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ठाणं (स्थान)
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स्थान ४ : सूत्र २५१-२५४
किस-दढ-पदं कृश-दृढ-पदम्
कृश-दृढ-पद २५१. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, २५१. पुरुष चार प्रकार के होते हैंजहातद्यथा
१. कुछ पुरुष शरीर से भी कृश होते हैं किसे णाममेगे किसे, कृशः नामकः कृशः, कृशः नामकः दृढः, और मनोबल से भी कृश होते हैं, २. कुछ किसे णाममेगे दढे, दृढः नामैकः कृशः, दृढः नामैक: दृढः ।। पुरुष शरीर से कृश होते हैं, किन्तु मनोबल दढे णाममेगे किसे,
से दृढ़ होते हैं, ३. कुछ पुरुष शरीर से दृढ़ दढे णाममेगे दढे।
होते हैं, किन्तु मनोबल से कृश होते हैं, ४. कुछ पुरुष शरीर से भी दृढ़ होते हैं
और मनोवल से भी दृढ़ होते हैं। २५२. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, २५२. पुरुष चार प्रकार के होते हैंजहातद्यथा
१. कुछ पुरुष भावना से कृश होते हैं और किसे णाममेगे किससरीरे, कृश: नामैक: कृशशरीरः,
शरीर से भी कृश होते हैं, २. कुछ पुरुष किसे णाममेगे दढसरीरे, कृश: नामैकः दृढशरीरः,
भावना से कृश होते हैं, किन्तु शरीर से दढे णाममेगे किससरीरे, दृढः नामैक: कृशशरीरः,
दृढ़ होते हैं, ३. कुछ पुरुष भावना से दृढ़ दढे णाममेगे दढसरीरे। दृढः नामकः दृढशरीरः ।
होते हैं, किन्तु शरीर से कृश होते हैं, ४. कुछ पुरुष भावना से भी दृढ़ होते हैं
और शरीर से भी दृढ़ होते हैं। २५३. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, २५३. पुरुष चार प्रकार के होते हैंजहातद्यथा
१. कृश शरीर वाले व्यक्तियों के ज्ञानकिससरीरस्स णाममेगस्स णाण- कृशशरीरस्य नामैकस्य ज्ञानदर्शनं दर्शन उत्पन्न होते हैं, किन्तु दृढ़ शरीर दसणे समुप्पज्जति, णो दढसरीरस्स, समुत्पद्यते, नो दृढशरीरस्य, वालों के नहीं होते, २. दृढ शरीर वाले दढसरीरस्स णाममेगस्स णाण- दृढशरीरस्य नामैकस्य ज्ञानदर्शनं । व्यक्तियों के ज्ञान-दर्शन उत्पन्न होते हैं, दंसणे समुप्पज्जति, समुत्पद्यते, नो कृशशरीरस्य,
किन्तु कृश शरीर वालों के नहीं होते. णो किससरीरस्स,
३. कृश शरीर वाले व्यक्तियों के भी ज्ञानएगस्सकिससरीरस्सविणाणदसणे एकस्य कृशशरीरस्यापि ज्ञानदर्शनं । दर्शन उत्पन्न होते हैं और दृढ़ शरीर वालों समुप्पज्जति, दढसरीरस्सवि, समुत्पद्यते, दृढशरीरस्यापि,
के भी होते हैं, ४. कृश शरीर वाले व्यएगस्स णो किससरीरस्सणाणदंसणे एकस्य नो कृशशरीरस्य ज्ञानदर्शनं । क्तियों के भी ज्ञान-दर्शन उत्पन्न नहीं होते समुप्पज्जति, णो दढसरीरस्स। समुत्पद्यते, नो दृढशरीरस्य ।
और दृढ़ शरीर वालों के भी नहीं होते।५३
अतिसेस-णाण-दसण-पदं अतिशेष-ज्ञान-दर्शन-पदम्
अतिशेष-ज्ञान-दर्शन-पद २५४. चहि ठाहिं णिग्गंथाण वा चतुभिः स्थानकैः निर्ग्रन्थानां वा २५४. चार कारणों से निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों
णिग्गंथीण वा अस्सि समयंसि निर्ग्रन्थीनां वा अस्मिन समये अतिशेषं के अतिशायी ज्ञान और दर्शन तत्काल
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