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स्थान ४: सूत्र ८७-६१
ठाणं (स्थान)
३१५ एवं_णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं । एवम्-नैरयिकाणां यावत् वैमानिका
नाम् ।
यह चतुर्विध माया नारकों से लेकर वैमानिक तक के सभी दण्डकों में प्राप्त
होती है। ८७. लोभ चार प्रकार का होता है--
१. अनन्तानुबन्धी, २. अप्रत्याख्यानकषाय, ३. प्रत्याख्यानावरण, ४. संज्वलन । यह चतुर्विध लोभ नारकों से लेकर वैमानिक तक के सभी दण्डकों में प्राप्त होता है।
८७. चउन्विधे लोभे पण्णत्ते, तं जहा- चतुर्विधः लोभः प्रज्ञप्तः, तद्यथा
अणंताणुबंधी लोभे, अनन्तानुबन्धी लोभः, अपच्चक्खाणकसाए लोभे, अप्रत्याख्यानकषायो लोभः, पच्चक्खाणावरणे लोभे, प्रत्याख्यानावरणो लोभः, संजलणे लोभे। संज्वलनो लोभः । एवं—णेरइयाणं जाव वेमा- एवम् नैरयिकाणां यावत् वैमानिकाणियाणं ।
नाम्। ८८. चउन्विहे कोहे पण्णत्ते, तं जहा- चतुर्विधः क्रोधः प्रज्ञप्तः, तद्यथाआभोगणिवत्तिते,
आभोगनिर्वतित:, अनाभोगनिर्वतितः, अणाभोगणिव्वत्तिते, उपशान्तः, अनुपशान्तः। उवसंते, अणुवसंते। एवं—णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं। एवम्-नैरयिकाणां यावत् वैमानिका
नाम्।
८६. 'चउविहे माणे पण्णत्ते, तं चतुर्विधः मानः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-
जहा_आभोगणिव्वत्तिते, आभोगनिवर्तितः, अनाभोगनिर्वर्तितः, अणाभोगणिव्वत्तिते, उपशान्तः, अनुपशान्तः । उवसंते, अणुवसंते। एवं—णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं। एवम्-नैरयिकाणां यावत् वैमानिका
नाम्। ६०. चउन्विहा माया पण्णत्ता, तं चतुर्विधा माया प्रज्ञप्ता, तद्यथा
आभोगनिर्वतिता, अनाभोगनिर्वतिता, आभोगणिव्वत्तिता,
उपशान्ता, अनुपशान्ता। अणाभोगणिव्वत्तिता, उवसंता, अणुवसंता। एवं-णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं। एवम् - नैरयिकाणां यावत् वैमानिका-
नाम् । ६१. चउन्विहे लोभे पण्णत्ते, तं जहा- चतुर्विधः लोभः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-
८८. क्रोध चार प्रकार का होता है
१. आभोगनिर्वतित-स्थिति को जानने पर जो क्रोध निष्पन्न होता है, २. अनाभोगनिर्वतित-स्थिति को न जानने पर जो क्रोध निष्पन्न होता है, ३. उपशान्तक्रोध की अनुदयावस्था, ४. अनुपशान्तक्रोध की उदयावस्था। यह चतुर्विध क्रोध नारकों से लेकर वैमानिक तक के सभी दण्डकों में प्राप्त
होता है। ८६. मान चार प्रकार का होता है
१. आभोगनिर्वतित, २. अनाभोगनिर्वतित, ३. उपशान्त, ४. अनुपशान्त। यह चतुर्विध मान नारकों से लेकर वैमानिक तक के सभी दण्डकों में प्राप्त
होता है। ६०. माया चार प्रकार की होती है
१. आभोगनिर्वतिता, २. अनाभोगनिर्वतिता, ३. उपशान्ता, ४. अनुपशान्ता। यह चतुविध माया नारकों से लेकर वैमानिक तक के सभी दण्डकों में प्राप्त
होती है। ६१. लोभ चार प्रकार का होता है
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