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ori (स्थान)
पत्तियअपत्तिय-पदं
३५७. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -
पत्तियं करेमीतेगे पत्तियं करेति, पत्तियं करेमीलेगे अप्पत्तियं करेति, अप्पत्तियं करेमीतेगे पत्तियं करेति, अप्पत्तियं करेमीतेगे अप्पत्तियं करेति ।
३८७
प्रीतिक- अप्रीतिक-पदम् चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि
तद्यथा
प्रीतिकं करोमीत्येकः प्रीतिकं करोति, प्रीतिकं करोमीत्येकः अप्रीतिकं करोति, अप्रीतिकं करोमीत्येकः प्रीतिकं करोति, अप्रीतिकं करोमीत्येकः अप्रीतिकं करोति ।
जहा
पत्तियं पवेसामीतेगे पत्तियं पवेसेति, पत्तियं पवेसामीतेगे अप्पत्तियं पवेसेति, अप्पत्तियं पवेसामीतेगे पत्तियं प्रवेशयति, पवेसेति, अप्पत्तियं पवेसामीतेगे, अप्पत्तियं प्रवेशयति, पवेसेति ।
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१. कुछ पुरुष प्रीति [ या प्रतीति ] करूं ऐसा सोचकर प्रीति ही करते हैं, २. कुछ पुरुष प्रीति करूं ऐसा सोचकर अत्रीति करते हैं, ३. कुछ पुरुष अप्रीति करूं ऐसा सोचकर प्रीति करते हैं, ४. कुछ पुरुष अप्रीति करूं ऐसा सोचकर अप्रीति ही करते हैं ।
३५८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि ३५८. पुरुष चार प्रकार के होते हैं --
तद्यथा
जहा - अध्यण्णो णाममेगे पत्तियं करेति, णो परस्स, परस्स णाममेगे पत्तियं करेति, णो अप्पणी,
आत्मनः नामैकः प्रीतिकं करोति, नो परस्य,
१. कुछ पुरुष | जो स्वार्थी होते हैं ] अपने पर प्रीति [ या प्रतीति ] करते हैं दूसरों पर नहीं करते, २. कुछ पुरुष दूसरों पर प्रीति करते हैं अपने पर नहीं करते,
परस्य नामकः प्रीतिकं करोति, नो आत्मनः,
३. कुछ पुरुष अपने पर भी प्रीति करते हैं और दूसरों पर भी प्रीति करते हैं,
४
एगे अप्पणोवि पत्तियं करेति, एकः आत्मनोऽपि प्रीतिकं करोति, परस्सवि, परस्यापि, एगे जो अप्पणो पत्तियं करेति, एकः नो आत्मनः प्रीतिकं करोति, णो परस्स । नो परस्य । ३५६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि ३५६. पुरुष चार प्रकार के होते हैं—
- कुछ पुरुष अपने पर भी प्रीति नहीं करते तथा दूसरों पर भी प्रीति नहीं करते ।
१. कुछ पुरुष दूसरे के मन में प्रीति [ या विश्वास ] उत्पन्न करना चाहते हैं और वैसा कर देते हैं, २. कुछ पुरुष दूसरे के मन में प्रीति उत्पन्न करना चाहते हैं, किन्तु वैसा कर नहीं पाते, ३. कुछ पुरुष दूसरे के मन में अप्रीति उत्पन्न करना चाहते हैं, किन्तु वैसा कर नहीं पाते, ४. कुछ पुरुष दूसरे के मन में अप्रीति उत्पन्न करना चाहते हैं और वैसा कर देते हैं। "
३६०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, ३६०. पुरुष चार प्रकार के होते हैं
जहा -
तद्यथा
तद्यथा
प्रीतिकं प्रवेशयामीत्येकः प्रीतिकं प्रवेशयति,
प्रीतिकं प्रवेशयामीत्येकः अप्रीतिकं
अप्रीतिकं प्रवेशयामीत्येकः प्रीतिकं
अप्रीतिकं प्रवेशयामीत्येकः अप्रीतिकं प्रवेशयति ।
स्थान ४ : सूत्र ३५७-३६०
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प्रीतिक- अप्रीतिक- पद ३५७. पुरुष चार प्रकार के होते हैं
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