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ठाणं (स्थान)
३८८
अपणो णाममेगे पत्तियं पवेसेति, आत्मनः नामकः प्रीतिकं प्रवेशयति, णो परस्स, नो परस्य, परस्स णाममेगे पत्तियं पवेसेति परस्य नामैकः प्रीतिकं प्रवेशयति, णो अप्पणी, नो आत्मनः,
एगे अप्पणोवि पत्तियं पवेसेति, एकः आत्मनोऽपि प्रीतिकं प्रवेशयति, परस्सवि, परस्यापि,
एगे जो अपणो पत्तियं पवेसेति, एकः नो आत्मनः प्रीतिकं प्रवेशयति, णो परस्स । नो परस्य ।
उपकार-पदं
३६१. चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता, तं
जहा -
पत्तोवए, पुप्फोवए,
फलोवर, छायो ।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया एवमेव चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि,
तद्यथा-
पण्णत्ता, तं जहा
पत्तोवाक्समाणे,
फोवाक्समाणे,
फलोवाक्समाणे,
छायोवारुखसमाणे ।
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आसास-पदं
३६२. भारणं वहमाणस्स चत्तारि आसासा पण्णत्ता, तं जहा१. जत्थ णं अंसाओ अंसं साहरइ, तत्थवि य से एगे आसासे पण्णत्ते, २. जत्थवि य णं उच्चारं वा पासवणं वा परिवेति तत्थवि य से एगे आसासे पण्णत्ते,
३. जत्थवि य णं णागकुमारावासंसि वा सुवण्णकुमारावासंसि वा वासं उवेति, तत्थवि य से एगे आसासे पण्णत्ते,
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उपकार-पदम्
चत्वारः रुक्षाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथापत्रोपगः, पुष्पोपगः, फलोपगः, छायोपगः ।
पत्रोपगरुक्षसमानः, पुष्पोपगरुक्षसमानः,
फलोपगरुक्षसमानः, छायोपगरुक्षसमानः ।
स्थान ४ : सूत्र ३६१-३६२
१. कुछ पुरुष अपने मन में प्रीति [ या विश्वास ] का प्रवेश कर पाते हैं, पर दूसरों के मन में नहीं, २. कुछ पुरुष दूसरों के मन में प्रीति का प्रवेश कर पाते हैं, पर अपने मन में प्रीति का प्रवेश नहीं कर पाते, ३. कुछ पुरुष अपने मन में भी प्रीति का प्रवेश कर पाते हैं और दूसरों के मन में भी प्रीति का प्रवेश कर पाते हैं, ४. कुछ पुरुष न अपने मन में प्रीति का प्रवेश कर पाते हैं और न दूसरों के मन में भी प्रीति का प्रवेश कर पाते हैं।
इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के होते हैं--- १. पत्तों वाले वृक्षों के समानसूत्र के दाता, २. फूलों वाले वृक्षों के समान - अर्थ के दाता, ३. फलों वाले वृक्षों के समान सूत्रार्थ का अनुवर्तन और संरक्षण करने वाले, ४. छाया वाले वृक्षों के समान सूत्रार्थ की सतत उपासना करने वाले । ५
आश्वास-पदम्
आश्वास-पद
भारं बहुमानस्य चत्वारः आश्वासाः ३६२. भारवाही के लिए चार आश्वास-स्थान प्रज्ञप्ताः, तद्यथा
[विश्राम ] होते हैं
१. यत्र अंसाद् असं संहरति, तत्राऽपि च तस्य एकः आश्वासः प्रज्ञप्तः, २. यत्राऽपि च उच्चारं वा प्रस्रवणं वा परिष्ठापयति, तत्रापि च तस्य एकः आश्वास: प्रज्ञप्तः,
१. पहला आश्वास तब होता है जब वह भार को एक कंधे से दूसरे कंधे पर रख लेता है,
३. यत्राऽपि च नागकुमारावासे वा सुपर्णकुमारावासे वा वासं उपैति तत्रापि च तस्य एकः आश्वासः प्रज्ञप्तः,
२. दूसरा आश्वास तब होता है जब वह लघुशंका या बड़ी शंका करता है, ३. तीसरा आश्वास तब होता है जब वह नागकुमार, सुपर्णकुमार आदि के आवासों में [ रात्रिकालीन ] निवास करता है,
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उपकार-पद
३६१. वृक्ष चार प्रकार के होते हैं
१. पत्तों वाले, २. फूलों वाले,
३. फलों वाले, ४. छाया वाले ।
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