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________________ ६८-६६. देव-देवियों की स्थिति ७०. स्खलन के प्रकार ७१. आजीव (जीविका) के प्रकार ७२. राजचिन्ह ७३. छद्मस्थ द्वारा परीषह सहने के हेतु ७४. केवली द्वारा परीषह सहने के हेतु ७५-७८. हेतुओं के प्रकार ७६.८२. अहेतुओं के प्रकार ८३. केवली के अनुत्तर स्थान ८४-६७. तीर्थकरों के पंचकल्याणकों के नक्षत्र ____६८. महानदी उत्तरण के हेतु ६E-१००. चातुर्मास में विहार करने के हेतुओं का निर्देश १०१. अनुद्घातिक (गुरु) प्रायश्चित्त के हेतु १०२. अन्तःपुर प्रवेश के हेतु १०३. बिना सहवास गर्भ-धारण के हेतु १०४-१०६. सहवास से भी गर्भ-धारण न होने के हेतु १०७. श्रमण-श्रमणी के एकत्रवास के हेतु १०८. अचेल श्रमण का सचेल श्रमणी के साथ रहने के हेतु १०६. आश्रव के प्रकार ११०. सवर के प्रकार १११. दंड (हिंसा) के प्रकार ११२-१२२. क्रियाओं के प्रकार १२३. परिज्ञा के प्रकार १२४. व्यवहार के प्रकार और उनकी प्रस्थापना १२५-१२७. सुप्त-जागृत १२८. कर्म रजों के आदान के हेतु १२६. कर्म-रजों के वमन के हेतु १३०. भिक्षु-प्रतिमा में दत्तियां १३१-१३२. उपघात और विशोधि के प्रकार १३३. दुर्लभ बोधिकत्व कर्मोपार्जन के हेतु १३४. सुलभ बोधिकत्व कर्मोपार्जन के हेतु १३५. प्रतिसंलीन के प्रकार १३६. अप्रतिसंलीन के प्रकार १३७-१३८. संवर-असंवर के प्रकार १३६. संयम (चारित्र) के प्रकार १४०-१४५. संयम-असंयम के प्रकार १४६. तृणवनस्पति के प्रकार १४७. आचार के प्रकार १४८. आचारकल्प (निशीथ) के प्रकार १४६. आरोपणा के प्रकार १५०-१५३. वक्षस्कार पर्वत १५४-१५५. महाद्रह १५६. वक्षस्कार पर्वतों का परिमाण १५७. धातकीषण्ड तथा अर्धपुष्करवर द्वीप में वक्षस्कार पर्वत १५८. समयक्षेत्र १५६-१६३. ऋषभ, भरत, बाहुबली, ब्राह्मी और सुन्दरी की अवगाहना १६४. सुप्त मनुष्य के विबुद्ध होने के हेतु १६५. श्रमण द्वारा श्रमणी को सहारा देने के हेतु १६६. आचार्य तथा उपाध्याय के अतिशेष १६७. आचार्य तथा उपाध्याय का गणापक्रमण करने के हेतु १६८. ऋद्धिमान मनुष्यों के प्रकार १६६-१७४. पांच अस्तिकायों का विस्तृत वर्णन १७५. गति के प्रकार १७६. इन्द्रियों के विषय १७७. मुण्ड के प्रकार १७८-१८०. अधो, ऊध्वं तथा तिर्यक्लोक में बादर जीवों के प्रकार १८१. बादर तेजस्कायिक जीवों के प्रकार १८२. बादर वायुकायिक जीवों के प्रकार १८३. अचित्त वायुकाय के प्रकार १८४-१८६. निर्ग्रन्थों के प्रकार और उनके भेद १६०. साधु-साध्वियों के वस्त्रों के प्रकार १६१. रजोहरण के प्रकार १६२. निधास्थान १६३. निधि के प्रकार १६४. शौच के प्रकार १६५. छद्मस्थ तथा केवली के ज्ञान की इयत्ता १६६. सबसे बड़े महानरकावास १६७. महाविमान १६८. सत्त्व के आधार पर पुरुषों के प्रकार १६६. मत्स्यों की तुलना में पुरुषों के प्रकार २००. वनीपकों के प्रकार २०१. अचेलक के प्रशस्त होने के हेतु २०२. उत्कल (उत्कट) के प्रकार २०३. समितियां २०४. संसारी जीवों के प्रकार २०५-२०७. जीवों की गति-आगति २०८. कषाय और गति के आधार पर जीवों का वर्गीकरण २०६. मटर आदि धान्यों की योनि (उत्पादक शक्ति) का कालमान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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