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________________ ठाणं (स्थान) ३६० स्थान ४ : सूत्र ३६४-३६७ . हरिएसबले णं अणगारे अत्थ- अनगारः अस्तमितोदितः, काल: मितोदिते, काले णं सोयरिये शौकरिक: अस्तमितास्तमितः । अत्थमितत्थमिते । होते हैं--प्रारम्भ में भी अनुन्नत तथा अन्त में भी अनुन्नत, जैसे-काल शौकरिक । जुम्म-पदं युग्म-पदम् युग्म-पद ३६४. चत्तारि जुम्मा पण्णत्ता, तं जहा- चत्वारः युग्माः प्रज्ञप्ताः, तदयथा_ ३६४. युग्म [ राशि-विशे कडजुम्मे, तेयोए, कृतयुग्मः, त्र्योजः, द्वापरयुग्मः, कल्योजः । १. कृत-युग्म-जिस राशि में से चार दावरजुम्मे, कलिओए। चार निकालने के बाद शेष चार रहे, २. योज-जिस राशि में से चार-चार निकालने के बाद शेष तीन रहे, ३. द्वापरयुग्म-जिस राशि में से चार-चार निकालने के बाद शेष दो रहे, ४. कल्योजजिस राशि में से चार-चार निकालने के बाद शेष एक रहे। ३६५. रइयाणं चत्तारि जुम्मा पण्णत्ता, नैरयिकाणां चत्वारः युग्माः प्रज्ञप्ताः, ३६५. नैरविकों के चार युग्म होते हैं--- तं जहातद्यथा १. कृत-युग्म, २. योज, ३. द्वापर-युग्म, कडजुम्मे, तेओए, कृतयुग्मः, योजः, द्वापरयुग्मः, कल्योजः। ४. कल्योज। दावरजुम्मे, कलिओए। ३६६. एवं—असुरकुमाराणं जाव थणिय- एवम्-असुरकुमाराणां यावत् ३६६. इसी प्रकार असुरकुमार से स्तनितकुमार स्तनितकुमाराणाम् । तक तथा पृथ्वी, अप, तेजस, वायु, वनएवं—पुढविकाइयाणं आउ-तेउ- एवम्—पृथिवीकायिकानां अप्-तेजस्- स्पति, द्वीन्द्रिय, वीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, वाउ-वणस्सतिकाइयाणं बंदियाणं वायु-वनस्पतिकायिकानां द्वीन्द्रियाणां पंचेन्द्रियतिर्यकयोनिज, मनुष्य, वानतेंदियाणं चरिदियाणं पंचिदिय- त्रीन्द्रियाणां चतुरिन्द्रियाणां पञ्चेन्द्रिय- मन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक-इन तिरिक्खजोणियाणं मणुस्साणं तिर्यग्योनिकानां मनुष्याणां वानमन्तर- सबके नैरयिकों की भांति चार-चार युग्म वाणमंतरजोइसियाणं वेमाणियाणं- ज्योतिष्कानां वैमानिकानां—सर्वेषां होते हैं। सव्वेसि जहा गैरइयाणं। यथा नै रयिकाणाम्। सूर-पदं शूर-पदम् शर-पद ३६७. चत्तारि सूरा पण्णत्ता, तं जहा- चत्वारः शूराः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- ३६७. शूर चार प्रकार के होते हैंखंतिसूरे, तवसूरे, क्षान्तिशूरः, तपःशूरः, दानशूरः, युद्धशूरः। १. शान्ति शूर, २. तपः शूर, दाणसूरे, जुद्धसूरे, क्षान्तिशूराः अर्हन्तः, तपःशूराः, अनगारा, ३. दान शूर, ४. युद्ध शूर। खंतिसूरा अरहंता, दानशूरो वैश्रमणः, युद्धशूरो वासुदेवः । अर्हन्त क्षान्ति शूर होते हैं, तवसूरा अणगारा, अनगार तपः शूर होते हैं, दाणसूरे वेसमणे, वैश्रमण दान शूर होता है, जुद्धसूरे वासुदेवे। वासुदेव युद्ध शूर होता है। कुमाराणं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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