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ठाणं (स्थान)
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स्थान ४ : सूत्र ४४६-४५० अरहतेहिं जायमाणेहि, अर्हत्सु जायमानेषु,
१. अर्हन्तों का जन्म होने पर, अरहतेहि पव्वयमाणेहि, अर्हत्सुप्रव्रजत्सु,
२. अर्हन्तों के प्रजित होने के अवसर पर, अरहताणं णाणुप्पायमहिमासु, अर्हतां ज्ञानोत्पादमहिमसु,
३. अहंन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने के अरहताणं परिणिव्वाणमहिमासु। अर्हतां परिनिर्वाणमहिमसु ।
उपलक्ष में किए जाने वाले महोत्सव पर,
४. अर्हन्तों के परिनिर्वाण-महोत्सव पर। ४४६. चहि ठाणेहि लोगंतिया देवा चतुभिः स्थानः लोकान्तिकाः देवाः मानुषं ४४६. चार कारणों से लोकान्तिक देव तत्क्षण
माणुसं लोगं हव्वमागच्छेज्जा, तं लोकं अर्वाक् आगच्छन्ति, तद्यथा-- मनुष्य-लोक में आते हैंजहाअर्हत्सु जायमानेषु,
१. अर्हन्तों का जन्म होने पर, अरहंतेहिं जायमाणेहि, अर्हत्सु प्रव्रजत्सु,
२. अर्हन्तों के प्रबजित होने के अवसर पर, अरहतेहि पन्वयमाहि, अर्हतां ज्ञानोत्पादमहिमसु,
३. अर्हन्तों को केवलज्ञान उत्पन्न होने के अरहताणं णाणुप्पायमहिमासु, अर्हतां परिनिर्वाणमहिमसु ।
उपलक्ष में किए जाने वाले महोत्सव पर, अरहंताणं परिणिव्वाणमहिमासु ।
४. अर्हन्तों के परिनिर्वाण-महोत्सव पर । दुहसेज्जा -पदं दुःखशय्या-पदम्
दुःखशय्या-पद ४५०. चत्तारि दुहसेज्जाओ पण्णत्ताओ, चतस्रः दुःखशय्याः प्रज्ञप्ता:, तद्यथा- ४५०. चार दुःखशय्या हैं
तं जहा१. तत्थ खलु इमा पढमा १. तत्र खलु इमा प्रथमा दुःखशय्या
१. पहली दुःखशय्या यह हैदुहसेज्जास मुण्डो भूत्वा अगाराद् अनगारितां
कोई व्यक्ति सुण्ड होकर अगार से अनसे णं मुंडे भवित्ता अगाराओ प्रवजित: नैर्ग्रन्थे प्रवचने शङ्कितः
गारत्व में प्रवजित होकर, निर्ग्रन्थ प्रवचन अणगारियं पन्वइए णिग्गंथे पाव- कांक्षितः विचिकित्सित: भेदसमापन्न:
में शंकित, कांक्षित, विचिकित्सित, भेदयणे संकिते कंखिते वितिगिच्छिते कलुषसमापन्नः निर्ग्रन्थं प्रवचनं नो समापन्न, फलुष-समापन्न होकर निर्ग्रन्थ भेयसमावणे कलुससमावण्णे श्रद्धत्ते नो प्रत्येति नो रोचते,
प्रवचन में श्रद्धा नहीं करता, प्रतीति नहीं णिग्गंथं पावयणं णो सद्दहति नैर्ग्रन्थं प्रवचनं अश्रद्दधानः अप्रतियन्
करता, रुचि नहीं करता, वह निर्ग्रन्थ णो पत्तियति णो रोएइ, अरोचमानः मन: उच्चावचं नियच्छति, प्रवचन पर अश्रद्धा करता हुआ, अप्रतीति णिग्गंथं पावयणं असद्दहमाणे विनिघातमापद्यते—प्रथमा दुःखशय्या ।
करता हुआ, अरुचि करता हुआ, मानअपत्तियमाणे अरोएमाणे मणं
सिक उतार-चढ़ाव और विनिघात [धर्मउच्चावयं णियच्छति, विणिघात
भ्रंशता] को प्राप्त होता है, मावज्जति–पढमा दुहसेज्जा। २. अहवारा दोच्चा दुहसेज्जा- २. अथापरा द्वितीया दुःखशय्या- २. दूसरी दुःखशय्या यह है-कोई से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ स मुण्डो भूत्वा अगाराद् अनगारितां व्यक्ति मुण्ड होकर अगार से अनगारत्व 'अणगारियं° पन्वइए सएणं अवजितः स्वेन लाभेन नो तुष्यति, में प्रवजित होकर अपने लाभ [भिक्षा में लाभेणं णो तुस्सति, परस्स लाभ- परस्य लाभमास्वादयति स्पृहयति
लब्ध आहार आदि] से सन्तुष्ट नहीं मासाएति पीहेति पत्थेति अभि- प्रार्थयति अभिलषति,
होकर दूसरे के लाभ का आस्वाद करता लसति,
है, स्पृहा करता है, प्रार्थना करता है,
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