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ठाणं (स्थान)
स्थान ४ : सूत्र २३२-२३३ एवामेव चत्तारि पुरिसजाया एवमेव चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, । इसी प्रकार पुरुष चार प्रकार के होते हैंपण्णत्ता, तं जहातद्यथा
१. कुछ पुरुष जाति-सम्पन्न होते हैं, जातिसंपण्णे णामं एगे, णो बल- जातिसम्पन्नः नामैकः, नो बलसम्पन्नः, किन्तु बल-सम्पन्न नहीं होते, २. कुछ संपण्णे, बलसंपण्णे णाम एगे, णो बलसम्पन्नः नामैकः, नो जातिसम्पन्नः, पुरुष बल-सम्पन्न होते हैं, किन्तु जातिजातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि, एकः जातिसम्पन्नोऽपि, बलसम्पन्नोऽपि, सम्पन्न नहीं होते हैं, ३. कुछ पुरुष जातिबलसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे, एकः नो जातिसम्पन्नः, नो बलसम्पन्नः।। सम्पन्न भी होते हैं और बल-सम्पन्न भी णो बलसंपण्णे।
होते हैं, ४. कुछ पुरुष न जाति-सम्पन्न
होते हैं और न बल-सम्पन्न ही होते हैं। २३२. चत्तारि उसभा, पण्णत्ता, तं चत्वार. ऋषभाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- २३२. वृषभ चार प्रकार के होते हैंजहा
जातिसम्पन्नः नामैकः, नो रूपसम्पन्नः, १. कुछ वृषभ जाति-सम्पन्न होते हैं, किन्तु जातिसंपण्णे णामं एगे, णो रूपसम्पन्नः नामैकः, नो जातिसम्पन्नः, रूप-सम्पन्न नहीं होते, २. कुछ वृषभ रूपरूवसंपण्णे, रूवसंपण्णे णामं एगे, एकः जातिसम्पन्नोऽपि, रूपसम्पन्नोऽपि, सम्पन्न होते हैं, किन्तु जाति-सम्पन्न नहीं णो जातिसंपण्णे, एगे जाति- एकः नो जातिसम्पन्नः, नो रूपसम्पन्नः। होते, ३. कुछ वृषभ जाति-सम्पन्न भी संपण्णेवि, रूवसंपण्णेवि, एगे णो
होते हैं और रूप-सम्पन्न भी होते हैं, जातिसंपण्णे, णो रूवसंपण्णे।
४. कुछ वृषभ न जाति-सम्पन्न होते हैं
और न रूप-सम्पन्न ही होते हैं। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया, एवमेव चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, इसी प्रकार पुरुष चार प्रकार के होते हैंपण्णत्ता, तं जहातद्यथा
१. कुछ पुरुष जाति-सम्पन्न होते हैं, किन्तु जातिसंपण्णे णामं एगे, णो रूव- जातिसम्पन्नः नामकः, नो रूपसम्पन्नः, रूप-सम्पन्न नहीं होते, २. कुछ पुरुष रूपसंपण्णे, रूवसंपण्णे णाम एगे, रूपसम्पन्नः नामकः, नो जातिसम्पन्नः, सम्पन्न होते हैं, किन्तु जाति-सम्पन्न नहीं जो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि, एकः जातिसम्पन्नोऽपि, रूपसम्पन्नोऽपि, होते, ३. कुछ पुरुष जाति-सम्पन्न भी होते रूवसंपण्णेवि, एगे णो जाति- एकःनो जातिसम्पन्नः, नो रूपसम्पन्नः। हैं और रूप-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ संपण्णे, णो रूवसंपण्णे।
पुरुष न जाति-सम्पन्न होते हैं और न रूपसम्पन्न ही होते हैं।
कुल-पदं
कुल-पद
कुल-पदम् २३३. चत्तारि उसभा पण्णत्ता, तं जहा- चत्वारः ऋषभाः प्रज्ञप्ता:, तद्यथा- २३३. वृषभ चार प्रकार के होते हैं
कुलसंपण्णे णामं एगे, णो बल- कुलसम्पन्न: नामैकः, नो बलसम्पन्नः, १. कुछ वृषभ कुल-सम्पन्न होते हैं, किन्तु संपण्णे, बलसंपण्णे णामं एगे, बलसम्पन्नः नामैकः, नो कुलसम्पन्नः,
बल-सम्पन्न नहीं होते, २. कुछ वृषभ णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि, एकः कुलसम्पन्नोऽपि, बलसम्पन्नोऽपि, बल-सम्पन्न होते हैं किन्तु कुल-सम्पन्न बलसंपण्णेवि, एगे णो कुल- एकः नो कुलसम्पन्नः, नो बलसम्पन्नः । नहीं होते, ३. कुछ वृषभ कुल-सम्पन्न भी संपण्णे, णो बलसंपण्णे।
होते हैं और बल-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ वृषभ न कुल-सम्पन्न होते हैं और न बल-सम्पन्न ही होते हैं।
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