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________________ ठाणं (स्थान) ६७. चत्तारि पडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - भद्दा, सुभद्दा, महाभद्दा, सव्वतोभद्दा | ८. चत्तारि पडिमाओ पण्णत्ताओ, तं चतस्रः प्रतिमाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथाक्षुद्रिका 'मोय' प्रतिमा, महती 'मोय' प्रतिमा, यवमध्या, वज्रमध्या । - खुड्डियामोयपडिमा जहा - ख महल्लियामोयपडिमा जवमज्झा, वइरमज्झा । अथिकाय-पदं ६६. चत्तारि अस्थिकाया अजीवकाया पण्णत्ता, तं जहा - धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, आiterrare, पोग्गलत्थकाए । १००. चत्तारि अत्थिकाया अरूविकाया पण्णत्ता, तं जहा-धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, आगासत्थिकाए, जीवत्थिकाए । आम पक्क पर्द १०१. चत्तारि फला पण्णत्ता, तं जहा— आमे णाममेगे आममहुरे, आमे णाममेगे पक्कमहुरे, पक्के णाममेगे आममहुरे, पक्के णाममेगे पक्कमहुरे । ३१७ चतस्रः प्रतिमाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा— भद्रा, सुभद्रा, महाभद्रा, सर्वतोभद्रा । Jain Education International -पदम् अस्तिकायाः अजीवकायाः चत्वारः प्रज्ञप्ताः, तद्यथाधर्मास्तिकायः, अधर्मास्तिकायः, आकाशास्तिकायः, पुद्गलास्तिकायः । चत्वारः अस्तिकाया: अरूपिकायाः प्रज्ञप्ताः तद्यथा— धर्मास्तिकायः, अधर्मास्तिकायः, आकाशास्तिकायः, जीवास्तिकायः । आम पक्व-पदम् चत्वारि फलानि प्रज्ञप्तानि तद्यथा— आमं नामैकं आममधुरं, • आमं नामैकं पक्वमधुरं, पक्वं नामैकं आममधुरं, पक्वं नामैकं पक्वमधुरम् । तद्यथा- एवामेव चत्तारि पुरिसजाया एवमेव चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, पण्णत्ता, तं जहाआमे णामगे आममहुरफलसमाणे, आम: नामैक: आममधुरफलसमानः, आमे णाममेगे पक्कमहुरफलसमाणे, आम: नामैकः पक्वमधुरफलसमानः, पक्के णाममेगे आममहुरफलसमाणे, पक्वः नामैक: आममधुरफलसमानः, पक्के णाममेगे पक्कमहुरफलपक्वः नामैकः पक्वमधुरफलसमानः । समाणे । For Private & Personal Use Only स्थान ४ : सूत्र ९७ - १०१ ६७. प्रतिमा चार प्रकार की होती है १. भद्रा, २. सुभद्रा, ३. महाभद्रा, ४. सर्वतोभद्रा । ६८. प्रतिमा चार प्रकार की होती है १. क्षुल्लक प्रश्रवणप्रतिमा, २. महत्प्रश्रवणप्रतिमा, ३. यवमध्या, ४. वज्रमध्या । अस्तिकाय-पद ६६. चार अस्तिकाय अजीव होते हैं१. धर्मास्तिकाय, २. अधर्मास्तिकाय, ३. आकाशास्तिकाय, ४. पुद्गलास्तिकाय । १००. चार अस्तिकाय अरूपी होते हैं १. धर्मास्तिकाय, २. अधर्मास्तिकाय, ३. आकाशास्तिकाय, ४. जीवास्तिकाय । आम पक्व पद १०१. फल चार प्रकार के होते हैं १. कुछ फल अपक्व और अपक्व - मधुर होते हैं-थोड़े मीठे होते हैं, २. कुछ फल अपक्व और पक्व मधुर होते हैं - अत्यन्त मीठे होते हैं, ३. कुछ फल पक्व और अपक्व मधुर होते हैं-थोड़े मीठे होते हैं, ४. कुछ फल पक्व और पक्व - मधुर होते हैं - अत्यन्त मीठे होते हैं । इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के होते है- १. कुछ पुरुष वय और श्रुत से अपक्व होते हैं और अपक्व - मधुर फल के समान होते हैं- अल्प उपशम वाले होते हैं, २. कुछ पुरुष वय और श्रुत से अपक्व होते हैं और पक्व मधुर फल के समान होते हैं—प्रधान उपशम वाले होते हैं, ३. कुछ पुरुष वय और श्रुत से पक्व होते हैं और अप-मधुर फल के समान होते हैं - अल्प उपशम वाले होते हैं, ४. कुछ पुरुष वय और श्रुत से पक्त्र होते हैं और पक्व मधुर फल के समान होते हैं—प्रधान उपशम वाले होते हैं । www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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