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ठाणं (स्थान)
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स्थान ४ : सूत्र १२-१३
उज्जु-वंक-पदं
ऋजु-वक्र-पदम् १२. चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता, तं जहा- चत्वारः रुक्षाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा
उज्जू णाममेगे उज्जू, ऋजुः नामकः ऋजुः, उज्जू णाममेगे वंके, ऋजुः नामैकः वक्र:, 'वंके णाममेगे उज्ज, वको नामैक: ऋजुः, वंके णाममेगे वंके।
वक्रो नामैकः वक्रः।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया एवमेव चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, पण्णत्ता, तं जहा
तद्यथाउज्जू णाममेगे उज्जू, ऋजुः नामैक: ऋजुः, 'उज्जू णाममेगे वंके, ऋजुः नामैक: वक्रः, वंके णाममेगे उज्जू, वक्रो नामैक: ऋजुः, वंके णाममेगे वंके।
वक्रो नामैक: वक्रः।
ऋजु-वक्र-पद १२. वृक्ष चार प्रकार के होते हैं
१. कुछ वृक्ष शरीर से भी ऋजु होते हैं और कार्य से भी ऋजु होते हैं-ठीक समय पर फल देने वाले होते हैं, २. कुछ वृक्ष शरीर से ऋजु किन्तु कार्य से वक्र होते हैं-ठीक समय पर फल देने वाले नहीं होते, ३. कुछ वृक्ष शरीर से वक्र, किन्तु कार्य से ऋजु होते हैं, ४. कुछ वृक्ष शरीर से भी वक्र होते हैं और कार्य से भी वक्र होते हैं। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के होते हैं-१. कुछ पुरुष शरीर की चेष्टा से भी ऋजु होते हैं और प्रकृति से भी ऋजु होते हैं, २. कुछ पुरुष शरीर की चेष्टा से ऋजु होते हैं, किन्तु प्रकृति से वक्र होते हैं, ३. कुछ पुरुष शरीर की चेष्टा से वक्र होते हैं, किन्तु प्रकृति से ऋजु होते हैं, ४. कुछ पुरुष शरीर की चेष्टा से भी वक्र होते हैं
और प्रकृति से भी वक्र होते हैं।१६ १३. वृक्ष चार प्रकार के होते हैं
१. कुछ वृक्ष शरीर से ऋजु और ऋजुपरिणत होते हैं, २. कुछ वृक्ष शरीर से ऋजु, किन्तु वक्र-परिणत होते हैं, ३. कुछ वृक्ष शरीर से वक्र, किन्तु ऋजु-परिणत होते हैं, ४. कुछ वृक्ष शरीर से वक्र और वक्र-परिणत होते हैं। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के होते हैं--१. कुछ पुरुष शरीर से ऋजु और ऋजु-परिणत होते हैं, २. कुछ पुरुष शरीर से ऋजु, किन्तु वक्र-परिणत होते हैं, ३. कुछ पुरुष शरीर से वक्र किन्तु ऋजुपरिणत होते हैं, ४. कुछ पुरुष शरीर से वक्र और वक्र-परिणत होते हैं।
१३. चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता, तं जहा
उज्जू णाममेगे उज्जुपरिणते, उज्जू णाममेगे वंकपरिणते, वंके गाममेगे उज्जुपरिणते, वंके णाममेगे वंकपरिणते ।
चत्वारः रुक्षाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथाऋजुः नामक: ऋजुपरिणतः, ऋजुः नामैक: वक्रपरिणतः, वक्रो नामक: ऋजुपरिणतः, वक्रो नामैक: वक्रपरिणतः।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया एवमेव चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, पण्णत्ता, तं जहा
तद्यथाउज्जू गाममेगे उज्जपरिणते, ऋजुः नाभैकः ऋजुपरिणतः, उज्जू णाममेगे वंकपरिणते, ऋजु: नामैक: वक्रोपरिणतः, वंके णाममेगे उज्जपरिणते, वक्रो नामैक: ऋजुपरिणतः, वके णाममेगे वंकपरिणते। वक्रो नामैक: वक्रपरिणतः ।
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