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ठाणं (स्थान)
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स्थान ४ : सूत्र ४२५-४२६
४२५. चत्तारि अंतेवासी पण्णत्ता, तं चत्वारः अन्तेवासिनः प्रज्ञप्ता:, तदयथा-४२५. अन्तेवासी चार प्रकार के होते हैं--- जहाउद्देशनान्तेवासी नामैकः,
१. कुछ मुनि एक आचार्य के उद्देशनाउद्देसणंतेवासी णाममेगे, नो वाचनान्तेवासी,
अन्तेवासी होते हैं, किन्तु वाचना-अन्तेणो वायणंतेवासी, वाचनान्तेवासी नामकः,
वासी नहीं होते, २. कुछ मुनि एक आचार्य वायणंतेवासी णामोंगे, नो उद्देशनान्तेवासी,
के वाचना-अन्तेवासी होते हैं, किन्तु णो उद्देसणंतेवासी, एक: उद्देशनान्तेवास्यपि,
उद्देशना-अन्तेवासी नहीं होते, ३. कुछ एगे उद्देसणंतेवासीवि, वाचनान्तेवास्यपि,
मुनि एक आचार्य के उद्देशना-अन्तेवासी वायणंतेवासीवि, एक: नो उद्देशनान्तेवासी,
भी होते हैं और वाचना-अन्तेवासी भी एगे णो उद्देसणंतेवासी, नो वाचनान्तेवासी.
होते हैं, ४. कुछ मुनि एक आचार्य के न णो वायणंतेवासी_धम्मंतेवासी। धर्मान्तेवासी।
उद्देशना-अन्तेवासी होते हैं और न वाचनाअन्तेवासी होते हैं। यहां अन्तेवासी धर्मान्तवासी की कक्षा के
महाकम्म-अप्पकम्म-णिग्गंथ-पदं महाकर्म-अल्पकर्म-निर्ग्रन्थ-पदम् महाकर्म-अल्पकर्म-निर्ग्रन्थ-पद ४२६. चत्तारि णिग्गंथा पण्णता, तं जहा- चत्वार: निर्ग्रन्थाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- ४२६. निर्ग्रन्थ चार प्रकार के होते हैं
१. रातिणिए समणे णिग्गंथे महा- १. रात्निक: श्रमणः निर्ग्रन्थः महाकर्मा १. कुछ रालिक" [दीक्षा-पर्याय में बड़े कम्मे, महाकिरिए अणायावी महाक्रियः अनातापी अशमितः धर्मस्य श्रमण निर्ग्रन्थ महाकर्मा, महाक्रिय, अनाअसमिते धम्मस्स अणाराधए अनाराधको भवति,
तापी [अतपस्वी और अमित होने के भवति,
कारण धर्म की सम्यक् आराधना करने
वाले नहीं होते, २. रातिणिए समणे णिग्गंथे अप्प- २. रात्निकः श्रमणः निर्ग्रन्थः अल्पकर्मा २. कुछ रात्निक श्रमण निर्ग्रन्थ अल्पकर्मा, कम्मे अप्पकिरिए आतावी समिए अल्पक्रियः आतापी शमितः धर्मस्य अल्पक्रिय, आतापी [तपस्वी] और धम्मस्स आराहए भवति, आराधको भवति,
शामित होने के कारण धर्म की सम्यक
आराधना करने वाले होते हैं, ३. ओमरातिणिए समणे णिग्गंथे ३. अवमरात्निकः श्रमणः निर्ग्रन्थः ३. कुछ अवमरालिक [दीक्षा पर्याय में महाकम्मे महाकिरिए अणातावी महाकर्मा महाक्रियः अनातापी अशमितः छोटे ] श्रमण-निर्ग्रन्थ महाकर्मा, महाक्रिय, असमिते धम्मस्स अणाराहए धर्मस्य अनाराधको भवति,
अनातापी और अमित होने के कारण धर्म भवति,
की सम्यक् आराधना करने वाले नहीं होते, ४. ओमरातिणिए समणे णिग्गंथे ४. अवमरात्निकः श्रमणः निर्ग्रन्थः अल्प
४. कुछ अवमरालिक श्रमण निर्ग्रन्थ अप्पकम्मे अप्पकिरिए आतावी कर्मा अल्पक्रियः आतापी शमितः धर्मस्य अल्पकर्मा, अल्पक्रिय, आतापी और शमित समिते धम्मस्स आराहए भवति। आराधको भवति ।
होने के कारण धर्म की सम्यक् आराधना करने वाले होते हैं।
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