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ठाणं (स्थान)
स्थान ४ : सूत्र ४४४-४४८
१. अर्हन्तों का जन्म होने पर, २. अर्हन्तों के प्रव्रजित होने के अवसर पर, ३. अर्हन्तों को केवलज्ञान उत्पन्न होने के उपलक्ष में किए जाने वाले महोत्सव पर, ४. अर्हन्तो के परिनिर्वाण महोत्सव पर
४४४. चह ठाणेहि देवा अब्भुद्विज्जा, चतुभिः स्थानैः देवाः अभ्युत्तिष्ठेयुः, ४४४. चार कारणों से देव अपने सिंहासन से
तद्यथा—
अभ्युत्थित होते हैं
१. अर्हन्तों का जन्म होने पर,
अर्हत्सु जायमानेषु अर्हत्सु प्रव्रजत्सु, अर्हतां ज्ञानोत्पादमहिमसु, अर्हतां परिनिर्वाणमहिमसु ।
अरहंतेहिं जायमाणे, अरहंतेहि पञ्चयमाणेह अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहंताणं परिणिव्वाणमहिमासु ।
तं जहा - अरहंतेहिं जायमाणेहि, अरहंतेहि पव्वयमाणेह अरहंताणं णाणुपायमहिमासु, अरहंताणं परिणिव्वाण महिमासु ।
अरहंतेहि जाय माह
अरहंतेहिं पव्वयमाणह अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहंताणं परिणिव्वाणमहिमासु ।
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२. अर्हन्तोंके प्रव्रजित होने के अवसर पर, ३. अर्हन्तों को केवलज्ञान उत्पन्न होने के उपलक्ष में किए जाने वाले महोत्सव पर, ४. अर्हन्तों के परिनिर्वाण महोत्सव पर ।
४४५. चउहि ठाणेहि देवाणं आसणाई चतुभिः स्थानं देवानां आसनानि ४४५. चार कारणों से देवों के आसन
होते हैं
चलेज्जा, तं जहा
चलेयुः, तद्यथा— अर्हत्सु जायमानेषु
१. अर्हन्तों का जन्म होने पर, २. अर्हन्तों के प्रव्रजित होने के अवसर पर, ३. अर्हन्तों को केवलज्ञान उत्पन्न होने के उपलक्ष में किए जाने वाले महोत्सव पर, ४. अर्हन्तों के परिनिर्वाण - महोत्सव पर । ४४६. चार कारणों से देव सिंहनाद करते हैं-१. अर्हन्तों का जन्म होने पर,
४४६. चह ठाणे देवा सीहणायं चतुभिः स्थानैः देवाः सिंहनाद कुर्युः, करेज्जा, तं जहा
तद्यथा
अरहंतेहि जायमा
अर्हत्सु जायमानेषु
अरहंतेहि पव्वयमाणे, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहंताणं परिणिव्वाणमहिमासु । ४४७. चह ठाणेहिं देवा चेलुक्खेवं
अर्हत्सु प्रव्रजत्सु, अर्हता ज्ञानोत्पादमहिमसु, अर्हतां परिनिर्वाणमहिमसु । चतुभिः स्थानः देवाः चेलोत्क्षेपं कुर्युः,
२. अर्हन्तों के प्रव्रजित होने के अवसर पर, ३. अर्हन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने के उपलक्ष में किए जाने वाले महोत्सव पर, ४. अर्हन्तों के परिनिर्वाण - महोत्सव पर । ४४७. चार कारणों से देव चेलोत्क्षेप करते हैं— १. अर्हन्तों का जन्म होने पर,
तद्यथा—
करेज्जा, तं जहा अरहंतेहिं जायमाणेहि,
अर्हत्सु जायमानेषु
अरहंतेहि पव्वयमाणेहि, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहंताणं परिणिव्वाणमहिमासु । ४४८. चउहि ठाणेहि देवाणं चेइयरुक्खा चलेज्जा, तं जहा -
अर्हत्सु प्रव्रजत्सु, अर्हतां ज्ञानोत्पादमहिमसु, अर्हतां परिनिर्वाण महिमसु ।
२. अर्हन्तों के प्रब्रजित होने के अवसर पर, ३. अर्हन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने के उपलक्ष में किए जाने वाले महोत्सव पर, ४. अर्हन्तों के परिनिर्वाण महोत्सव पर ।
चतुभिः स्थानैः देवानां चैत्यरुक्षाः ४४८. चार कारणों से देवताओं के चैत्यवृक्ष चलेयुः, तद्यथा— चलित होते हैं
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अर्हत्सु जायमानेषु
अर्हत्सु प्रव्रजत्सु
अर्हतां ज्ञानोत्पादमहिमसु, अर्हतां परिनिर्वाणमहिमसु ।
अर्हत्सु प्रव्रजत्सु अर्हता ज्ञानोत्पादमहिमसु, अर्हतां परिनिर्वाणमहिमसु ।
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