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________________ ठाणं (स्थान) ४०२ स्थान ४: सूत्र ३६७-४०० ३६७. 'चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, ३६७. पुरुष चार प्रकार के होते हैं--- जहातद्यथा १. कुछ पुरुष कुल-सम्पन्न होते हैं, रूपकुलसंपण्णे णाममेगे, कुलसम्पन्न: नामैकः, नो रूपसम्पन्नः, सम्पन्न नहीं होते, २. कुछ पुरुष रूपणो रूवसंपण्णे, रूपसम्पन्नः नामैकः, नो कुलसम्पन्नः, । सम्पन्न होते हैं, कुल-सम्पन्न नहीं होते, रूवसंपण्णे णाममेगे, एकः कुलसम्पन्नोऽपि, रूपसम्पन्नोऽपि, ३. कुछ पुरुष कुल-सम्पन्न भी होते हैं और णो कुलसंपण्णे, एक: नो कूलसम्पन्न:, नो रूपसम्पन्नः । रूप-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ पुरुष न एगे कुलसंपण्णेवि, रूवसंपण्णेवि, कुल-सम्पन्न होते हैं और न रूप-सम्पन्न एगे णो कुलसंपण्णे, णो रूवसंपण्णे । होते हैं। ३६८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, ३६८. पुरुष चार प्रकार के होते हैंजहातद्यथा १. कुछ पुरुष कुल-सम्पन्न होते हैं, श्रुतकुलसंपण्णे णाममेगे, कुलसम्पन्नः नामैकः, नो श्रुतसम्पन्नः, सम्पन्न नहीं होते, २. कुछ पुरुष श्रुतणो सुयसंपण्णे, श्रुतसम्पन्नः नामैकः, नो कुलसम्पन्नः, सम्पन्न होते हैं, कुल-सम्पन्न नहीं होते, सुयसंपण्णे णाममेगे, एकः कुलसम्पन्नोऽपि, श्रुतसम्पन्नोऽपि, ३. कुछ पुरुष कुल-सम्पन्न भी होते हैं णो कुलसंपण्णे, एकः नो कुलसम्पन्नः, नो श्रुतसम्पन्नः। और श्रुत-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ एगे कुलसंपण्णेवि, सुयसंपण्णेवि, पुरुष न कुल-सम्पन्न होते हैं और न श्रुतएगे णो कुलसंपण्णे, णो सुयसंपण्णे। सम्पन्न होते हैं। ३६६. चतारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, ३६६. पुरुष चार प्रकार के होते हैंजहातद्यथा १. कुछ पुरुष कुल-सम्पन्न होते हैं, शीलकुलसंपण्णे णाममेगे, कूलसम्पन्नः नामकः, नो शीलसम्पन्नः. सम्पन्न नहीं होते, २. कुछ पुरुष शीलणो सीलसंपण्णे, शीलसम्पन्न: नामैकः, नो कुलसम्पन्नः, सम्पन्न होते हैं, कुल-सम्पन्न नहीं होते, सीलसंपण्णे णाममेगे, एकः कुलसम्पन्नोऽपि, शीलसम्पन्नोऽपि, ३. कुछ पुरुष कुल-सम्पन्न भी होते हैं णो कुलसंपण्णे, एक: नो कुलसम्पन्नः, नो शीलसम्पन्नः। और शील-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ एगे कुलसंपण्णेवि, सीलसंपण्णेवि, पुरुष न कुल-सम्पन्न होते हैं और न शीलएगे णो कुलसंपण्णे, णो सीलसंपण्णे। सम्पन्न होते हैं। या पण्णत्ता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, ४००. पुरुष चार प्रकार के होते हैंजहातद्यथा १. कुछ पुरुष कुल-सम्पन्न होते हैं, चरित्नकुलसंपण्णे णाममेगे, कुलसम्पन्नः नामकः, नो चरित्रसम्पन्नः, सम्पन्न नहीं होते, २. कुछ पुरुष चरित्रणो रित्तसंपण्णे, चरित्रसम्पन्नः नामैकः, नो कुलसम्पन्नः, सम्पन्न होते हैं, कुल-सम्पन्न नहीं होते, चरित्तसंपण्णे णाममेगे, एकः कूलसम्पन्नोऽपि, चरित्रसम्पन्नोऽपि, ३. कुछ पुरुष कुल-सम्पन्न भी होते हैं णो कुलसंपण्णे, एक: नो कुलसम्पन्नः, नो चरित्रसम्पन्नः। और चरित्र-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ एगे कुलसंपण्णेवि, चरित्तसंपण्णेवि, पुरुष न कुल-सम्पन्न होते हैं और न एगे णो कुलसंपण्णे णो चरित्तसंपण्णे चरित्र-सम्पन्न होते हैं। ४००. चत्ता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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