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________________ ठाणं (स्थान) ४११ स्थान ४ : सूत्र ४२७-४२८ महाकम्म-अप्पकम्म-णिग्गंथी-पदं महाकर्म-अल्पकर्म-निर्ग्रन्थी-पदम् महाकर्म-अल्पकर्म-निर्ग्रन्थी-पद ४२७. चत्तारि णिग्गंथीओ पण्णत्ताओ, चतस्रः निर्ग्रन्थ्यः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- ४२७. निर्ग्रन्थियां चार प्रकार की होती हैं--- तं जहा१. रातिणिया समणी णिग्गंथी' १. रात्निकी श्रमणी निर्ग्रन्थी महाकर्मा १. कुछ रात्निक श्रमणी निर्ग्रन्थियां महामहाकम्मामहाकिरिया अणायावी महाक्रिया अनातापिनी अशमिता धर्मस्य कर्मा, महाक्रिय, अनातापी [अतपस्विनी] असमिता धम्मस्स अणाराधिया अनाराधिका भवति, और अशमित होने के कारण धर्म की भवति, सम्यक् आराधना करने वाली नहीं होती, २. रातिणिया समणी णिग्गंथी २. रात्निकी श्रमणी निर्ग्रन्थी अल्पकर्मा २. कुछ रात्निक श्रमणी निर्ग्रन्थियां अल्पअप्पकम्मा अप्पकिरिया आतावी अल्पक्रिया आतापिनी शमिता धर्मस्य कर्मा, अल्पक्रिय, आतापी [तपस्विनी] समिता धम्मस्स आराहिया आराधिका भवति, और शमित होने के कारण धर्म की भवति, सम्यक् आराधना करने वाली होती हैं, ३. ओमरातिणिया समणी णिग्गंथी ३. अवमरात्निका श्रमणी निर्ग्रन्थी महा- ३. कुछ अवमरानिक श्रमणी निर्ग्रन्थियां महाकम्मा महाकिरिया अणायावी कर्मा महाक्रिया अनातापिनी अशमिता महाकर्मा, महाक्रिय, अनातापी और असमिता धम्मस्स अणाराधिया धर्मस्य अनाराधिका भवति, अशमित होने के कारण धर्म की सन्या भवति, आराधना करने वाली नहीं होती, ४. ओमरातिणिया समणीणिग्गंथी ४. अवमरात्निका श्रमणी निर्ग्रन्थी अल्प- ४. कुछ अवमरात्निक श्रमणी निर्ग्रन्थियां अप्पकम्मा अप्पकिरिया आतावी कर्मा अल्पक्रिया आतापिनी शमिता अल्पकर्मा, अल्पक्रिय, आतापी और शमित समिता धम्मस्स आराहिया धर्मस्य आराधिका भवति। होने के कारण धर्म की सम्यक् आराधना भवति । करने वाली होती हैं। महाकम्म-अप्पकम्म- महाकर्म-अल्पकर्म महाकर्म-अल्पकर्मसमणोवासग-पदं श्रमणोपासक-पदम् श्रमणोपासक-पद ४२८. चत्तारि समणोवासगा पण्णत्ता, तं चत्वारः श्रमणोपासकाः प्रज्ञप्ताः, ३२८. श्रमणोपासक चार प्रकार के होते हैं-- जहा तद्यथा१. राइणिए समणोवासए महा- १. रात्निकः श्रमणोपासकः महाकर्मा । १. कुछ रानिक श्रमणोपासक महाकर्मा, कम्मे 'महाकिरिए अणायावी महाक्रियः अनातापी अशमितः धर्मस्य महा क्रिय, अनातापी [अतपस्वी] और असमिते धम्मस्स अणाराधए अनाराधको भवति, अशमित होने के कारण धर्म की सम्यक भवति, आराधना करने वाले नहीं होते, २. राइणिए समणोवासए अप्प- २. रात्निकः श्रमणोपासक: अल्पकर्मा २. कुछ रात्निक श्रमणोपासक अल्पकर्मा, कम्मे अप्पकिरिए आतावी समिए अल्पक्रिय: आतापी शमितः धर्मस्य अल्पक्रिय, आतापी और शमित होने के धम्मस्स आराहए भवति, आराधको भवति, कारण धर्म की सम्यक् आराधना करने वाले होते हैं, जति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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