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________________ ठाणं (स्थान) ३४६ स्थान ४ : सूत्र २४१-२४५ भक्तक विकहा-पदं विकथा-पदम् विकथा-पद २४१. चत्तारि विकहाओ पण्णत्ताओ, चतस्रः विकथाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- २४१. विकथा चार प्रकार की होती है तं जहा—इत्थिकहा, भत्तकहा, स्त्रीकथाः, भक्तकथा, देशकथा, १. स्त्रीकथा, २. देशकथा, ३. भक्तकथा, देसकहा, रायकहा। राजकथा। ४. राजकथा। २४२. इत्थिकहा चउम्विहा पण्णत्ता, तं स्त्रीकथा चतूविधा प्रज्ञप्ता, तदयथा_ जहा_इत्थीणं जाइकहा, स्त्रीणां जातिकथा, स्त्रीणां कूलकथा, १. स्त्रियों की जाति की कथा, इत्थीणं कुलकहा, इत्थीणं रूवकहा, स्त्रीणां रूपकथा, स्त्रीणां नेपथ्यकथा। २. स्त्रियों के कुल की कथा, इत्थीणं णेवत्थकहा। ३. स्त्रियों के रूप की कथा, ४. स्त्रियों के वेशभूषा की कथा । २४३. भत्तकहा चउव्विहा पण्णत्ता, तं प्रज्ञप्ता, तद्यथा- २४३. भक्तकथा के चार प्रकार हैंजहा-भत्तस्स आवावकहा, भक्तस्य आवापकथा, १. आवापकथा-रसोई की सामग्रीभत्तस्स णिवावकहा, भक्तस्य निर्वापकथा, घृत, साग आदि की चर्चा करना, भत्तस्स आरंभकहा, भक्तस्य आरंभकथा, २. निर्वापकथा-पक्व या अपक्वभत्तस्स णिट्ठाणकहा। भक्तस्य निष्ठानकथा। अन्न व व्यञ्जन आदि की चर्चा करना, ३. आरंभकथा—इतनी सामग्री और इतना धन आवश्यक होगा- इस प्रकार की चर्चा करना, ४. निष्ठानकथाइतनी सामग्री और इतना धन लगा-- इस प्रकार की चर्चा करना। २४४. देसकहा चउन्विहा पण्णत्ता, तं देशकथा चतुर्विधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा- २४४. देशकथा के चार प्रकार हैंजहा—देसविहिकहा, देशविधिकथा, देशविकल्पकथा, १. देशविधिकथा-विभिन्न देशों में प्रचदेसविकप्पकहा, देसच्छंदकहा, देशच्छन्दकथा, देशनेपथ्यकथा। लित भोजन आदि बनाने के प्रकारों या देसणेवत्थकहा। कानूनों की कथा करना, २. देशविकल्पकथा--विभिन्न देशों में अनाज की उपज, परकोटे, कुंए आदि की कथा करना, ३. देशच्छंदकथा-विभिन्न देशों के विवाह आदि से संबन्धित रीति-रिवाजों की कथा करना, ४. देशनेपथ्यकथाविभिन्न देशों के पहनावे की कथा करना।४६ २४५. रायकहा चउव्विहा पण्णत्ता, तं राजकथा चतुर्विधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा- २४५. राजकथा के चार प्रकार हैंजहा_रण्णो अतियाणकहा, राज्ञः अतियानकथा, १. राजा के अतियान-नगर आदि के रणो णिज्जाणकहा, राज्ञः निर्याणकथा, प्रवेश की कथा करना, २. राजा के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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