SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 423
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ है। ठाणं (स्थान) ३८२ स्थान ४ : सूत्र ३४३-३४४ ३४२. तत्थ णं जे से पच्चथिमिल्ले तत्र योसौ पाश्चात्यः अञ्जनकपर्वतः, ३४२. पश्चिम के अञ्जन पर्वत की चारों दिशाओं अंजणगपव्वते, तस्स णं चउद्दिस तस्य चतुर्दिशि चतस्रः नन्दाः पुष्करिण्यः में चार नन्दा पुष्करिणियां हैं-- चत्तारि गंदाओ पुक्खरिणीओ प्रज्ञप्ताः, तद्यथा १. नंदिषेणा, २. अमोघा, पण्णत्ताओ, तं जहा—णंदिसेणा, नन्दिषेणा, अमोघा, गोस्तूपा, सुदर्शना। ३. गोस्तूपा, ४. सुदर्शना। अमोहा, गोथूभा, सुदंसणा। शेषं तच्चेव, तथैव दधिमुखपर्वताः, तथैव शेष वर्णन पूर्व के अञ्जन पर्वत के समान सेसं ते चेव, तहेव दधिमुहगपव्वता, सिद्धायतनानि यावत् वनषण्डानि। तहेव सिद्धाययणा जाव वणसंडा। ३४३. तत्थ णं जे से उत्तरिल्ले अंजणग- तत्र योसौ उदीच्यः अञ्जनकपर्वतः, ३४३. उत्तर के अञ्चन पर्वत की चारों दिशाओं पव्वते, तस्स णं चउद्दिसि चत्तारि तस्य चदुर्दिशि चतस्रः नन्दाः पुष्करिण्यः में चार नन्दा पुष्करिणियां हैंणंदाओ पुक्खरिणीओ पण्णत्ताओ, प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-विजया, वैजयन्ती, १. विजया, २. वैजयन्ती ३. जयन्ती, तं जहा- विजया, वेजयंती, जयन्ती, अपराजिता। ४. अपराजिता। जयंती, अपराजिता। ताओ णं गंदाओ पुक्खरिणीओ ताः नन्दा: पुष्करिण्यः एक योजनशत- शेष वर्णन पूर्व के अञ्जन पर्वत के समान एगं जोयणसयसहस्सं, सेसं तं चेव सहस्र, शेषं तच्चैव प्रमाणं, तथैव है। पमाणं, तहेव दधिमुहगपव्वता, दधिमुखकपर्वताः, तथैव सिद्धायतनानि तहेव सिद्धाययणा जाव वणसंडा। यावत् वनषण्डानि। ३४४. गंदीसरवरस्स णं दीवस्स चक्क- नन्दीश्वरवरस्य द्वीपस्य चक्रवाल- ३४४. नंदीश्वरवर द्वीप के चक्रवाल विष्कंभ वालविक्खंभस्स बहुमज्भदेसभागे विष्कम्भस्य बहुमध्यदेशभागे चतसृषु [क्लय-विस्तार] के ठीक बीच में चारों चउसु विदिसासु चत्तारि रति- विदिशासु चत्वारः रतिकरकपर्वताः विदिशाओं में चार रतिकर पर्वत हैंकरगपव्वता पण्णत्ता, तं जहा- प्रज्ञप्ताः, तद्यथा १. उत्तर पूर्व में-ईशानकोण में, उत्तरपुरस्थिमिल्ले रतिकरगपव्वए, उत्तरपौरस्त्यः रतिकरकपर्वतः, २. दक्षिण पूर्व में-आग्नेयकोण में, दाहिणपुरस्थिमिल्ले रतिक रगपव्दए, दक्षिणपौरस्त्यः रतिकरकपर्वतः, ३. दक्षिण पश्चिम में-नैऋत्यकोण में, दाहिणएच्चत्यिमिल्ले दक्षिणपाश्चात्यः रतिकरकपर्वतः, ४. उत्तर पश्चिम में वायव्यकोण में । रतिकरगपव्वए, उत्तरपाश्चात्यः रतिकरकपर्वतः। उत्तरपच्चथिमिल्ले रतिकरगपव्वए। ते णं रतिकरगपवता दस जोयण- ते रतिकरकपर्वताः दशयोजनशतानि वे रतिकर पर्वत हजार योजन ऊंचे सयाई उड्ड उच्चत्तेणं, दस गाउय- ऊर्ध्व उच्चत्वेन, दश गव्यूतिशतानि और हजार कोस गहरे हैं। वे नीचे, ऊपर और बीच में सब स्थानों में [चौड़ाई की सताई उव्वेहेणं; सव्वत्थ समा उदवेधेन, सर्वत्र समाः भल्लरिसंस्थान अपेक्षा] समान हैं। उनकी आकृति झल्लरिसंठाणसंठिता; दस जोयण- संस्थिताः,दश योजनसहस्राणि विष्कम्भेण, झल्लरी-[झांझ-मंजीरे के समान वर्तुलासहस्साई विक्खंभेणं, एक्कतीसं एकत्रिंशत् योजनसहस्राणि षट् च कार दो टुकड़ों से बना हुआ बाजा, जो जोयणसहस्साई छच्च तेवीसे त्रिविशति योजनशतं परिक्षेपेण, सर्व पूजा के समय बजाया जाता है ] के समान जोयणसते परिक्खेवेणं; सव्वर- रत्नमयाः अच्छा: यावत् प्रतिरूपाः। है। उनकी चौड़ाई दस हजार योजन की है। उनकी परिधि ३१६२३ योजन है। यणामया अच्छा जाव पडिरूवा। वे सर्व रत्नमय यावत् रमणीय हैं। www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education International
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy