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________________ ठाणं (स्थान) अहुणोववण्ण-रइय-पदं ५८. चउहि ठाणेहि अहुणोववण्णे रइए णिरयलोगंसि इच्छेज्जा माणसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, जो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए — १. अणोववणे णेरइए णिरयलोगंसि समुब्भूयं वेयणं वेयमाणे इच्छेज्जा माणुसं लोगं हव्वमागच्छत्तए, णो चेवणं संचाएति हव्वमागच्छत्तए । २. अणोववण्णे णेरइए णिरयलोगं सिणिरय पालेहि भुज्जो - भुज्जो अहिट्टिज्जमाणे इच्छेज्जा माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, जो चेव णं संचाएति हव्वमागच्छित्तए ३. अहुणोववणे णेरइए णिरयवे णिज्जंस कम्मंस अक्खीणंसि अवेइयंसि अणिज्जिण्णंसि इच्छेज्जा माणसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, जो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए ४. अणोववणे रइए णिरयाअसि कम्मंस अक्खीणंसि अवे इयंसि अणिज्जिणंसि इच्छेज्जा माणुसं लोगं हव्वमागच्छत्तए णो चेव णं संचाएति हव्वमागच्छत्तएइच्चेतेहि चहि ठाणेह अहुणो ववण्णे णेरइए णिरयलोगंसि इच्छेज्जा माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, णो चेव णं संचाएति हव्वमागच्छित्तए । Jain Education International ३०८ अधुनोपपन्न-नैरयिक-पदम् चतुभिः स्थानैः अधुनोपपन्नः नैरयिकः निरयलोके इच्छेत् मानुषं लोकं अर्वाग् आगन्तुम्, नो चैव शक्नोति अर्वाग् आगन्तुम्— १. अधुनोपपन्नः नैरयिकः निरयलोके समुद्भूतां वेदनां वेदयन् इच्छेत् मानुषं लोकं अर्वाग् आगन्तुम्, नो चैव शक्नोति अर्वाग् आगन्तुम् २. अधुनोपपन्नः नैरयिकः निरयलोके नरकपाले भूयः - भूयः अधिष्ठीयमानः इच्छेत् मानुषं लोकं अर्वाग् आगन्तुम् नो चैव शक्नोति अर्वाग् आगन्तुम् ३. अधुनोपपन्नः नैरयिकः निरयवेदनीये कर्मणि अक्षीणे अवेदिते अनिर्जीर्णे इच्छेत् मानुषं लोकं अर्वाग् आगन्तुम्, नो चैव शक्नोति अर्वाग् आगन्तुम् ४. अधुनोपपन्नः नैरयिकः निरयायुषे कर्मणि अक्षीणे अवेदिते अनिर्जीर्णे इच्छेत् मानुषं लोकं अर्वाग् आगन्तुम्, नो चैव शक्नोति अर्वाग् आगन्तुम्— इति एतैः चतुभिः स्थानैः अधुनोपपन्नः नैरयिकः निरयलोके इच्छेत् मानुषं लोकं अर्वाग् आगन्तुम्, नो चैव शक्नोति अर्वाग् आगन्तुम् । For Private & Personal Use Only स्थान ४ : सूत्र ५८ ४. स्कन्ध - बीज - सल्लकी आदि। इनके स्कन्ध ही वीज होते हैं। अधुनोपपन्न-नरयिक- पद ५८. नरक लोक में तत्काल उत्पन्न नैरयिक चार कारणों से शीघ्र ही मनुष्य लोक में आना चाहता है, किन्तु आ नहीं सकता १. तत्काल उत्पन्न नैरयिक नरक लोक में होने वाली पीड़ा अनुभव करता है तब वह शीघ्र ही मनुष्य लोक में आना चाहता है, किन्तु आ नहीं सकता, २. तत्काल उत्पन्न नैरयिक नरक लोक में नरकपालों द्वारा बार-बार आक्रान्त होने पर शीघ्र ही मनुष्य लोक में आना चाहता है, किन्तु आ नहीं सकता, ३. तत्काल उत्पन्न नैरयिक शीघ्र ही मनुष्य लोक में आना चाहता है, किन्तु नरक में भोगने योग्य कर्मों के क्षीण हुए बिना, उन्हें भोगे बिना, उनका निर्जरण हुए बिना आ नहीं सकता, ४. तत्काल उत्पन्न नैरयिक शीघ्र ही मनुष्य लोक में आना चाहता है, किन्तु नरक सम्बन्धी आयुष्यकर्म के क्षीण हुए बिना, उसे भोगे बिना, उसका निर्जरण हुए बिना आ नहीं सकता इन चार कारणों से नरकलोक में तत्काल उत्पन्न नैरयिक शीघ्र ही मनुष्य लोक में आना चाहता है, किन्तु आ नहीं सकता । www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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