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________________ ठाणं (स्थान) ३०६ स्थान ४ : सूत्र ५३-५६ ५३. चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, ५३. पुरुष चार प्रकार के होते हैंजहातद्यथा... १. कुछ पुरुष शरीर से शुचि और शुचिसुई णामं एगे सुइववहारे, शुचिर्नामैकः शुचिव्यवहारः, व्यवहार वाले होते हैं, २. कुछ पुरुष सुई णामं एगे असुइववहारे, शुचिर्नामैक: अशुचिव्यवहारः, शरीर से शुचि, किन्तु अशुचि-व्यवहार असुई णाम एगे सुइववहारे, अशुचिर्नामकः शुचिव्यवहारः, वाले होते हैं, ३. कुछ पुरुष शरीर से असुई णामं एगे असुइववहारे। अशुचिर्नामैक: अशुचिव्यवहारः । अशुचि, किन्तु शुचि-व्यवहार वाले होते हैं, ४. कुछ पुरुष शरीर से अशुचि और अशुचि-व्यवहार वाले होते हैं। ५४. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, ५४. पुरुष चार प्रकार के होते हैंजहातद्यथा १. कुछ पुरुष शरीर से शुचि और शुचिसुई णामं एगे सुइपरक्कमे, शुचिर्नामकः शुचिपराक्रमः, पराक्रम वाले होते हैं, २. कुछ पुरुष शरीर सुई णामं एगे असुइपरक्कमे, शुचिर्नामकः अशुचिपराक्रमः, से शुचि, किन्तु अशुचि-पराक्रम वाले होते असुई णामं एगे सुइपरक्कमे, अशुचिर्नामैकः शुचिपराक्रमः, हैं, ३. कुछ पुरुष शरीर से अशुचि, किन्तु असुई णाम एगे असुइपरक्कमे। अशुचिर्नामकः अशुचिपराक्रमः । शुचि-पराक्रम वाले होते हैं, ४. कुछ पुरुष शरीर से अशुचि और अशुचि-पराक्रम वाले होते हैं। कोरव-पदं कोरक-पदम् कोरक-पद ५५. चत्तारि कोरवा पण्णता, तं जहा- चत्वारि कोरकाणि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा- ५५. कली चार प्रकार की होती है अंबपलबकोरवे, तालपलंबकोरवे, आम्रप्रलम्बकोरकं, तालप्रलम्बकोरकं, १. आम्र-फल की कली, २. ताड़-फल की वल्लिपलबकोरवे, वल्लीप्रलम्बकोरक, मेढ़ विषाणाकोरकम्। कली, ३. बल्लि-फल की कली, ४. मेषमेंढविसाणकोरवे। शृंग के फल की कली। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया एवमेव चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के होते पण्णत्ता, तं जहातद्यथा हैं--१. कुछ पुरुष आम्र-फल की कली अंबपलबकोरवसमाणे, आम्रप्रलम्बकोरकसमानः, के समान होते हैं, २. कुछ पुरुष ताड़-फल तालपलबकोरवसमाणे, तालप्रलम्बकोरकसमानः, की कली के समान होते हैं, ३. कुछ पुरुष वल्लिपलबकोरवसमाणे, वल्लीप्रलम्बकोरकसमानः, बल्लि-फल की कली के समान होते हैं, मेंढविसाणकोरवसमाणे। मेविषाणाकोरकसमानः । ४. कुछ पुरुष मेष-शृंग के फल की कली के समान होते हैं। भिक्खाग-पदं भिक्षाक-पदम् ५६. चत्तारि घुणा पण्णत्ता, तं जहा- चत्वारः घुणाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- तयक्खाए, छल्लिक्खाए, त्वकखादः, छल्लीखादः, काष्ठखादः, कटक्खाए, सारक्खाए। सारखादः। भिक्षाक-पद ५६. धुण चार प्रकार के होते हैं १. त्वचा-बाहरी छाल को खाने वाले, २. छाल-त्वचा के भीतरी भाग को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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