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________________ ठाणं (स्थान) स्थान ४ : सूत्र ३०३-३०७ कूड-पदं कूट-पदम् कूट-पद ३०३. माणुसुत्तरस्स गं पव्वयस्स चउ- मानुषोत्तरस्य पर्वतस्य चतुर्दिशि ३०३. मानुषोत्तर पर्वत के चारों दिशा कोणों में दिसिं चत्तारि कूडा पण्णत्ता, तं चत्वारि कूटानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-- चार कूट हैं--१. रत्नकूट-दक्षिण-पूर्व में, जहा—रयणे, रतणुच्चए, रत्नं, रत्नोच्चयं, सर्वरत्नं, रत्नसंचयम। २. रत्नोच्चयकूट-दक्षिण-पश्चिम में, सव्वरयणे, रतणसंचए। ३. सर्व रत्नकूट-पूर्वोत्तर में, ४. रत्नसंचयकूट-पश्चिमोत्तर में । कालचक्क-पदं कालचक्र-पदम् कालचक्र-पद ३०४. जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवतेसु वासेसु जम्बूद्वीपे द्वीपे भरतैरावतयोः वर्षयोः ३०४. जम्बूद्वीप द्वीप के भारत और ऐरवत क्षेत्रों तीताए उस्स प्पिणीए सुसमसुसमाए अतीतायां उत्सपिण्यां सुषमसुषमायां में अतीत उत्सर्पिणी के 'सुषम-सुषमा' समाए चत्तारि सागरोवमकोडा- समायां चतस्रः सागरोपमकोटिकोटीः नामक आरे का कालमान चार कोडाकोडीओ कालो हुत्था। कालः अभवत् । कोडी सागरोपम था। ३०५. जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवतेसु वासेसु जम्बूद्वीपे द्वीपे भरतैरावतयोः वर्षयोः ३०५. जम्बूद्वीप द्वीप के भरत और ऐरवत क्षेत्रों इमीसे ओसप्पिणीए सुसमसुसमाए अस्यां अवसपिण्णां सुषमसुषमायां में इस अवसर्पिणी के 'सुषम-सुषमा' नामक समाए चत्तारि सागरोवमकोडा- समायां चतस्रः सागरोपमकोटिकोटी: आरे का कालमान चार कोडाकोडी कोडीओ कालो पण्णत्तो। कालः प्रज्ञप्तः । सागरोपम था। ३०६. जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु जम्बूद्वीपे द्वीपे भरतैरावतयोः वर्षयोः ३०६. जम्बूद्वीप द्वीप के भरत और ऐरवत क्षेत्रों आगमेस्साए उस्सप्पिणीए सुसम- आगमिष्यन्त्यां उत्सपिण्यां सुषमसुषमायां में आगामी उत्सर्पिणी के 'सुषम-सुषमा' सुसमाए समाए चत्तारि सागरो- समायां चतस्रः सागरोपमकोटिकोटी: नामक आरे का कालमान चार कोडावमकोडाकोडीओ कालो भविस्सइ। कालः भविष्यति । कोडी सागरोपम होगा। अकम्मभूमी-पदं अकर्मभूमि-पदम् अकर्मभूमि-पद ३०७. जंबुद्दीवे दीवे देवकुरुउत्तरकुरु- जम्बूद्वीपे द्वीपे देवकुरुत्तरकुरुवर्जाः ३०७. जम्बूद्वीप द्वीप में देवकुरु और उत्तरकुरु वज्जाओ चत्तारि अकम्मभूमीओ चतस्रः अकर्मभमयः प्रज्ञप्ताः, तदयथा_ को छोड़कर चार अकर्म-भूमियां हैंपण्णत्ताओ, तं जहा–हेमवते, हैमवतं, हैरण्यवतं, हरिवर्ष, १. हैमवत, २. हैरण्यवत, ३. हरिवर्ष, हेरणवते, हरिवरिसे, रम्मगवरिसे। रम्यकवर्षम् । ४. रम्य गवर्ष। चत्तारि वट्टवेयडपव्वता पण्णता, चत्वारः वृत्तवैताढ्यपर्वता: प्रज्ञप्ताः, उनमें चार वैताढ्य पर्वत हैंतं जहा—सद्दावाती, वियडावाती, तद्यथा—शब्दापाती, विकटापाती, १. शब्दापाती, २. विकटापाती, गंधावाती, मालवंतपरिताते। गन्धापाती, माल्यवत्पर्यायः । ३. गंधापाती, ४. माल्यवत्पर्याय । तत्थ णं चत्तारि देवा महिडिया तत्र चत्वारः देवा: महद्धिका यावत् वहां पल्योपम की स्थिति वाले चार जाव पलिओवम द्वितीया परिवसंति, पल्योपमस्थितिका परिवसन्ति, तद्यथा- महद्धिक देव रहते हैं-१. स्वाति, तंजहा-साती पभासे अरुणे पउमे। स्वाति:, प्रभासः, अरुणः, पद्मः। २. प्रभास, ३. अरुण, ४. पद्म। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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