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________________ स्थान ४ : सूत्र ३-४ ठाणं (स्थान) २६२ ३. चत्तारि रुवखा पण्णत्ता, तं जहा- चत्वारः रुक्षाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा उण्णते णाममेगे उण्णतपरिणते, उन्नतो नामैक: उन्नतपरिणत:, उण्णते णाममेगे पणतपरिणते, उन्नतो नामैकः प्रणतपरिणतः, पणते णाममेगे उण्णतपरिणते, प्रणतो नामैकः उन्नतपरिणतः, पणते णाममेगे पणतपरिणते। प्रणतो नामकः प्रणतपरिणतः । ३. वृक्ष चार प्रकार के होते हैं १. कुछ वृक्ष शरीर से उन्नत और उन्नतपरिणत होते हैं, अनुन्नतभाव को (अशुभ रस आदि) को छोड़, उन्नतभाव (शुभरस आदि) में परिणत होते हैं, २. कुछ वृक्ष शरीर से उन्नत, किन्तु प्रणतपरिणत होते हैं-~-उन्नतभाव को छोड़ अनुन्नतभाव में परिणत होते हैं, ३. कुछ वृक्ष शरीर से प्रणत और उन्नतभाव में परिणत होते हैं, ४. कुछ वृक्ष शरीर से प्रणत और प्रणतभाव में परिणत होते हैं। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के होते एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहाउण्णते णाममेगे उण्णतपरिणते, "उण्णते णाममेगे पणतपरिणते, पणते णाममेगे उण्णतपरिणते, पणते णाममेगे पणतपरिणते। एवमेव चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथाउन्नतो नामैक: उन्नतपरिणतः, उन्नतो नामैक: प्रणतपरिणतः, प्रणतो नामैक: उन्नतपरिणतः, प्रणतो नामकः प्रणतपरिणतः । १. कुछ पुरुष शरीर से उन्नत और उन्नतरूप में परिणत होते हैं-अनुन्नतभाव (अवगुण) को छोड़, उन्नतभाव (गुण) में परिणत होते हैं, २. कुछ पुरुष शरीर से उन्नत, किन्तु प्रणतरूप में परिणत होते हैं-उन्नतभाव को छोड़, अनुन्नतभाव में परिणत होते हैं, ३. कुछ पुरुष शरीर से प्रणत, किन्तु उन्नतरूप में परिणत होते हैं, ४. कुछ पुरुष शरीर से प्रणत और प्रणतरूप में परिणत होते हैं। ४. वृक्ष चार प्रकार के होते हैं १. कुछ वृक्ष शरीर से उन्नत और उन्नतरूप वाले होते हैं, २. कुछ वृक्ष शरीर से उन्नत, किन्तु प्रणत-रूप वाले होते हैं, ३ कुछ वृक्ष शरीर से प्रणत, किन्तु उन्नत-रूप वाले होते हैं, ४. कुछ वृक्ष शरीर से प्रणत और प्रणत. रूप वाले होते हैं। ४. चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता, तं जहा- चत्वारः रुक्षाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा उण्णते णाममेगे उण्णतरूवे, उन्नतो नामैकः उन्नतरूपः, 'उण्णते णाममेगे पणतरूवे, उन्नतो नामैक: प्रणतरूपः, पणते गाममेगे उण्णतरूवे, प्रणतो नामैक: उन्नतरूपः, पणते णाममेगे पणतरूवे। प्रणतो नामैकः प्रणतरूपः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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