________________
३६७
ठाणं (स्थान)
स्थान ४ : सूत्र २६६-३०२ २६६. चउन्विहे णिगायिते पण्णत्ते, तं चतुर्विधं निकाचितं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा--. २६६. निकाचित चार प्रकार का होता है
जहा—पगतिणिगायिते, प्रकृतिनिकाचितं, स्थितिनिकाचितं, १. प्रकृति निकाचित, ठितिणिगायिते, अणुभावणिगायिते, अनुभावनिकाचितं, प्रदेशनिकाचितम् ।। २. स्थिति निकाचित, पएसणिगायिते ।
३. अनुभाव निकाचित, ४. प्रदेश निकाचित ।
संखा-पदं संख्या-पदम्
संख्या-पद ३०० चत्तारि एक्का पण्णता, तं जहा.- चत्वारि एकानि प्रज्ञप्तानि, तयथा- ३००. एक चार प्रकार का होता है--
दविएक्कए, माउएक्कए, द्रव्यैककं, मातृकैककं, पर्यायैककं, १. द्रव्य एक-द्रव्यत्व की दृष्टि से द्रव्य पज्जवेक्कए, संगहेक्कए, संग्रहैककम् ।
एक है, २. मातृका पद एक-सब नयों का बीजभूत मातृका पद [उत्पाद व्यय ध्रौव्यात्मक त्रिपदी] एक है, २. पर्याय एक-पर्यायत्व की दृष्टि से पर्याय एक है, ४. संग्रह एक-संग्रह की दृष्टि से बहु में
भी एक वचन का प्रयोग होता है। ३०१. चत्तारि कती पण्णत्ता, तं जहा- चत्वारि कति प्रज्ञप्तानि, तद्यथा- ३०१. कति [अनेक] चार प्रकार का होता है
दवितकती, माउयकती, द्रव्यकति, मातृकाकति, पर्यायकति, १. द्रव्य कति-द्रव्य-व्यक्ति की दृष्टि से पज्जवकती, संगहकती। संग्रहकति ।
द्रव्य अनेक हैं, २. मातृका कति-विविध नयों की दृष्टि से मातृका अनेक हैं, ३. पर्याय कति-पर्याय व्यक्ति की दृष्टि से पर्याय अनेक हैं, ४. संग्रह कति-अवा
न्तर जातियों की दृष्टि से संग्रह अनेक हैं। ३०२. चत्तारि सव्वा पण्णत्ता, तं जहा- चत्वारि सर्वाणि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा- ३०२. सर्व चार प्रकार का होता है
णामसव्वए, ठवणसव्वए, नामसर्वक, स्थापनासर्वकं, आदेशसर्वकं, १. नाम सर्व-किसी का नाम सर्व रख आएससव्वए, णिरवसेससव्वए। निरवशेषसर्वकम् ।
दिया वह, केवल नाम से सर्व होता है, २. स्थापना सर्व-किसी वस्तु में सर्व का आरोप किया जाए वह, स्थापना सर्व है, ३. आदेश सर्व-अपेक्षा की दृष्टि से सर्व, जैसे कुछ कार्य शेष रहने पर भी कहा जाता है सारा काम कर डाला, ४. निरवशेष सर्व-वह सर्व जिसमें कोई शेष न रहे, वास्तविक सर्व।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org