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________________ ठाणं (स्थान) ३१६ asgfहाणे, कायदुपणिहाणे, ' वाक् दुष्प्रणिधानं, काय दुष्प्रणिधानं, उपकरणदुष्प्रणिधानम् । उवकरणपणिहाणे । एवं पंचिदियाणं जाव वेमाणि - एवम् – पञ्चेन्द्रियाणां यावत् वैमानि - याणं । कानाम् । जहा --- आवातभद्दए णाममेगे, णो संवासभद्दए, संवासभद्दए णाममेगे, णो आवातभद्दए, एगे आवातभद्दवि, संवास भद्द एवि एगे जो आवातभद्दए, जो संवासभद्दए । आवात संवास-पदं आपात -संवास-पदम् आपात -संवास-पद १०७. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि १०७. पुरुष चार प्रकार के होते हैं १. कुछ पुरुष आपातभद्र होते हैं, संवासभद्र नहीं होते - प्रथम मिलन में भद्र होते हैं, चिर सहवास में भद्र नहीं होते, २. कुछ पुरुष संवासभद्र होते हैं, आपातभद्र नहीं होते, ३. कुछ पुरुष आपातभद्र भी होते हैं। और संवासभद्र भी होते हैं, ४. कुछ पुरुष न आपातभद्र होते हैं और न संवासभद्र होते हैं । तद्यथा— आपात भद्रकः नामैकः, नो संवासभद्रकः, संवासभद्रकः नामैकः, नो आपातभद्रकः, एक: आपात भद्रकोऽपि, संवासभद्रकोऽपि, एकः नो आपातभद्रको, नो संवासभद्रकः । वर्ण्य-पदम् वज्ज -पदं १०८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि जहा - तद्यथा— अपणो णाममेगे वज्जं पासति, णो परस्स, परस्स णाममेगे वज्जं पासति, णो अप्पणो, एगे अप्पणी वि वज्जं पासति परस्सवि, एगे णो अप्पणो वज्जं पासति, णों परस्स । आत्मनः नामकः वर्ज्यं पश्यति, नो परस्य, परस्य नामकः वयं पश्यति, नो आत्मनः, एक: आत्मनोऽपि वयं पश्यति, परस्यापि, एकः नो आत्मनः वर्ज्यं पश्यति, नो परस्य । १०६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि जहा -- तद्यथा— अपणो णाममेगे वज्जं उदीरेइ, णो परस्स, परस्स णाममेगे वज्जं उदीरेइ, णो अप्पणी, एगे अप्पणी वि वज्जं उदीरेइ, परस्स वि, एगे णो अप्पणो वज्जं उदीरेइ, णो परस्स । Jain Education International स्थान ४ : सूत्र ९०७-१०६ वर्ण्य-पद पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि १०८. पुरुष चार प्रकार के होते हैं ३. काय दुष्प्रणिधान, ४. उपकरणदुष्प्रणिधान । ये नारक आदि सभी पञ्चेन्द्रिय दण्डकों प्राप्त होते हैं। आत्मनः नामकः वयं उदीरयति, नो परस्य परस्य नामैकः वयं उदीरयति, नो आत्मनः एकः आत्मनोऽपि वर्ज्यं उदीरयति, परस्यापि, एकः नो आत्मनः वर्ज्यं उदीरयति, नो परस्य । For Private & Personal Use Only पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि १०६. पुरुष चार प्रकार के होते हैं ९. कुछ पुरुष अपना वर्ण्य देखते हैं, दूसरे का नहीं, २. कुछ पुरुष दूसरे का वर्ज्य देखते हैं, अपना नहीं, ३. कुछ पुरुष अपना वयं देखते हैं और दूसरे का भी, ४. कुछ पुरुष न अपना वयं देखते हैं न दूसरे का । १. कुछ पुरुष अपने अवध की उदीरणा करते हैं, दूसरे के वर्ज्य की उदीरणा नहीं करते, २. कुछ पुरुष दूसरे के वयं की उदीरणा करते हैं, किन्तु अपने वर्ज्य की उदीरणा नहीं करते, ३. कुछ पुरुष अपने वर्ण्य की भी उदीरणा करते हैं और दूसरे के वर्ज्य की भी उदीरणा करते हैं, ४. कुछ पुरुष न अपने वयं की उदीरणा करते हैं। और न दूसरे के वर्ज्य की उदीरणा करते हैं । www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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