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________________ ५८३. कामभोग के प्रकार ५८४-५८७. उत्तान और गंभीर के आधार पर पुरुषों के प्रकार ५८-५६६. तैराकों के प्रकार ५०-५६४. पूर्ण रिक्त कुंभ के आधार पर पुरुषों के प्रकार ५६५. चरित्र के आधार पर पुरुषों के प्रकार ५६६. मधु विष कुंभ के आधार पर पुरुषों के प्रकार ५६७०६०१. उपसर्गों के भेद-प्रभेद ६०२-६०४. कर्मों के प्रकार ६०५. संघ के प्रकार ६०६. बुद्धि के प्रकार ६०७. मति के प्रकार ६०८६०६. जीवों के प्रकार ६१०-६११. मित्र अमित्र ६१२-६१३. मुक्त अमुक्त ६१४-६१५. जीवों की गति आगति ६१६-६१७. संयम असंयम ६१८ ६२०. विभिन्न प्रकार की क्रियाएं ६२१. विद्यमान गुणों के विनाश के हेतु ६२२. विद्यमान गुणों के दीपन के हेतु ६२३-६२६. शरीर की उत्पत्ति और निष्पन्नता के हेतु ६२७. धर्म के द्वार ६२८. नरक योग्य कर्मार्जन के हेतु ६२. तिर्यक्योनि योग्य कर्मार्जन के हेतु ६३०. मनुष्य योग्य कर्मार्जिन के हेतु ६३१. देवयोग्य कर्मार्जिन के हेतु ६३२. वाद्य के प्रकार ६३३. नाट्य के प्रकार ६३४. गेय के प्रकार ६३५. माला के प्रकार ६३६. अलंकार के प्रकार ६३७. अभिनय के प्रकार ६३८. विमानों का वर्ण ६३९. देव-शरीर की ऊंचाई ६४०-६४१. उदक के गर्भ और उनके हेतु ६४२. स्त्री गर्भ के प्रकार और उनके हेतु ६४३. पहले पूर्व की चूलावस्तु ६४४. काव्य के प्रकार ६४५. नैरयिकों के समुद्घात ६४६. वायु के समुद्घात ६४७. अरिष्टनेमि के चौदहपूर्वी शिष्यों की संख्या ६४८. महावीर के वादीशिष्यों की संख्या ( ३२ ) Jain Education International ६४-६५१. देवलोक के संस्थान ६५२. एक दूसरे से भिन्न रस वाले समुद्र ६५३. आवर्ती के आधार पर कषाय का वर्गीकरण और उनमें मरने वाले जीवों का उत्पत्ति स्थल ६५४-६५६. नक्षत्रों के तारे ६५७-६५८. पाप कर्मरूप में निर्वर्तित पुद्गल ६५-६६२. पुद्गल पद पांचवां स्थान १. महाव्रत २. अणुव्रत ३. वर्ण ४. रस ५. कामगुण के प्रकार ६-१०. आसक्ति के हेतु ११-१५. इन्द्रिय-विषयों के विविध परिणाम १६. दुर्गति के हेतु १७. सुगति के हेतु १८. प्रतिमा के प्रकार १६ २०. स्थावरकाय और उसके अधिपति २१. तत्काल उत्पन्न होते-होते अवधिदर्शन के विचलित होने के हेतु २२. तत्काल उत्पन्न होते-होते केवलज्ञान-दर्शन के विचलित न होने के हेतु २३-२४. शरीरों के वर्ण और रस २५०३१. शरीर के प्रकार और उनके वर्ण तथा रस ३२. दुर्गम स्थान ३३. सुगम स्थान ३४-३५. दस धर्म ३६-४३. विविध प्रकार का बाह्य तप करने वाले मुनि ४४-४५. दस प्रकार का वैयावृत्त्य ४६. सांभोगिक को विसांभोगिक करने के हेतु ४७. पारांचित प्रायश्चित्त के हेतु ४८. विग्रह के हेतु ४६. अविग्रह के हेतु ५०. निषद्या के प्रकार ५१. संबर के स्थान ५२. ज्योतिष्क के प्रकार ५३. देव के प्रकार ५४. परिचारणा के प्रकार ५५-५६. अग्रमहिषियों के नाम ५७-६७. देवों की सेनाएं और सेनापति For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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