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ठाणं (स्थान)
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स्थान ४: सूत्र २८३-२८४
४. अवलेहणिय केतणासमाणं ४. अवलेखनिकाकेतनसमानां मायां मायमणुपविट्ठ जीवे कालं करेति', अनुप्रविष्ट: जीवः कालं करोति, देवेषु । देवेसु उववज्जति ।
उपपद्यते।
४. अवलेखनिका के समान माया में प्रवर्तमान जीव मरकर देवगति में उत्पन्न होता है।
माण-पदं मान-पदम्
मान-पद २८३. चत्तारि थंभा पण्णता, तं जहा- चत्वारः स्तम्भाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- २८३. स्तंभ चार प्रकार होता हैसेलथंभे, अट्टिथंभे, दारुथंभे। शैलस्तम्भः, अस्थिस्तम्भः, दारुस्तम्भः,
१. शैल-स्तंभ-पत्थर का खम्भा, तिणिसलतार्थभे। तिनिशलतास्तम्भः ।
२. अस्थि-स्तंभ-हाड का खम्भा, ३. दारु-स्तंभ-काठ का खम्भा, ४. तिनिशलता-स्तंभ-सीसम की जाति
के वृक्ष की लता [लकड़ी] का खम्भा। एवामेव चउविधे माणे पण्णते,तं एवमेव चतुर्विधः मानः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- इसी प्रकार मान भी चार प्रकार का होता जहा सेलथंभसमाणे,
शैलस्तम्भसमानः, अस्थिस्तम्भसमानः, है-१. शैल-स्तम्भ के समान-अनन्तानु•अट्रिथंभसमाणे, दारुथंभसमाणे, दारुस्तम्भसमानः,
बन्धी, २. अस्थि-स्तम्भ के समानतिणिसलतार्थभसमाणे। तिनिशलतास्तम्भसमानः ।
अप्रत्याख्यानावरण, ३. दारु-स्तम्भ के १. सेलथंभसमाणं माणं अणुपविट्ठ १. शैलस्तम्भसमानं मानं अनुप्रविष्ट: समान-प्रत्याख्यानावरण, ४. तिनिशजीवे कालं करेति, गैरइएसु जीवः कालं करोति, नैरयिकेषु लता-स्तम्भ के समान-संज्वलन । उववज्जति, उपपद्यते,
१. शैल-स्तम्भ के समान मान में प्रवर्त२. अट्रिथंभसमाणं माणं अणु- २. अस्थिस्तम्भसमानं मानं अनुप्रविष्ट: मान जीव मरकर नरक में उत्पन्न होता पविटू जीवे कालं करेति, जीवः कालं करोति, तिर्यग्योनिकेषु है, २. अस्थि-स्तम्भ के समान मान में तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति, उपपद्यते,
प्रवर्तमान जीव मरकर तिर्यक्-योनि में ३. दारुथंभसमाणं माणं अणुपविट्ठ ३. दारुस्तम्भसमानं मानं अनुप्रविष्ट: उत्पन्न होता है, ३. दारु-स्तम्भ के समान जीवे कालं करेति, मणुस्सेसु जीवः कालं करोति, मनुष्येषु उपपद्यते, मान में प्रवर्तमान जीव मरकर मनुष्य उववज्जति,
गति में उत्पन्न होता है, ४. तिनिशलता४. तिणिसलताथंभसमाणं माणं ४. तिनिशलतास्तम्भसमानं मानं अनु- स्तम्भ के समान मान में प्रवर्तमान जीव अणपविट्र जीवे कालं करेति, प्रविष्ट: जीवः कालं करोति, देवेषु । मरकर देवगति में उत्पन्न होता है। देवेसु उववज्जति।
उपपद्यते।
लोभ-पदं लोभ-पदम्
लोभ-पद २८४. चत्तारि वत्था पण्णत्ता, तं जहा- चत्वारि वस्त्राणि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा.- २८४. वस्त्र चार प्रकार का होता हैकिमिरागरत्ते, कद्दमरागरत्ते, कृमिरागरक्तं, कर्दमरागरक्तं,
१. कृमिरागरक्त-कृमियों के रञ्जक खंजण रागरत्ते, हलिद्दरागरते। खञ्जनरागरक्त, हरिद्रारागरक्तं ।
रस में रंगा हुआ वस्त्र, २. कर्दमरागरक्त-कीचड़ से रंगा हुआ वस्त्र, ३.खञ्जनरागरक्त-काजल के रंग से रंगा हुआ वस्त्र, ४. हरिद्वारागरक्तहल्दी के रंग से रंगा हुआ वस्त्र ।
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