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ठाणं (स्थान)
२४६. संवेयणी कहा चउब्विहा पण्णत्ता, तं जहा
इहलोग संवेयणी, परलोगसंवेयणी, आतसरीरसंवेयणी, परसरीरसंवेयणी ।
३५१
स्थान ४ : सूत्र २४६ - २५०
संवेजनी कथा चतुविधा प्रज्ञप्ता, २४६. संवेजनी कथा के चार प्रकार हैं
तद्यथा—
१. इहलोकसंवेजनी - मनुष्य जीवन की असारता दिखाने वाली कथा, २. परलोकसंवेजनी - देव, तिर्यञ्च आदि के जन्मों की मोहमयता व दुःखमयता बताने वाली कथा, ३. आत्मशरीरसंवेजनी — अपने शरीर की अशुचिता का प्रतिपादन करने वाली कथा, ४. परशरीरसंवेजनी — दूसरे के शरीर की अशुचिता का प्रतिपादन करने वाली कथा । "
इहलोकसंवेजनी, परलोकसंवेजनी, आत्मशरीरसंवेजनी, परशरीरसंवेजनी ।
३५०. णिव्वेदणी कहा चव्विहा पण्णत्ता, निवेदनीकथा चतुर्विधा
तं जहा
तद्यथा—
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प्रज्ञप्ता, २५० निवेदनी कथा के चार प्रकार हैं१. इहलोक में दुश्चीर्ण कर्म इसी लोक में दुःखमय फल देने वाले होते हैं, २. इहलोक में दुश्चीर्ण कर्म परलोक में दुःखमय फल देने वाले होते हैं, ३. परलोक में दुश्च कर्म इहलोक में दुःखमय फल देने वाले होते हैं, ४. परलोक में दुश्चीर्ण कर्म परलोक में ही दुःखमय फल देने वाले होते हैं।
१. इहलोगे दुच्चिण्णा कम्मा इह- १. इहलोके दुश्चीर्णानि कर्माणि इहलोके लोगे दुहफल विवागसंजुत्ता भवंति, दुःखफलविपाकसंयुक्तानि भवन्ति, २. इहलोगे दुच्चिरणा कम्मा पर- २. इहलोके दुश्चीर्णानि कर्माणि परलोके लोगे दुफल विवागसंजुत्ता भवंति दुःखफलविपाकसंयुक्तानि भवन्ति, ३. परलोगे दुच्चिण्णा कम्मा इह- ३. परलोके दुश्चीर्णानि कर्माणि इहलोके लोगे दुफल विवागसंजुत्ता भवंति, दुःख दुःखफल विपाकसंयुक्तानि भवन्ति, ४. परलोगे दुच्चिण्णा कम्मा पर- ४. परलोके दुश्चीर्णानि कर्माणि परलोके लोगे दुफल विवागसंजुत्ता भवंति । दुःखफलविपाकसंयुक्तानि भवन्ति । १. इहलोगे सुचिणा कम्मा इह- १. इहलोके सुचीर्णानि कर्माणि इहलोके लोगे सुहफल विवागसंजुत्ता भवंति, सुखफलविपाकसंयुक्तानि भवन्ति, २. इहलोगे सुचिण्णा कम्मा पर- २. इहलोके सुचीर्णानि कर्माणि परलोके लोगे सुहफल विवागसंजुत्ता भवंति, सुखफलविपाकसंयुक्तानि भवन्ति, ३. "परलोगे सुचिण्णा कम्मा इह - ३. परलोके सुचीर्णानि कर्माणि इहलोके लोगे सुहफल विवागसंजुत्ता भवंति, सुखफलविपाकसंयुक्तानि भवन्ति, ४. परलोगे सुचिण्णा कम्मा पर- ४. परलोके सुचीर्णानि कर्माणि परलोके लोगे सुहफल विवाग संजुत्ता भवंति । सुखफलविपाकसंयुक्तानि भवन्ति ।
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१. इहलोक में सुचीर्ण कर्म इसी लोक में सुखमय फल देने वाले होते हैं, २. इहलोक में सुचीर्ण कर्म परलोक में सुखमय फल देने वाले होते हैं, ३. परलोक में सुचीर्ण कर्म इहलोक में सुखमय फल देने वाले होते हैं, ४. परलोक में सुचीर्ण कर्म परलोक में सुखमय फल देने वाले होते
हैं।
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