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________________ ठाणं (स्थान) जहा - उच्चे णाममेगे उच्चच्छंदे, उच्चे णाममेगे णीयच्छंदे, णीए णाममेगे उच्चच्छंदे, णीए णाममेगे णीयच्छंदे । उच्चणीय-पदं उच्चनीच पदम् उच्चनीच-पद ३६८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, ३६८. पुरुष चार प्रकार के होते हैं- तद्यथा— उच्चः नामैक: उच्चच्छन्दः, उच्चः नामैक: नीचच्छन्दः, १. कुछ पुरुष शरीर - कुल आदि में उच्च होते हैं और उनके विचार भी उच्च होते हैं, २. कुछ पुरुष शरीर - कुल आदि से उच्च होते हैं पर उनके विचार नीचे होते हैं, ३. कुछ पुरुष शरीर-कुल आदि से नीचे होते हैं पर उनके विचार उच्च होते नीचः नामैक: उच्चच्छन्दः, नीचः नामैक: नीचच्छन्दः । हैं, ४. कुछ पुरुष शरीर-कुल आदि से भी नीचे होते हैं और उनके विचार भी नीचे होते हैं । लेश्या-पद लेश्या-पदम् असुरकुमाराणां चतस्रः लेश्याः प्रज्ञप्ताः, ३६६. असुरकुमार देवताओं के चार लेश्याएं होती हैं १. कृष्ण लेश्या, २. नील लेश्या, ३. कापोत लेश्या, ४. तेजो लेश्या । ३७०. इसी प्रकार शेष भवनपति देवों, पृथ्वी कायिक, अप्कायिक तथा वनस्पतिकायिक जीवों और वानमन्तर देवों इन सबके चार-चार लेश्याएं होती हैं । युक्त अयुक्त-पदम् युक्त अयुक्त पद चत्वारि यानानि प्रज्ञप्तानि तद्यथा ३७१. यान चार प्रकार के होते हैं लेसा - पदं ३६९. असुरकुमाराणं चत्तारि लेसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - कण्हलेसा, नीललेसा, काउलेसा, तेजसा । ३७०. एवं — जाव थणियकुमाराणं । एवं - पुढ विकाइयाणं आउवणस्सइ काइयाणं वाणमंतराणं सव्र्व्वेसि जहा असुरकुमाराणं । जुत्त- अजुत्त-पदं ३७१. चत्तारि जाणा पण्णत्ता, तं जहा जुत्ते णाममेगे जुत्ते, जुत्ते णाममेगे अजुत्ते, अजुत्ते णाममेगे जुत्ते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्ते । ३६१ Jain Education International तद्यथा— कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या, तेजोलेश्या । एवम् — यावत् स्तनितकुमाराणाम् । एवम् पृथिवीकायिकानां अप्वनस्पतिकायिकानां वानमन्तराणां सर्वेषा यथा असुरकुमाराणाम् । युक्तं नामैकं युक्तं, युक्तं नामैकं अयुक्तं, अयुक्तं नामैकं युक्तं, अयुक्तं नामैकं अयुक्तम् । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया एवमेव चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, पण्णत्ता, त जहा तद्यथा— जुत्ते णाममेगे जुत्ते, जुत्ते णाममे अजुत्ते, युक्तः नामैकः युक्तः, युक्तः नामैक: अयुक्तः, स्थान ४ : सूत्र ३६८-३७१ For Private & Personal Use Only ९. कुछ यान युक्त और युक्त-रूप वाले होते हैं - बैल आदि से जुड़े हुए होकर वस्त्राभरणों से सुशोभित होते हैं, २. कुछ यान युक्त होकर अयुक्त रूप वाले होते हैं, ३. कुछ यान अयुक्त होकर युक्त रूप वाले होते हैं, ४. कुछ यान अयुक्त होकर अयुक्त रूप वाले होते हैं । इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के होते हैं - १. कुछ पुरुष युक्त और युक्त रूप www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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