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स्थान ४ : सूत्र ३२०-३२१
ठाणं (स्थान)
३७१ एवं—जाव पुक्खरवरदीव- एवम्-यावत् पुष्करवरद्वीपपाश्चात्यार्धे पच्चत्थिमद्धे जाव मंदरचूलियत्ति- यावत् मन्दरचलिका इति
के ऊपरी विष्कभ (४३०४-३१८) तक का पाठ समझ लेना चाहिए। पुष्कर-वर-द्वीप के पूर्वार्ध और पश्चिमार्ध के लिए भी 'सुषम-सुषमा' काल की स्थिति से लेकर मन्दर-चूलिका के ऊपरी विष्कभ (४/३०४-३१८) तक का पाठ समझ लेना चाहिए।
संगहणी-गाहा १. जंबुट्टीवगआवस्सगं तु कालाओ चूलिया जाव। धायइसंडे पुक्खरवरे य पुवावरे पासे।
संग्रहणी-गाथा १. जम्बूद्वीपकावश्यकं तु कालात् चूलिका यावत्। धातकीषण्डे पुष्करवरे च पूर्वापरे पावें ॥
संग्रहणी-गाथा जम्बूद्वीप में काल[सुषम-सुषमा] से लेकर मन्दरचूलिका तक होने वाली आवश्यक वस्तुएं धातकीषण्ड और पुष्करवरद्वीप के पूर्वापर पावों में सबकी सब होती हैं।
दारं-पदं द्वार-पदम्
द्वार-पद ३२०. जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स चत्तारि जम्बूद्वीपस्य द्वीपस्य चत्वारि द्वाराणि ३२०. जम्बूद्वीप द्वीप के चार द्वार हैंदारा पण्णत्ता, तं जहा.- प्रज्ञप्तानि, तद्यथा
१. विजय. २. वैजयन्त, ३. जयन्त, विजये, वेजयंते, जयंते, अपराजिते । विजयः, वैजयन्तः, जयन्त:, अपराजितः।
४. अपराजित। ते णं दारा चत्तारि जोयणाई तानि द्वाराणि चत्वारि योजनानि उनकी चौड़ाई चार योजन की है और विक्खंभेणं, तावइयं चेव पवेसेणं विष्कम्भेण, तावत्कं चैव प्रवेशेन उनका प्रवेश [मुख भी चार योजन का पण्णत्ता। प्रज्ञप्तानि ।
है, वहां पल्योपम की स्थिति वाले चार तत्य णं चत्तारि देवा महिड्डीया तत्र चत्वारः देवा महद्धिकाः यावत् महद्धिक देव रहते हैं-१. विजय, जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति, पल्योपमस्थितिका: परिवसन्ति, २. वैजयन्त, ३. जयन्त, ४. अपराजित । तं जहा
तद्यथाविजते, वेजयंते, जयंते, विजयः, वैजयन्तः, जयन्तः, अपराजिते।
अपराजितः।
अंतरदीव-पदं अन्तर्वीप-पदम्
अन्तर्वीप-पद ३२१. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य दक्षिणे ३२१. जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत के दक्षिण में
दाहिणे णं चुल्लहिमवंतस्स वास- क्षुल्लहिमवतः वर्षधरपर्वतस्य चतसृषु क्षुल्लहिमवत् वर्षधर पर्वत के चारों दिक
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