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ठाणं (स्थान)
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स्थान ४ : सूत्र ११०-११३
११०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, ११०. पुरुष चार प्रकार के होते हैं—
१. कुछ पुरुष अपने वर्ज्य का उपशमन करते हैं, किन्तु दूसरे के वर्ज्य का उपशमन नहीं करते हैं, २. कुछ पुरुष दूसरे के वर्ण्य का उपशमन करते हैं, किन्तु अपने वर्ण्य का उपशमन नहीं करते, ३. कुछ पुरुष अपने वर्ज्य का भी उपशमन करते हैं। और दूसरे के वर्ण्य का भी उपशमन करते
जहा. -
अप्पणी णाममेगे वज्जं उवसामेति, णो परस्स, परस्स णाममेगे वज्जं उवसामेति णो अप्पणो, एगे अप्पणो वि वज्जं उवसामेति, परस्स वि, एगे जो अप्पणो वज्जं उवसामेति णो परस्स ।
तद्यथा— आत्मनः नामकः वर्ज्यं उपशामयति, नो परस्य, परस्य नामैक: वर्ण्य उपशामयति, नो आत्मनः एकः आत्मनोऽपि वयं उपशामयति, परस्यापि, एक: नो आत्मनः वयं उपशामयति, नो परस्य ।
लोकोपचार- विनय-पदम्
तद्यथा—
लोगोपचार- विणय-पदं १११. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि जहा - अट्ठेति णामगे, णो अब्भुट्ठावेति, अट्ठावेति णाममेगे, णो अब्भुट्ट ेति, अति वि, अट्ठावेति वि, गेणो अन्भुट्ट ेति णो अब्भुट्टावेति
अभ्युत्तिष्ठते नामैकः, नो अभ्युत्थापयति, अभ्युत्थापयति, नामैकः, नो अभ्युत्तिष्ठते, एकः अभ्युत्तिष्ठतेऽपि, अभ्युत्थापयत्यपि, एकः नो अभ्युत्तिष्ठते, नो अभ्युत्थापयति ।
।
जहा -
वंदति णाममेगे, णो वंदावेति, वंदावेति णाममेगे, णो वंदति, एगे बंदति वि, वंदावेति वि, एगे णो वंदति णो वंदावेति ।° ११३. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—सक्कारेइ णाममेगे, णो सक्कारावेइ, सक्कारावेइ णाममेगे, णो सक्कारेइ, एगे सक्कारेइ वि, सक्कारावेइ वि, एगे जो सक्कारेइ, णो सक्कारावेइ ।
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११२. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि ११२. पुरुष चार प्रकार के होते हैं
१. कुछ पुरुष वंदना करते हैं, किन्तु करवाते नही, २. कुछ पुरुष वंदना करवाते हैं, किन्तु करते नहीं, ३. कुछ पुरुष वंदना करते भी हैं और करवाते भी हैं, ४. कुछ पुरुष न वंदना करते हैं और न करवाते हैं । ११३. पुरुष चार प्रकार के होते हैं
१. कुछ पुरुष सत्कार करते हैं, किन्तु करवाते नहीं, २. कुछ पुरुष सत्कार करते हैं, किन्तु करवाते नहीं, ३. कुछ पुरुष सत्कार करते भी हैं और करवाते भी हैं, ४. कुछ पुरुष न सत्कार करते हैं और न करवाते हैं ।
तद्यथावन्दते नामैकः, नो वन्दयते, वन्दयते नामैकः, नो वन्दते, एक: वन्दतेऽपि वन्दयते ऽपि, एक: नो वन्दते, नो वन्दयते । चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि,
तद्यथा
सत्करोति नामैकः, नो सत्कारयति, सत्कारयति नामैकः, नो सत्करोति, एकः सत्करोत्यपि सत्कारयत्यपि, एकः नो सत्करोति, नो सत्कारयति ।
हैं, ४. कुछ पुरुष न अपने वर्ज्य का उपशमन करते हैं और न दूसरे के वर्ज्य का उपशमन करते हैं ।
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लोकोपचार - विनय-पद
१११. पुरुष चार प्रकार के होते हैं
१. कुछ पुरुष अभ्युत्थान करते हैं, किन्तु करवाते नहीं, २. कुछ पुरुष अभ्युत्थान करवाते हैं, किन्तु करते नहीं, ३. कुछ पुरुष अभ्युत्थान करते भी हैं और करवाते भी हैं, ४. कुछ पुरुष न अभ्युत्थान करते हैं। और न करवाते हैं ।
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