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________________ ४३०-४३२. श्रमणोपासकों के प्रकार और स्थिति ४६७. इन्द्रियों के विषय ४३३-४३४. देवता का मनुष्यलोक में आ सकने और न आ ४६८. अलोक में न जाने के हेतु सकने के कारण ४६६-५०३. ज्ञात (दृष्टान्त, हेतु आदि) के प्रकार ४३५-४३६. मनुष्यलोक में अंधकार और उद्योत होने के हेतु ५०४. हेतु के प्रकार ४३७-४३८. देवलोक में अंधकार और उद्योत होने के हेतु ५०५. गणित के प्रकार ४३६. देवताओं का मनुष्यलोक में आगमन के हेतु ५०६. अधोलोक में अधंकार के हेतु ४४०. देवोत्कलिका के हेतु ५०७. तिर्यक्लोक में उद्योत के हेतु ४४१. देव-कहकहा के हेतु ५०८. ऊर्ध्वलोक में उद्योत के हेतु ४४२.४४३. देवताओं के तत्क्षण मनुष्यलोक में आने के हेतु ५०६. प्रसर्पण के हेतु ४४४. देवताओं का अभ्युत्थान के हेतु ५१०-५१३. नैरयिक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देवताओं के ४४५. देवों के आसन-चलित होने के कारण आहार का प्रकार ४४६. देवों के सिंहनाद के हेतु ५१४. आशीविष के प्रकार और उनका प्रभाव-क्षेत्र ४४७. देवों के चेलोत्क्षेप के कारण ५१५. व्याधि के प्रकार ४४८. चैत्यवृक्ष चलित होने के कारण ५१६. चिकित्सा के अंग ४४६. लोकान्तिक देवों का मनुष्यलोक में आने के हेतु ५१७. चिकित्सकों के प्रकार ४५०. दुःखशय्या ५१८-५२२. व्रणों के आधार पर पुरुषों के प्रकार ४५१. सुखशय्या ५२३-५२६. श्रेय और पापी के आधार पर पुरुषों के प्रकार ४५२-४५३. वाचनीय-अवाचनीय ५२७-५२८. आख्यायक, चिंतक और उञ्छजीवी के आधार ४५४. आत्मभर, परंभर पर पुरुषों के प्रकार ४५५-४५६. दुर्गत और सुगत ५२६. वृक्ष की विक्रिया के प्रकार ४६०-४६२. तम और ज्योति के आधार पर पुरुषों के प्रकार ५३०-५३२. वादि-समवसरण ४६३-४६५. परिज्ञात-अपरिज्ञात के आधार पर पुरुषों का ५३३-५४०. मेघ के आधार पर पुरुषों के प्रकार वर्गीकरण ५४१-५४३. आचार्यों के प्रकार ४६६. लौकिक और पारलौकिक प्रयोजन के आधार ५४४. भिक्ष के प्रकार पर पुरुषों के प्रकार ५४५-५४७. गोलों के प्रकार ४६७. हानि-वृद्धि के आधार पर पुरुषों के प्रकार ५४८. पत्रक के आधार पर पुरुषों के प्रकार ४६८-४७६. घोड़ों के विभिन्न गुणों के आधार पर पुरुषों के ५४६. चटाई के आधार पर पुरुषों के प्रकार प्रकार ५५०. चतुष्पद जानवर ४८०.प्रव्रज्या के आधार पर पुरुषों के प्रकार ५५१. पक्षियों के प्रकार ४८१. एक लाख योजन के सम-स्थान ५५२. क्षुद्र प्राणियों के प्रकार ४८२. पैतालीस लाख योजन के सम-स्थान ५५३. पक्षियों के आधार पर भिक्षुओं के प्रकार ४८३-४८५. ऊर्ध्व, अधो और तिर्यक्लोक में द्विशरीरी का ५५४-५५५. निष्कृष्ट-अनिष्कृष्ट पुरुषों के प्रकार नामोल्लेख ५५६-५५७. बुध-अबुध पुरुषों के प्रकार ४८६. सत्त्व के आधार पर पुरुषों के प्रकार ५५८. आत्मानुकंपी-परानुकंपी ४८७-४६०. विभिन्न प्रतिमाएं ५५६-५६५. संवास (मैथुन) के प्रकार ४६१. जीव के सहवर्ती शरीर ५६६. अपध्वंस के प्रकार ४६२. कार्मण से संयुक्त शरीर ५६७. आसुरत्व कर्मोपार्जन के हेतु ४६३. लोक में व्याप्त अस्तिकाय ५६८. आभियोगित्व कर्मोपार्जन के हेतु ४६४. लोक में व्याप्त अपर्याप्तक बादरकायिक जीव ५६६. सम्मोहत्व कर्मोपार्जन के हेतु ४६५. प्रदेशाग्र से तुल्य ५७०. देवकिल्बिषिकत्व कर्मोपार्जन के हेतु ४६६. जीवों का वर्गीकरण जिनका एक शरीर दृश्य ५७१-५७७. प्रव्रज्या के प्रकार नहीं होता ५७८-५८२. संज्ञाएं और उनकी उत्पत्ति के हेतु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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