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________________ ठाणं (स्थान) पडिलीण- अपडिसंलीण-पदं १६०. चत्तारि पडिसंलीणा पण्णत्ता, तं जहा कोहपडिलीणे, माणपडिली मायापडिसलीणे, लोभ पडिली । १६१. चत्तारि अपडिलीणा पण्णत्ता, तं जहा कोहअप डिलीणे, • माणअप डिलीणे, जहा - दीणे णाममेगे दीणे, दी णाममेगे अदोणे, अदी णाममेगे दीणे, अदीणे णाममेगे अदीणे । ३३५ जहा - दीणे णाममेगे दीणपरिणते, अप्रतिसंलीनाः प्रज्ञप्ता, १९१. चार अप्रतिसंलीन होते हैं १. क्रोध अप्रति संलीन, २. मानअप्रतिसंलीन, मायाअपडलोणे, ३. मायाप्रति संलीन, लोभ पडिली । ४. लोभअप्रतिसंलीन । १६२. चत्तारि पडिलीणा पण्णत्ता, तं चत्वारः प्रतिसंलीनाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - १६२. चार प्रतिसंलीन होते हैं जहा पडली, वतिपडिलीणे, कायपडिलीणे, इंपिडिली । मनः प्रतिसंलीनः, वाक्प्रतिसंलीनः, कायप्रतिसंलीनः, इन्द्रियप्रतिसंलीनः । १६३. चत्तारि अपडिलीणा पण्णत्ता, तं जहा मअप डिलीणे, 'वतिअप डिसली, कायअप डिली इंदियअपडिली । Jain Education International बीओ उद्देस प्रतिसंलीन-अप्रतिसंलीन-पदम् प्रतिसंलीन-अप्रतिसंलीन-पद चत्वारः प्रतिसंलीनाः प्रज्ञप्ताः तद्यथा - १६०. चार प्रतिसंलीन होते हैं- १. क्रोध प्रतिसंलीन, २. मानप्रतिसंलीन, ३. मायाप्रतिसंलीन, ४. लोभप्रतिसंलीन।" क्रोधप्रतिसंलीनः, मानप्रति संलीनः, मायाप्रतिसंलीनः, लोभप्रतिसंलीनः । चत्वारः तद्यथा--- क्रोधाप्रति संलीनः, मानाप्रतिसंलीनः, मायाप्रति संलीनः, लोभाप्रतिसंलीनः । चत्वारः अप्रतिसंलीनाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-मनोऽप्रतिसंलीनः, वागप्रति संलीनः, कायाऽप्रतिसंलीनः, इन्द्रियाऽप्रतिसंलीनः । स्थान ४ : सूत्र १६०-१६५ atr - अदीण-पदं दीन-अदीन-पदम् दीन- अदीन - पद १६४. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि १६४. पुरुष चार प्रकार के होते हैं तद्यथा— दीनः, दीनः नामैकः दीनः नामैक: अदीनः, १. कुछ पुरुष बाहर से भी दीन और अन्तर में भी दीन होते हैं, २. कुछ पुरुष बाहर से दीन, किन्तु अन्तर में अदीन होते हैं, ३. कुछ पुरुष बाहर से अदीन, किन्तु अंतर में दीन होते हैं, ४. कुछ पुरुष बाहर से भी अदीन और अंतर में भी अदीन होते हैं। १६५. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि १६५. पुरुष चार प्रकार के होते हैं- तद्यथा— १. कुछ पुरुष दीन और दीन रूप में परिणत होते हैं, २. कुछ पुरुष दीन, किन्तु दीन: नामैक: दीनपरिणतः, अदीनः नामैक: दीन:, अदीन: नामैकः अदीनः । For Private & Personal Use Only १. मनप्रति संलीन, २. वचनप्रति संलीन, ३. काय प्रतिसंलीन, ४. इन्द्रियप्रति - संलीन। १६३. चार अप्रतिसंलीन होते हैं १. मनअप्रतिसंलीन, २. वचनप्रतिसंलीन, ३. काय अप्रतिसंलीन, ४. इन्द्रियअप्रतिसंलीन । www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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