक है। ३६. अन्तिमशरीरी" जीवों का मरण एक है। ३७. जो संशुद्ध यथाभूत" और पात्र है, वह ३८. एगे दुक्खे जीवाणं एगभूए। एकं दुःखं जीवानां एक भूतम् । ३८. प्रत्येक जीव का दुःख एक और एकभूत ३६. एगा अहम्मपडिमा, जं से एका अधर्म-प्रतिमा यत् तस्याः आत्मा ३६. अधर्मप्रतिमा एक है, जिससे आत्मा आया परिकिलेसति। परिक्लिश्यते । परिक्लेश को प्राप्त होता है। ४०. एगा धम्मपडिमा, जं से एका धर्म-प्रतिमा यत् तस्याः आत्मा ४०. धर्मप्रतिमा" एक है, जिससे आत्मा आया पज्जवजाए। पर्यवजातः । पर्यवजात होता है (ज्ञान आदि की विशेष शुद्धि को प्राप्त होता है)। ४१. एगे मणे देवासुरमणुयाणं एकं मनः देवासुरमनुजानां तस्मिन् ४१. देव, असुर और मनुष्य जिस समय तंसि तंसि समयंसि। तस्मिन् समये। चिंतन करते हैं, उस समय उनके एक मन होता है।" ४२. एगा वई देवासुरमणुयाणं एका वाक् देवासुरमनुजानां तस्मिन् ४२. देव, असुर और मनुष्य जिस समय बोलते तंसि तंसि समयंसि। तस्मिन् समये। हैं, उस समय उनके एक वचन होता है।" ४३. एगे काय-वायामे देवासुर- एक: काय-व्यायाम: देवासुरमनुजानां ४३. देव, असुर और मनुष्य जिस समय कायमणुयाणं तंसि तंसि समयंसि। तस्मिन् तस्मिन् समये। व्यापार करते हैं, उस समय उनके एक कायव्यायाम होता है।" ४४. एगे उट्ठाण-कम्म-बल-वीरिय- एक उत्थान-कर्म-बल-वीर्य-पुरुषाकार- ४४. देव, असुर और मनुष्यों के एक समय में पुरिसकार-परक्कमे देवासुर- पराक्रम: देवासुरमनुजानां तस्मिन् एक ही उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, पुरुषमणुयाणं तंसि तंसि समयसि। तस्मिन् समये । कार अथवा पराक्रम होता है। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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