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________________ ठाणं (स्थान) ३१४ स्थान ४ : सूत्र ८३-८६ खेत्तं पडुच्चा, वत्थु पडुच्चा, क्षेत्रं प्रतीत्य, वास्तु प्रतीत्य, १. क्षेत्र के कारण, २.वस्तु के कारण, सरीरं पडुच्चा, उहि पडुच्चा। शरीरं प्रतीत्य, उपधि प्रतीत्य । ३. शरीर के कारण, ४. उपधि के कारण। एवं--णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं। एवम्-नैरयिकाणां यावत् वैमानिका- नारकों से लेकर वैमानिक तक के सभी नाम् । दण्डकों में इन चार कारणों से माया की उत्पत्ति होती है। ८३. चउहि ठाणेहि लोभुप्पत्ती सिता, चतुभिः स्थानैः लोभोत्पत्तिः स्यात्, ८३. लोभ की उत्पत्ति चार कारणों से होती जहातद्यथा है-१. क्षेत्र के कारण, खेत्तं पडुच्चा, वत्थं पडुच्चा, क्षेत्रं प्रतीत्य, वास्तु प्रतीत्य, २. वस्तु के कारण, ३. शरीर के कारण, सरीरं पडुच्चा, उहि पडुच्चा। शरीरं प्रतीत्य, उपधि प्रतीत्य । ४. उपधि के कारण। एवं...णेरयाणं जाव वेमाणि- एवम्-नैरयिकाणां यावत् वैमानिका- नारकों से लेकर वैमानिक तक के सभी याणं । नाम् । दण्डकों में इन चार कारणों से लोभ की उत्पत्ति होती है। ८४. चउब्विधे कोहे पण्णत्ते, तं जहा- चतुविधः क्रोधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- ८४. क्रोध चार प्रकार का होता हैअणंताणुबंधी कोहे, अनन्तानुबन्धी क्रोधः, १. अनन्तानुबन्धी-इसका अनुबन्ध अपच्चक्खाणकसाए कोहे, अप्रत्याख्यानकषायः क्रोधः, (परिणाम) अनन्त होता है, पच्चक्खाणावरणे कोहे, प्रत्याख्यानावरणः क्रोधः, २. अप्रत्याख्यानकषाय-विरति-मात्र का संजलणे कोहे। संज्वलनः क्रोधः। अवरोध करने वाला, ३. प्रत्याख्यानाएवं—णेरइयाणं जाव वेमाणि- एवम् नैरयिकाणां यावत् वैमानिका- वरण-सर्व-विरति का अवरोध करने याणं। नाम्। वाला, ४. संज्वलन-यथाख्यात चरित्र का अवरोध करने वाला। यह चतुर्विध क्रोध नारकों से लेकर वैमानिक तक के सभी दण्डकों में प्राप्त होता है। ८५. चउव्विधे माणे पण्णत्ते, तं चतुर्विधः मानः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- ८५. मान चार प्रकार का होता हैजहा—अणंताणुबंधी माणे, अनन्तानुबन्धी मानः, १. अनन्तानुबन्धी, २. अप्रत्याख्यानकषाय, अपच्चक्खाणकसाए माणे, अप्रत्याख्यानकषायो मानः, ३. प्रत्याख्यानावरण, ४. संज्वलन । पच्चक्खाणावरणे माणे, प्रत्याख्यानावरणो मानः, यह चतुर्विध मान नारकों से लेकर वैमासंजलणे माणे। संज्वलनो मानः । निक तक के सभी दण्डकों में प्राप्त होता एवं—णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं। एवम् नैरयिकाणां यावत् वैमानिका नाम् । ८६. चउम्विधा माया पण्णत्ता, तं चतुर्विधा माया प्रज्ञप्ता, तद्यथा- ८६. माया चार प्रकार की होती हैजहा—अणंताणुबंधी माया, अनन्तानुबन्धिनी माया, १. अनन्तानुबन्धिनी, २. अप्रत्याख्यानअपच्चक्खाणकसाया माया, अप्रत्याख्यानकषाया माया, कषाय, ३. प्रत्याख्यानावरणा, पच्चक्खाणावरणा माया, प्रत्याख्यानावरणा माया, ४. संज्वलना। संजलणा माया। संज्वलना माया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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