________________
उ (स्थान)
३११
स्थान ४ : सूत्र ६८-७२ परियट्टणा, अणुप्पेहा।
३. परिवर्तना-पुनरावर्तन करना,
४. अनुप्रेक्षा-अर्थ का चिन्तन करना। ६८. धम्मस्स णं झाणस्स चत्तारि अणु- धर्म्यस्य ध्यानस्य चतस्रः अनुप्रेक्षाः ६८. धर्म्य ध्यान की चार अनुप्रेक्षाएं हैं
प्पेहाओ पण्णताओ, तं जहा.- प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-एकानुप्रेक्षा, १. एकत्वअनुप्रेक्षा--अकेलेपन का चिन्तन एगाणुप्पेहा, अणिच्चाणुप्पेहा, अनित्यानुप्रेक्षा, अशरणानुप्रेक्षा, करना, २. अनित्यअनुप्रेक्षा--पदार्थों की असरणाणुप्पेहा, संसाराणुप्पेहा। संसारानुप्रेक्षा।
अनित्यता का चिन्तन करना, ३. अशरणअनुप्रेक्षा-अशरण दशा का चिन्तन करना, ४. संसारअनुप्रेक्षा-संसार
परिभ्रमण का चिन्तन करना।" ६६. सुक्के झाणे ची व्वहे वउप्पडो- शुक्लं ध्यानं चतुविधं चतुष्प्रत्यवतारं ६६. शुक्ल ध्यान के चार प्रकार हैं और वह आरे पण्णत्ते, तं जहा- प्रज्ञप्तम्, तद्यथा
चार पदों (स्वरूप, लक्षण, आलम्बन, पुहत्तवितक्के सवियारी, पृथक्त्ववितर्क सविचारि,
अनुप्रेक्षा) में अवतरित होता है। उसके एगत्तवितक्के अवियारी, एकत्ववितर्क अविचारि,
चार प्रकार ये हैं-१. पृथकत्ववितर्कसुहुमकिरिए अणियट्टी, सूक्ष्मक्रियं अनिवृत्ति,
सविचारी, २. एकत्ववितकअविचारी, समुच्छिण्णकिरिए अप्पडिवाती। समुच्छिन्नक्रियं अप्रतिपाति ।
३. सूक्ष्म क्रियअनिवृत्ति,
४. समुच्छिन्नक्रियअप्रतिपाति ।३२ ७०. सुक्कस्स गं झाणस्स चत्तारि शुक्लस्य ध्यानस्य चत्वारि लक्षणानि ७०. शुक्ल ध्यान के चार लक्षण हैंलक्खणा पण्णत्ता, तं जहा- प्रज्ञप्तानि, तद्यथा
१. अव्यथ-क्षोभ का अभाव, अव्वहे, असम्मोहे, अव्यथं, असम्मोहः,
२. असम्मोह-सूक्ष्म पदार्थ विषयक मूढता विवेगे, विउस्सगे। विवेकः, व्युत्सर्गः।
का अभाव, ३. विवेक-शरीर और आत्मा के भेद का ज्ञान, ४. व्युत्सर्ग
शरीर और उपधि में अनासक्त भाव।" ७१. सुक्कस्स णं झाणस्स चत्तारि शुक्लस्य ध्यानस्य चत्वारि आलम्बनानि ७१. शुक्ल ध्यान के चार आलम्बन हैंआलंबणा पण्णत्ता, तं जहा- प्रज्ञप्तानि, तद्यथा
१. शान्ति-क्षमा, २. मुक्ति-निर्लोभत , खंती, मुत्ती, अज्जवे, मद्दवे। क्षान्तिः, मुक्तिः,
३. आर्जव-सरलता, ४. मार्दवआर्जवं, मार्दवम् । ७२. सुक्कस्स णं झाणस्स चत्तारि शुक्लस्य ध्यानस्य चतस्रः अनुप्रेक्षाः ७२. शुक्ल ध्यान की चार अनुप्रेक्षाएं हैंअणुप्पेहाओ पण्णत्ताओ,तं जहा- प्रज्ञप्ताः, तद्यथा
१. अनन्तवृत्तिताअनुप्रेक्षा-संसार परअणंतवत्तियाणुप्पेहा, अनन्तवृत्तितानुप्रेक्षा, विपरिणामानुप्रेक्षा, म्परा का चिन्तन करना, २. विपरिणामविप्परिणामाणुप्पेहा, अशुभानुप्रेक्षा, अपायानुप्रेक्षा। अनुप्रेक्षा-वस्तुओं के विविध परिणामों असुभाणप्पेहा, अवायाणुप्पेहा।
का चिन्तन करना, ३. अशुभअनुप्रेक्षापदार्थों की अशुभता का चिन्तन करना, ४. अपायअनुप्रेक्षा-दोषों का चिन्तन करना।
मृदुता।"
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org