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ठाणं (स्थान)
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स्थान ४ : सूत्र ६२-६६
आभोगणिव्वत्तिते,
आभोगनिर्वतित:, अनाभोगनिवर्तितः, अणाभोगणिव्वत्तिते,
उपशान्तः, अनुपशान्तः । उवसंते, अणुवसंते। एवं—णेरइयाणं जाव वेमा- एवम्-नैरयिकाणां यावत् वैमानिकाणियाणं।
नाम् ।
१. आभोगनिवंतित, २. अनाभोगनिर्वतित, ३. उपशान्त, ४. अनुपशान्त । यह चतुर्विध लोभ नारकों से लेकर वैमानिक तक के सभी दण्डकों में प्राप्त होता है।
कम्मपगडि-पदं कर्मप्रकृति-पदम्
कर्मप्रकृति-पद १२. जीवा णं चहि ठाणेहिं अट्ठ जीवाश्चतुभिः स्थानः अष्टौ कर्मप्रकृतीः ६२. जीवों ने चार कारणों-क्रोध, मान, कम्मपगडीओ चिणिसु, तं जहा- अचैषुः, तद्यथा
माया और लोभ-से आठ कर्म-प्रकृतियों
का चय किया है। कोहेणं, माणेणं, मायाए, लोभेणं। क्रोधेन, मानेन, मायया, लोभेन।
इसी प्रकार वैमानिक तक के सभी दण्डकों एवं—जाव वेमाणियाणं। एवम्—यावत् वैमानिकानाम् ।
ने आठ कर्म-प्रकृतियों का चय किया है। ६३. 'जीवा णं चहि ठाहिं अट्ठ जीवाश्चतुभिः स्थान: अष्टौ कर्मप्रकृतीः ६३. जीव चार कारणों- क्रोध, मान, माया कम्मपगडीओ चिणंति, तं जहा- चिन्वन्ति, तद्यथा
और लोभ-से आठ कर्म-प्रकृतियों का कोहेणं, माणेणं, मायाए, लोभेणं। क्रोधेन, मानेन, मायया, लोभेन । चय करते हैं। एवं—जाव वेमाणियाणं। एवम्—यावत् वैमानिकानाम् । इसी प्रकार वैमानिक तक के सभी दण्डक
आठ कर्म-प्रकृतियों का चय करते हैं। १४. जीवा णं चउहि ठाणेहिं अट्ठ कम्म- जीवाश्चतुभिः स्थानः अष्टो कर्मप्रकृती: १४. जीव चार कारणों-क्रोध, मान, माया पगडीओ चिणिसंति, तं जहा- चेष्यन्ति, तद्यथा
और लोभ-से आठ कर्म-प्रकृतियों का कोहेणं, माणेणं, मायाए, लोभेणं। क्रोधेन, मानेन, मायया, लोभेन । चय करेंगे। एवं—जाव वेमाणियाणं । एवम्—यावत् वैमानिकानाम् । इसी प्रकार वैमानिक तक के सभी दण्डक
आठ कर्म-प्रकृतियों का चय करेंगे। ६५. एवं उवचिणिसु उवचिणंति एवम्-उपाचैषुः उपचिन्वन्ति उपचेष्यन्ति ६५. इसी प्रकार वैमानिक तक के सभी उवचिणिस्संति।
दण्डकों ने आठ कर्म-प्रकृत्तियों का बंधिसु बंधति बंधिस्संति अभान्त्सुः बध्नन्ति, बन्सन्ति
उपचय, बन्ध, उदीरणा, वेदना और उदीरिसु उदोरिति उदीरिस्संति उदैरिषुः उदीरयन्ति उदीरयिष्यन्ति निर्जरा की थी, करते हैं और करेंगे। वेदेस वेदेति वेदिस्संति अवेदिषु वेदयन्ति वेदयिष्यन्ति णिज्जरसुणिज्जरति णिज्जरिस्संति निरजरिषुः निर्जरयन्ति निर्जरयिष्यन्ति जाव वेमाणियाणं।
यावत् वैमानिकानाम् ।
पडिमा-पदं
प्रतिमा-पदम् ६६. चत्तारि पडिमाओ पण्णत्ताओ, तं चतस्रः प्रतिमाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- जहा
समाधिप्रतिमा, उपधानप्रतिमा, समाहिपडिमा, उवहाणपडिमा, विवेकप्रतिमा, व्युत्सर्गप्रतिमा । विवेगपडिमा, विउस्सग्गपडिमा।
प्रतिमा-पद ६६. प्रतिमा चार प्रकार की होती है
१. समाधिप्रतिमा, २. उपधानप्रतिमा, ३. विवेकप्रतिमा, ४. व्युत्सर्गप्रतिमा।
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