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ठाणं (स्थान)
आहार -पदं २८८. चउव्विहे आहारे पण्णत्ते, तं जहाअसणे, पाणे, खाइ मे, साइमे ।
२८६. चउव्विहे आहारे पण्णत्ते, तं जहाउवक्खर संपण्णे, उवक्खडसं पण्णे, सभावसंपण्णे, परिजुसियसंपण्णे ।
कम्मावत्था-पदं
२०. चउब्विहे बंधे पण्णत्ते, तं जहापगतिबंध, ठितिबंध, अणुभावबंधे, पदेसबंधे ।
जहा -
बंधणक्कमे, उदीरणोवक्कमे,
उवसमणोवक्कमे
विपरिणामणोवक्कमे ।
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आहार-पदम् चतुविधः आहारः प्रज्ञप्तः, तद्यथा— अशनं, पानं, खाद्यं, स्वाद्यम् ।
चतुर्विधः आहारः प्रज्ञप्तः, तद्यथा— उपस्करसम्पन्नः, उपस्कृतसम्पन्नः, स्वभावसम्पन्नः, पर्युषितसम्पन्नः ।
२१. चउवि उवक्कमे पण्णत्ते, तं चतुर्विधः उपक्रमः प्रज्ञप्तः, तद्यथा - बन्धनोपक्रमः, उदीरणोपक्रमः, उपशमनोपक्रमः, विपरिणामनोपक्रमः ।
कर्मावस्था-पदम्
चतुविधः बन्धः प्रज्ञप्तः, तद्यथा— प्रकृतिबन्धः, स्थितिबन्धः, अनुभावबन्ध:, प्रदेशबन्धः ।
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स्थान ४ : सूत्र २८८-२६१
आहार-पद
२८८. आहार चार प्रकार का होता है
१. अशन - अन्न आदि,
२. पान - कांजी आदि.
३. खादिम - फल आदि,
४. स्वादिम-तम्बूल आदि । २६६. आहार चार प्रकार का होता है
१. उपस्कर -सम्पन्न - वधार से युक्त, मसाले डालकर छौंका हुआ, २. उपस्कृतसम्पन्न -- पकाया हुआ, ओदन आदि, ३. स्वभाव सम्पन्न - स्वभाव से पका हुआ, फल आदि, ४ पर्युषित-सम्पन्न - रात वासी रखने से जो तैयार हो ।
कर्मावस्था-पद २६०. बंध चार प्रकार का होता है-
१. प्रकृतिबंध कर्म - पुद्गलों का स्वभाव बंध, २. स्थिति-बंध - कर्म - पुद्गलों की काल मर्यादा का बंध, ३. अनुभाव-बंध-कर्म - पुद्गलों के रस का बंध, ४. प्रदेशबंध - कर्म- पुद्गलों के परमाणु-परिमाण का बंध।"
२६१. उपक्रम चार प्रकार का होता है
१. बंधन उपक्रम - बंधन का हेतुभुत जीववीर्य या बंधन का प्रारम्भ, २. उदीरणा उपक्रम - उदीरणा का हेतुभूत जीव- वीर्य या उदीरणा का प्रारम्भ, ३. उपशमन उपक्रम - उपशमन का हेतुभूत जीव- वीर्यं या उपशमन का प्रारम्भ, ४. विपरिणामन उपक्रम - विपरिणामन का हेतुभूत जीववीर्य या विपरिणामन का प्रारम्भ ।
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