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ठाणं (स्थान)
स्थान ४ : सूत्र २३४-२३५ एवामेव चत्तारि पुरिसजाया एवमेव चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, इसी प्रकार पुरुष चार प्रकार के होते हैंपण्णत्ता, तं जहा... तद्यथा
१. कुछ पुरुष कुल-सम्पन्न होते हैं, किन्तु कुलसंपण्णे णाम एगे, णो बल- कुलसम्पन्न: नामकः, नो बलसम्पन्नः, बल-सम्पन्न नहीं होते, २. कुछ पुरुष बलसंपण्णे, बलसंपण्णे णामं एगे, णो बलसम्पन्नः नामैकः, नो कुलसम्पन्नः, सम्पन्न होते हैं, किन्तु कुल-सम्पन्न नहीं कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि, एकः कुलसम्पन्नोऽपि, बलसम्पन्नोऽपि, होते, ३. कुछ पुरुष कुल-सम्पन्न भी होते बलसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपण्णे, एक: नो कुलसम्पन्नः, नो बलसम्पन्नः । हैं और बल-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ णो बलसंपण्णे।
पुरुष न कुल-सम्पन्न होते हैं और न बल
सम्पन्न ही होते हैं। २३४. चत्तारि उसभा पण्णत्ता, तं जहा- चत्वारः ऋषभाः प्रज्ञप्ता:, तदयथा- २३४. बृषभ चार प्रकार के होते हैं
कुलसंपण्णे णाम एगे, णो रूव- कुलसम्पन्न: नामैकः, नो रूपसम्पन्नः, १. कुछ वृषभ कुल-सम्पन्न होते हैं, किन्तु संपण्ण, रूवसंपण्णे णाम एगे, णो रूपसम्पन्न: नामकः, नो कलसम्पन्न:, रूप-सम्पन्न नहीं होते, २. कुछ वृषभ रूपकुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि, एक: कुलसम्पन्नोऽपि, रूपसम्पन्नोऽपि, सम्पन्न होते हैं, किन्तु कुल-सम्पन्न नहीं रूवसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपण्णे, एक: नो कुलसम्पन्न:, नो रूपसम्पन्नः। होते, ३. कुछ वृषभ कुल-सम्पन्न भी होते णो रूवसंपण्णे।
हैं और रूप-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ वृषभ न कुल-सम्पन्न होते हैं और न रूप
सम्पन्न ही होते हैं। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया एवमेव चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के होते पण्णत्ता, तं जहा
तद्यथाकुलसंपण्णे णाम एगे, णो रूव- कुलसम्पन्नः नामकः, नो रूपसम्पन्नः,
१. कुछ पुरुष कुल-सम्पन्न होते हैं, किन्तु संपण्णे, रूवसंपण्णे णामं एगे, णो रूपसम्पन्नः नामैकः, नो कुलसम्पन्नः,
रूप-सम्पन्न नहीं होते, २. कुछ पुरुष रूप
सम्पन्न होते हैं, किन्तु कुल-सम्पन्न नहीं कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णोवि, एकः कुलसम्पन्नोऽपि, रूपसम्पन्नोऽपि,
होते, ३. कुछ पुरुष कुल-सम्पन्न भी होते रूवसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपण्णे, एकः नो कुलसम्पन्नः, नो रूपसम्पन्नः ।
हैं और रूप-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ णो रूवसंपण्णे।
पुरुष न कुल-सम्पन्न होते हैं और न रूपसम्पन्न ही होते हैं।
बल-पदं बल-पदम्
बल-पद २३५. चत्तारि उसभा पण्णत्ता, तं जहा- चत्वारः ऋषभाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- २३५. बृषभ चार प्रकार के होते हैं
बलसंपण्णे णामं एगे, णो रूव- बलसम्पन्न: नामैकः, नो रूपसम्पन्नः, १. कुछ बृषभ बल-सम्पन्न होते हैं, किन्तु संपण्णे, रूवसंपण्णे णामं एगे, रूपसम्पन्न: नामैकः, नो बलसम्पन्नः, रूप-सम्पन्न नहीं होते, २. कुछ बृषभ रूपगो बलसंपण्णे, एगे बलसंपण्णेवि, एक: बलसम्पन्नोऽपि, रूपसम्पन्नोऽपि, सम्पन्न होते हैं, किन्तु बल-सम्पन्न नहीं रूवसंपण्णेवि, एगे णो बलसंपण्णे, एक: नो बलसम्पन्नः, नो रूपसम्पन्नः । होते, ३. कुछ वृषभ बल-सम्पन्न भी होते हैं जो रूवसंपण्णे।
और रूप-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ बृषभ न बल-सम्पन्न होते हैं और न रूप-सम्पन्न ही होते हैं।
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