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ठाणं (स्थान)
स्थान ४: सूत्र ७७-८२ ७७. 'चउपतिहिते माणे पण्णत्ते, तं चतुः प्रतिष्ठिता मानः प्रज्ञप्तः, ७७. मान चतुःप्रतिष्ठित होता हैजहातद्यथा
१. आत्मप्रतिष्ठित, २. परप्रतिष्ठित, आतपतिहिते, परपतिट्टिते, आत्मप्रतिष्ठितः, परप्रतिष्ठितः, ३. तदुभयप्रतिष्ठित, ४. अप्रतिष्ठित । तदुभयपतिट्टिते, अपतिट्टिते। तदुभयप्रतिष्ठितः, अप्रतिष्ठितः । यह चारों प्रकार का मान नारकों से लेकर एवं—णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं। एवम् नैरयिकाणां यावत् वैमानिका- वैमानिक तक के सभी खण्डों में प्राप्त नाम् ।
होता है। ७८. चउपतिद्विता माया पण्णत्ता, तं चतुः प्रतिष्ठिता मायाः प्रज्ञप्ता, ७८. माया चतुःप्रतिष्ठित होती हैजहातद्यथा
१. आत्मप्रतिष्ठित, २. परप्रतिष्ठित, आतपतिद्विता, परपतिट्ठिता, आत्मप्रतिष्ठिता, परप्रतिष्ठिता, ३. तदुभयप्रतिष्ठित, ४. अप्रतिष्ठित । तदुभयपतिहिता, अपतिट्ठिता। तदुभयप्रतिष्ठिता, अप्रतिष्ठिता। यह चारों प्रकार की माया नारकों से एवं—णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं। एवम्-नैरयिकाणां यावत् वैमानिका- लेकर वैमानिक तक के सभी दण्डकों में नाम्।
प्राप्त होती है। ७६. चउपतिट्टिते लोभे पण्णत्ते, तं चतुः प्रतिष्ठितः लोभः प्रज्ञप्तः, ७६. लोभ चतुः प्रतिष्ठित होता हैजहातद्यथा
१. आत्मप्रतिष्ठित, २. परप्रतिष्ठित, आतपतिहिते, परपतिट्टिते, आत्मप्रतिष्ठितः, परप्रतिष्ठितः, ३. तदुभयप्रतिष्ठित, ४. अप्रतिष्ठित । तदुभयपतिट्ठिते, अपति ट्ठिते। तदुभयप्रतिष्ठितः, अप्रतिष्ठितः । यह चारों प्रकार का लोभ नारकों से लेकर एवं_णेरइयाणं जाव वेमाणि- एवम्-नैरयिकाणां यावत् वैमानिका- वैमानिक तक के सभी दण्डकों में प्राप्त याणं। नाम्।
होता है। ८०. चहि ठाणेहिं कोधुप्पत्ती सिता, चतुभिः स्थानः क्रोधोत्पत्तिः स्यात्, ८०. क्रोध की उत्पत्ति चार कारणों से होती तं जहातद्यथा
है--१. क्षेत्र--भूमि के कारण, खेत्तं पडुच्चा, वत्थु पडुच्चा, क्षेत्रं प्रतीत्य, वास्तु प्रतीत्य,
२. वास्तु-घर के कारण, ३. शरीरसरीरं पडुच्चा, उहि पडुच्चा। शरीरं प्रतीत्य, उपधि प्रतीत्य । कुरूप आदि होने के कारण, ४. उपधिएवं-रइयाणंजाव वेमाणियाणं। एवम _नैरयिकाणां यावत वैमानिका- उपकरणों के नष्ट हो जाने के कारण। नाम् ।
नारकों से लेकर वैमानिक तक के सभी दण्डकों में इन चार कारणों से क्रोध की
उत्पत्ति होती है। ८१. 'वहिं ठाणेहि माणुप्पत्ती सिता, चतुभिः स्थानः मानोत्पत्तिः स्यात्, ८१. मान की उत्पत्ति चार कारणों से होती तं जहातद्यथा
है-१. क्षेत्र के कारण, २. वस्तु के कारण, खेत्तं पडुच्चा, वत्थु पडुच्चा, क्षेत्र प्रतीत्य, वास्तु प्रतीत्य,
३. शरीर के कारण, ४. उपधि के कारण। सरीरं पडुच्चा, उहि पडुच्चा। शरीरं प्रतीत्य, उपधि प्रतीत्य ।
नारकों से लेकर वैमानिक तक के सभी एवंणेरइयाणं जाव वेमाणियाणं। एवम् नैरयिकाणां यावत् वैमानिका- दण्डकों में इन चार कारणों से मान की नाम्।
उत्पत्ति होती है। ८२. चहि ठाणेहिं मायुप्पत्ती सिता, चतुभिः स्थानः मायोत्पत्तिः स्यात्, ८२. माया की उत्पत्ति चार कारणों से होती तं जहा
तद्यथा
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