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________________ ठाणं (स्थान) चंदपव्वते, सूरपवते, देवपव्वते, नागपव्वते । ३१४. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स ary विदिसासु चत्तारिवक्वार पव्वया पण्णत्ता, तं जहासोमणसे, विज्जुप्पभे, गंधमायणे, मालवंते । लागा - पुरिस-पदं ३१५. जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे जहण चत्तारि अरहंता चत्तारि arraट्टी चत्तारि बलदेवा चत्तारि वासुदेवा उपज्जिसु वा उत्पज्जंति वा उपज्जिस्संति वा । ३१८. मंदरचूलिया णं उवरि चत्तारि जोयणाई विक्खंभेणं पण्णत्ता । धायसंड-पुक्खरवर-पदं ३१६. एवं धायइसंडदीवपुर स्थिमद्धेवि कालं आदि करेत्ता जाव मंदर चूलियत्ति । ३७० चन्द्रपर्वतः, सुरपर्वतः, देवपर्वतः, नागपर्वतः । Jain Education International जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य चतसृषु विदिशासु चत्वारः वक्षस्कारपर्वताः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - सौमनसः, विद्युत्प्रभः, गन्धमादनः, माल्यवान् । शलाका-पुरुष-पदम् जम्बूद्वीपे द्वीपे महाविदेहे वर्षे जधन्यपदे चत्वारः अर्हन्तः चत्वारः चक्रवर्तिनः चत्वारः बलदेवाः चत्वारः वासुदेवाः उदपदिषतः वा उत्पद्यन्ते वा उत्पत्स्यन्ते वा। मंदर - पव्वय-पदं ३१६. जंबुद्दीवे दीवे मंदरे पव्वते चत्तारि वणा पण्णत्ता, तं जहाभद्दसालवणे, णंदणवणे, सोमणसवणे, पंडगवणे । ३१७. जंबुद्दीवे दीवे मंदरे पव्वते पंडगवणे चत्तारि अभिसेगसिलाओ पण्णत्ताओ, तं जहापंडुकंबलसिला, अइपंडुकंबलसिला, पाण्डुकम्बलशिला, अतिपाण्डुकम्बलशिला, रत्तकंबल सिला, अतिरक्तकंबल सिला। रक्तकम्बलशिला, अतिरक्तकम्बलशिला । मन्दर-पर्वत-पदम् जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरे पर्वते चत्वारि वनानि प्रज्ञप्तानि तद्यथा— भद्रशालवनं, नन्दनवनं सौमनसवनं, पण्डकवनम् । जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरे पर्वते पण्डगवने चतस्रः अभिषेकशिलाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा स्थान ४ : सूत्र ३१४-३१६ १. चन्द्रपर्वत २. सूरपर्यंत, ३. देवपर्वत, ४. नागपर्वत । ३१४. जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत के चारों दिशा कोणों में चार वक्षस्कार पर्वत हैं १. सौमनस्क २. विद्युत्प्रभ ३. गन्धमादन, ४. माल्यवान् । शलाका-पुरुष-पद ३१५. जम्बूद्वीप द्वीप के महाविदेह क्षेत्र में कम से कम चार अर्हन्त, चार चक्रवर्ती, चार बलदेव और चार वासुदेव उत्पन्न हुए थे, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होंगे। For Private & Personal Use Only मन्दर-पर्वत- पद ३१६. जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत के चार वन हैं - १. भद्रशाल वन, २. नन्दन वन, ३. सौमनस वन, ४ पण्डक वन । ३१७. जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत के पण्डक वन में चार अभिषेक शिलाएं हैं१. पांडुकंबल शिला, २. अतिपाण्डुकंबल शिला, ३. रक्तकंबल शिला, ४. अतिरक्तकंबल शिला । मन्दरचूलिका उपरि चत्वारि योजनानि ३१८. मन्दर पर्वत की चूलिका का ऊपरी विष्कंभ विष्कम्भेण प्रज्ञप्ता | [ चौड़ाई ] चार योजन का है । धातकीपण्ड - पुष्करवर पद धातकीषण्ड- पुष्करवर-पदम् एवम् धातकीपण्डद्वीपपौरस्त्याद्धेऽपि - ३१६. इसी प्रकार धातकीपंड द्वीप के पूर्वार्ध कालं आदि कृत्वा यावत् मन्दरचूलिका और पश्चिमार्ध के लिए भी 'सुषम-सुषमा' इति । काल की स्थिति से लेकर मन्दर चूलिका www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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