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ठाणं (स्थान)
१८७. चत्तारि
कडागारसालाओ
पण्णत्ताओ, तं जहा
गुत्ता 'णाममेगा गुत्तदुवारा,
गुत्ता णाममेगा अगुत्तवारा, अगुत्ता नाममेगा गुत्तदुवारा, अगुत्ता णाममेगा अगुत्तदुवारा । एवमेव चत्तारित्थओ पण्णत्ताओ तं जहा
गुत्ता णाममेगा गुसिंदिया, गुत्ता णाममेगा अगुत्तिदिया, अगुत्ता णाममेगा गुत्तिदिया, अगुत्ता णाममेगा अगुत्तिदिया ।
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चतस्रः कटागारशालाः तद्यथा—
गुप्ता नामका गुप्तद्वारा, गुप्ता नामका अगुप्तद्वारा, अगुप्ता नामका गुप्तद्वारा, गुप्ता नामका अगुप्तद्वारा । एवमेव चतस्रः स्त्रियः प्रज्ञप्ताः, तद्यथागुप्ता नामैका गुप्तेन्द्रिया, गुप्ता नामेका अगुप्तेन्द्रिया, अगुप्ता नामैका गुप्तेन्द्रिया, अगुप्ता नामका अगुप्तेन्द्रिया ।
प्रज्ञप्ताः, १८७. कूटागार शालाएं चार प्रकार की होती हैं - १. कुछ कूटागार शालाएं गुप्त और गुप्तद्वार वाली होती हैं, २. कुछ कूटागारशालाएं गुप्त, किन्तु अगुप्तद्वार वाली होती हैं, ३. कुछ कूटागार - शालाएं अगुप्त, किन्तु गुप्तद्वार वाली होती हैं, ४. कुछ कूटागार - शालाएं अगुप्त और अगुप्तद्वार वाली होती हैं।
पण्णत्ति-पदं
तद्यथा-
१८६. चत्तारि पण्णत्तीओ अंगबाहिरि याओ पण्णत्ताओ, तं जहाचंदपण्णत्ती, सूरपण्णत्ती, सूरप्रज्ञप्तिः, जंबुद्दीवपण्णत्ती, दीवसागरपण्णत्ती । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिः, द्वीपसागरप्रज्ञप्तिः ।
चन्द्रप्रज्ञप्तिः,
स्थान ४ : सूत्र १८७-१८६
इन्द्रियां गुप्त होती हैं, ४. कुछ पुरुष अगुप्त होकर अगुप्त होते हैं-न वस्त्र पहने हुए होते हैं और न उनकी इन्द्रियां ही गुप्त होती हैं।
ओगाहणा-पदं
अवगाहना-पदम्
अवगाहना-पद
१८८. चउव्विहा ओगाहणा पण्णत्ता, चतुविधा अवगाहना प्रज्ञप्ता, तद्यथा - १८८. अवगाहना चार प्रकार की होती है—
तं जहा -
द्रव्यावगाहना, क्षेत्रावगाहना,
कालावगाहना, भावावगाहना ।
दव्वगाहणा, खेत्तोगाहणा, कालोगाहणा, भावोगाहणा ।
१. द्रव्यावगाहना - - द्रव्यों की अवगाह्नाद्रव्यों के फैलाव का परिमाण, २. क्षेत्राव गाहना - क्षेत्र स्वयं अवगाहना है, ३. कालावगाहना - काल की अवगाहना, वह मनुष्यलोक में है, ४. भावावगाहनाआश्रय लेने की क्रिया ।
इसी प्रकार स्त्रियां भी चार प्रकार की होती हैं - १. कुछ स्त्रियां गुप्त और गुप्तइन्द्रिय वाली होती हैं, २. कुछ स्त्रियां गुप्त, किन्तु अगुप्तइन्द्रिय वाली होती हैं, ३. कुछ स्त्रियां अगुप्त, किन्तु गुप्त इन्द्रिय वाली होती हैं, कुछ स्त्रियां अगुप्त और अगुप्त इन्द्रिय वाली होती हैं ।
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प्रज्ञप्ति-पदम्
प्रज्ञप्ति-पद
चतस्रः प्रज्ञप्तयः अङ्गबाह्याः प्रज्ञप्ताः, १८६. चार प्रज्ञप्तियां अंग बाह्य हैं
१. चन्द्रप्रज्ञप्ति, २. सूरप्रज्ञप्ति,
३. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, ४. द्वीप सागरप्रज्ञप्ति ।
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