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ठाणं (स्थान)
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स्थान ४ : सूत्र १३३-१३६ १३३. चउविहे पायच्छित्ते पण्णते, तं चतुर्विधं प्रायश्चित्तं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा-- १३३. प्रायश्चित्त चार प्रकार का होता हैजहाप्रतिसेवनाप्रायश्चित्तं,
१. प्रतिषेवणा-प्रायश्चित्त-अकृत्य का पडिसेवणापायच्छित्ते, संयोजनाप्रायश्चित्तं,
सेवन करने पर प्राप्त होने वाला प्रायसंजोयणापायच्छित्ते, आरोवणा- आरोपणाप्रायश्चित्तं,
श्चित्त, २. संयोजना-प्रायश्चित्त-एक पायच्छित्ते, पलिउंचणापायच्छित्ते। परिकुञ्चनाप्रायश्चित्तम् ।
जातीय अनेक अतिचारों के लिए प्राप्त होने वाला प्रायश्चित्त, ३. आरोपणाप्रायश्चित्त-एक दोष का प्रायश्चित्त चल रहा हो, उस बीच में ही उस दोष को पुन -पुनः सेवन करने पर जो प्रायश्चित्त की अवधि बढ़ती है, ४. परिकुञ्चनाप्रायश्चित्त-अपराध को छिपाने का प्रायश्चित्त ।
काल-पदं
काल-पदम् १३४. चउविहे काले पण्णत्ते, तं जहा- चतुर्विधः कालः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-
पमाणकाले, अहाउयनिव्वत्तिकाले, प्रमाणकालः, यथायुनिवृत्तिकाल:, मरणकाले, अद्धाकाले। मरणकालः, अद्ध्वाकालः ।
काल-पद १३४. काल चार प्रकार का होता है
१. प्रमाणकाल-काल के दिवस, रात्रि आदि विभाग, २. यथायुःनिवृत्तिकालआयुष्य के अनुरूप नरक आदि गतियों में रहने का काल, ३. मरणकाल-मृत्यु का समय, ४. अद्धाकाल-सूर्य की गति से पहचाना जाने वाला काल ।
पोग्गल-परिणाम-पदं १३५. चविहे पोग्गलपरिणामे पण्णत्ते
तं जहावण्णपरिणामे, गंधपरिणामे, रसपरिणामे, फासपरिणाम।
पुद्गल-परिणाम-पदम्
पुद्गल-परिणाम-पद चतुर्विधः पुद्गलपरिणामः प्रज्ञप्तः, १३५. पुद्गल का परिणाम चार प्रकार का होता तद्यथा
है--१. वर्णपरिणाम-वर्ण का परिवर्तन, वर्णपरिणामः, गन्धपरिणामः,
२. गंधपरिणाम-- गंध का परिवर्तन, रसपरिणाम:, स्पर्शपरिणामः ।
३. रसपरिणाम-रस का परिवर्तन, ४. स्पर्शपरिणाम-स्पर्श का परिवर्तन ।
चाउज्जाम-पदं चातुर्याम-पदम्
चातुर्याम-पद १३६. भरहेरवएसु णं वासेसु पुरिम- भरतैरावतयोः वर्षयोः पूर्व-पश्चिम- १३६. भरत और ऐरवत क्षेत्र में प्रथम और
पच्छिमवज्जा मज्झिमगा बावीसं वर्जाः मध्यमका: द्वाविशंति: अर्हन्तः अन्तिम को छोड़कर शेष बाईस अहंन्त अरहता भगवंतो चाउज्जामं धम्मं भगवन्तः चातुर्यामं धर्म प्रज्ञापयन्ति, भगवान् चातुर्याम धर्म का उपदेश देते हैं, पण्णवयंति, तं जहातद्यथा
वह इस प्रकार है
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