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ठाणं (स्थान)
इच्चेतेहि चउहि ठाणेह अहुगोववण्णे देवे देवलोएस इच्छेज्ज माणुसं लोगं हव्वमागच्छितए संचाएति हव्वमागच्छित्तए ।
अंधार उज्जोयाइ - पदं ४३५. चहि ठाणेह लोगंधगारे सिया,
तं जहा
अरहंतेहि वोच्छिज्जमाणेह, अरहंतपण्णत्ते धम्मे वोच्छिज्जमाणे, पुव्वगते वोच्छिज्जमाणे, जायतेजे वोच्छिज्जमाणे । ४३६. चहं ठाणेहिं लोउज्जोते सिया, तं जहाअरहंतेहिं जायमाणेहि, अरहंतेहि पव्वयमाणेह, अरहंताणं णाणुप्पायमहिमासु, अरहंताणं परिनिव्वाणमहिमासु ।
तं जहाअरहंतेहि जायमाणेहि,
अरहंतेहिं पब्वयमाणेह अरहंताणं णाणुणायमहिमासु, अरहंताणं परिणिव्वाणमहिमासु ।
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इत्येतैः चतुर्भिः स्थानैः अधुनोपपन्नः देवः देवलोकेषु इच्छेत् मानुषं लोकं अर्वाग् आगन्तुं शक्नोति अग् आगन्तुम् ।
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अन्धकार- उद्योतादि-पदम्
चतुभिः स्थानैः लोकान्धकारं स्यात्
तद्यथा
अर्हत्सु
व्यवच्छिद्यमानेषु
अर्हत्प्रज्ञप्ते धर्मे व्यवच्छिद्यमाने,
पूर्व
व्यवच्छिद्यमाने, व्यवच्छिद्यमाने ।
जाततेजसि
चतुभिः स्थानैः लोकोद्योतः स्यात्,
तद्यथा
अर्हत्सु जायमानेषु
अर्हत्सु प्रव्रजत्सु अर्हतां ज्ञानोत्पादमहिमसु, अर्हतां परिनिर्वाणमहिमसु ।
स्थान ४: सूत्र ४३५-४३८ इन चार कारणों से देवलोक में तत्काल उत्पन्न देव शीघ्र ही मनुष्य लोक में आना चाहता है और आ भी सकता है।
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अन्धकार - उद्योतादि-पद ४३५. चार कारणों से मनुष्य लोक में अन्धकार
होता है
१. अर्हन्तों का जन्म होने पर, २. अर्हन्तों के प्रव्रजित होने के अवसर पर, २. अर्हन्तों को केवलज्ञान उत्पन्न होने के उपलक्ष में किए जाने वाले महोत्सव पर, ४. अर्हन्तों के परिनिर्वाण महोत्सव पर ।
४३७. चउहि ठाणेहि देबंधगारे सिया, चतुभिः स्थानैः देवान्धकारं स्यात्, ४३७. चार कारणों से देवलोक में अन्धकार तं जहा -
होता है
तद्यथाअर्हत्सु अर्हत्प्रज्ञप्ते धर्मे व्यवच्छिद्यमाने,
व्यवच्छिद्यमानेषु
अरहंतेहि वोच्छिज्ज माणेहि, अरहंतपण्णत्ते धम्मे वोच्छिज्जमाणे, पुव्वगते वोच्छिज्जमाणे, जायतेजे वोच्छिज्जमाणे । ४३८. चउहि ठाणेहिं देवज्जोते सिया,
पूर्वंग
व्यवच्छिद्यमाने, व्यवच्छिद्यमाने ।
जाततेजसि
चतुभिः स्थानैः देवोद्योतः स्यात्
तद्यथा—
अर्हत्सु जायमानेषु
अर्हत्सु प्रव्रजत्सु
अर्हतां ज्ञानोत्पादमहिमसु, अर्हतां परिनिर्वाणमहिमसु ।
१. अर्हन्तों के व्युच्छिन्न होने पर,
२. अर्हत् प्रज्ञप्त धर्म के व्युच्छिन्न होने
पर, ३. पूर्वगत [ चौदह पूर्वो ] के व्युच्छिन्न होने पर, ४. अग्नि के व्युच्छिन्न होने पर । ४३६. चार कारणों से मनुष्य लोक में उद्योत
होता है
१. अर्हन्तों के व्युच्छिन्न होने पर, २. अहंत प्रज्ञप्त धर्म के वच्छिन्न होने के अवसर पर, ३. पूर्वगत के व्युच्छिन्न होने पर, ४. अग्नि के व्युच्छिन्न होने पर । ४३८. चार कारणों से देवलोक में उद्योत होता
है---
१. अर्हन्तों का जन्म होने पर, २. अर्हन्तों के प्रब्रजित होने के अवसर पर, ३. अर्हन्तों के केवलज्ञान उत्पन्न होने के उपलक्ष में किए जाने वाले महोत्सव पर, ४. अर्हन्तों के परिनिर्वाण महोत्सव पर ।
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