________________
ठाणं (स्थान)
परिणावि
परिणामिहावासेवि एगे णो परिणातसणे, परिणातगिहावासे ।
जहा -
इहत्थे णामगे, णो परत्थे,
परत्थे णामगे, णो इहत्थे,
इथे
परत्थेवि
एगे जो इहत्थे, णो परत्थे ।
इत्थ-परत्थ-पदं
४६६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि
जहा -
णाम वति, एगेणं हायति, एगेणं णामगे वडृति, दोहि हायति,
दोहिं णाममेगे वद्धृति, एगेणं हायति,
दोह णामगे वडति, दोहि हायति ।
एक:
आइण्ण- खलुंक - पदं ४६८. चत्तारि पकथगा पण्णत्ता, तं जहा -
Jain Education International
४२६
परिज्ञातसंज्ञोऽपि,
परिज्ञातगृहावासोऽपि, एक: नो परिज्ञातसंज्ञः,
नो परिज्ञातगृहावासः ।
इहार्थ- परार्थ-पदम्
- परार्थ-द
पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, ४६६. पुरुष चार प्रकार के होते हैं—
तद्यथा
इहार्थ : नामैकः, नो परार्थः, परार्थः नामकः, नो इहार्थः, एक: इहार्थोऽपि परार्थोऽपि, एक: नो इहार्थ:, नो परार्थः ।
हाणि बुड्डि-पदं
हानि-वृद्धि-पदम्
हानि - वृद्धि - पद
४६७. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, ४६७. पुरुष चार प्रकार के होते हैं
तद्यथा—
एकेन नामकः वर्धते, एकेन हीयते, एकेन नामकः वर्धते, द्वाभ्यां हीयते, द्वाभ्यां नामकः वर्धते, एकेन हीयते, द्वाभ्यां नामकः वर्धते द्वाभ्यां हीयते ।
१. कुछ पुरुष एक से बढ़ते हैं, एक से हीन होते हैं - ज्ञान से बढ़ते हैं, और मोह से हीन होते हैं, २. कुछ पुरुष एक से बढ़ते हैं, दो से हीन होते हैं ज्ञान से बढ़ते हैं, राग और द्वेष से हीन होते हैं, ३. कुछ पुरुष दो से बढ़ते हैं, एक से हीन होते हैं-ज्ञान और संयम से बढ़ते हैं, मोह से हीन होते हैं, ४. कुछ पुरुष दो से बढ़ते हैं, दो से हीन होते हैंज्ञान और संयम से बढ़ते हैं, राग और द्वेष से हीन होते हैं" ।
स्थान ४ : सूत्र ४६६-४६८
४. कुछ पुरुष न परिज्ञातसंज्ञ होते हैं और न परिज्ञातगृहवास ही होते हैं।
१. कुछ पुरुष इहार्थ - लौकिक प्रयोजन वाले होते हैं, परार्थ -- पारलौकिक प्रयोजन वाले नहीं होते, २. कुछ पुरुष परार्थ होते हैं, इहार्थ नहीं होते, ३. कुछ पुरुष इहार्थ भी होते हैं और परार्थ भी होते हैं, ४. कुछ पुरुष न इहार्थ होते हैं। और न परार्थ ही होते हैं ।
For Private & Personal Use Only
आकीर्ण- खलुंक-पदम्
आकीर्ण- खलुंक- पद
चत्वारः प्रकन्थकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा— ४६८. घोड़े चार प्रकार के होते हैं
१. कुछ घोड़े पहले भी आकीर्ण- वेगवान्
www.jainelibrary.org