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________________ ३०१ स्थान ४: सूत्र ३४-३७ ठाणं (स्थान) असुद्धे णाम एगे सुद्धपरक्कमे, असुद्धे णाम एगे असुद्धपरक्कमे। अशुद्धो नामैकः शुद्धपराक्रमः, अशुद्धो नामैक: अशुद्धपराक्रमः । ३. कुछ पुरुष जाति से अशुद्ध, किन्तु शुद्धपराक्रम वाले होते हैं, ४. कुछ पुरुष जाति से अशुद्ध और अशुद्ध-पराक्रम वाले होते हैं। सुत-पदं ३४. चत्तारि सुता पण्णत्ता, तं जहा- अतिजाते, अणुजाते, अवजाते, कुलिंगाले। सुत-पदम् चत्वारः सुता: प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- अतिजात, अनुजातः, अवजातः, कुलाङ्गारः। सुत-पद ३४. पुत्र चार प्रकार के होते हैं १. अतिजात-पिता से अधिक, २. अनुजात-पिता के समान, ३. उपजात-पिता से हीन, ४. कुलांगार-कुल के लिए अंगारे जैसा, कुल दूषक। सच्च-असच्च-पदं सत्य-असत्य-पदम् सत्य-असत्य-पद ३५. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, ३५. पुरुष चार प्रकार के होते हैंजहातद्यथा १. कुछ पुरुष पहले भी सत्य होते हैं और सच्चे णाम एगे सच्चे, सत्यो नामकः सत्यः, बाद में भी सत्य होते हैं, २. कुछ पुरुष सच्चे णामं एगे असच्चे, सत्यो नामैक: असत्यः, पहले सत्य, किन्तु बाद में असत्य होते हैं, असच्चे णाम एगे सच्चे, असत्यो नामैक: सत्यः, ३. कुछ पुरुष पहले असत्य, किन्तु बाद में असच्चे णामं एगे असच्चे । असत्यो नामकः असत्यः । सत्य होते हैं, ४. कुछ पुरुष पहले भी असत्य होते हैं और बाद में भी असत्य होते हैं। ३६. 'चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, ३६. पुरुष चार प्रकार के होते हैंतं जहातद्यथा १. कुछ पुरुष सत्य और सत्य-परिणत सच्चे णाम एगे सच्चपरिणते, सत्यो नामैकः सत्यपरिणतः, होते है, २. कुछ पुरुष सत्य, किन्तु असत्यसच्चे णाम एगे असच्चपरिणते, सत्यो नामैकः असत्यपरिणतः, परिणत होते हैं, ३. कुछ पुरुष असत्य, असच्चे णामं एगे सच्चपरिणते, असत्यो नामकः सत्यपरिणतः, किन्तु सत्य-परिणत होते हैं, ४. कुछ पुरुष असच्चे णामं एगे असच्चपरिणते। असत्यो नामैकः असत्यपरिणतः । असत्य और असत्य-परिणत होते हैं। ३७. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, ३७. पुरुष चार प्रकार के होते हैंजहातद्यथा १. कुछ पुरुष सत्य और सत्य-रूप वाले सच्चे णामं एगे सच्चरूवे, सत्यो नामैकः सत्यरूपः होते हैं, २. कुछ पुरुष सत्य, किन्तु असत्यसच्चे णामं एगे असच्चरूवे, सत्यो नामकः असत्यरूपः, रूप वाले होते हैं, ३. कुछ पुरुष असत्य, असच्चे णामं एगे सच्चरूवे, असत्यो नामैकः सत्यरूपः, किन्तु सत्य-रूप वाले होते हैं, ४. कुछ पुरुष असच्चे णामं एगे असच्चरूवे। असत्यो नामैक: असत्यरूपः। असत्य और असत्य-रूप वाले होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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