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ठाणं (स्थान)
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स्थान ४ : सूत्र ८३-८६ खेत्तं पडुच्चा, वत्थु पडुच्चा, क्षेत्रं प्रतीत्य, वास्तु प्रतीत्य,
१. क्षेत्र के कारण, २.वस्तु के कारण, सरीरं पडुच्चा, उहि पडुच्चा। शरीरं प्रतीत्य, उपधि प्रतीत्य । ३. शरीर के कारण, ४. उपधि के कारण। एवं--णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं। एवम्-नैरयिकाणां यावत् वैमानिका- नारकों से लेकर वैमानिक तक के सभी नाम् ।
दण्डकों में इन चार कारणों से माया की
उत्पत्ति होती है। ८३. चउहि ठाणेहि लोभुप्पत्ती सिता, चतुभिः स्थानैः लोभोत्पत्तिः स्यात्, ८३. लोभ की उत्पत्ति चार कारणों से होती जहातद्यथा
है-१. क्षेत्र के कारण, खेत्तं पडुच्चा, वत्थं पडुच्चा, क्षेत्रं प्रतीत्य, वास्तु प्रतीत्य,
२. वस्तु के कारण, ३. शरीर के कारण, सरीरं पडुच्चा, उहि पडुच्चा। शरीरं प्रतीत्य, उपधि प्रतीत्य ।
४. उपधि के कारण। एवं...णेरयाणं जाव वेमाणि- एवम्-नैरयिकाणां यावत् वैमानिका- नारकों से लेकर वैमानिक तक के सभी याणं । नाम् ।
दण्डकों में इन चार कारणों से लोभ की
उत्पत्ति होती है। ८४. चउब्विधे कोहे पण्णत्ते, तं जहा- चतुविधः क्रोधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- ८४. क्रोध चार प्रकार का होता हैअणंताणुबंधी कोहे, अनन्तानुबन्धी क्रोधः,
१. अनन्तानुबन्धी-इसका अनुबन्ध अपच्चक्खाणकसाए कोहे, अप्रत्याख्यानकषायः क्रोधः,
(परिणाम) अनन्त होता है, पच्चक्खाणावरणे कोहे, प्रत्याख्यानावरणः क्रोधः,
२. अप्रत्याख्यानकषाय-विरति-मात्र का संजलणे कोहे। संज्वलनः क्रोधः।
अवरोध करने वाला, ३. प्रत्याख्यानाएवं—णेरइयाणं जाव वेमाणि- एवम् नैरयिकाणां यावत् वैमानिका- वरण-सर्व-विरति का अवरोध करने याणं। नाम्।
वाला, ४. संज्वलन-यथाख्यात चरित्र का अवरोध करने वाला। यह चतुर्विध क्रोध नारकों से लेकर वैमानिक
तक के सभी दण्डकों में प्राप्त होता है। ८५. चउव्विधे माणे पण्णत्ते, तं चतुर्विधः मानः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- ८५. मान चार प्रकार का होता हैजहा—अणंताणुबंधी माणे, अनन्तानुबन्धी मानः,
१. अनन्तानुबन्धी, २. अप्रत्याख्यानकषाय, अपच्चक्खाणकसाए माणे, अप्रत्याख्यानकषायो मानः,
३. प्रत्याख्यानावरण, ४. संज्वलन । पच्चक्खाणावरणे माणे, प्रत्याख्यानावरणो मानः,
यह चतुर्विध मान नारकों से लेकर वैमासंजलणे माणे। संज्वलनो मानः ।
निक तक के सभी दण्डकों में प्राप्त होता एवं—णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं। एवम् नैरयिकाणां यावत् वैमानिका
नाम् । ८६. चउम्विधा माया पण्णत्ता, तं चतुर्विधा माया प्रज्ञप्ता, तद्यथा- ८६. माया चार प्रकार की होती हैजहा—अणंताणुबंधी माया, अनन्तानुबन्धिनी माया,
१. अनन्तानुबन्धिनी, २. अप्रत्याख्यानअपच्चक्खाणकसाया माया, अप्रत्याख्यानकषाया माया,
कषाय, ३. प्रत्याख्यानावरणा, पच्चक्खाणावरणा माया, प्रत्याख्यानावरणा माया,
४. संज्वलना। संजलणा
माया। संज्वलना माया।
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